वीरांगना दुर्गा भाभी के जन्म दिन पर विशेष, एक ऐसा जीवन जिसने
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क्रांतिकारी दुर्गा भाभी
जन्म 07.10.1907 निधन 14.10.1999
जो त्याग, बलिदान, प्रेम, ममता की अद्भुत शक्ति से,
जीवन में सुख, शांति, समृद्धि ले आती ढ़ेर सारी है।
जो अपने कर्तव्य के पथ पर चल कर न कभी थकी,
कभी न हारी है, वीरांगना दुर्गा भाभी,ऐसी नारी है।।
देश की आजादी में महान त्याग एवं बलिदान की प्रतीक तथा क्रांतिकारी साथियों के बीच ‘दुर्गा भाभी’ के नाम प्रसिद्ध दुर्गा देवी जी का जन्म 07.10.1907 को शहजादपुर ग्राम, कौशाम्बी (उ. प्र.) में पं. बाँके बिहारी भट्ट के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्रयागराज (इलाहाबाद) कलेक्ट्रेट में नाजिर थे। वह मात्र 13 वर्ष की आयु में सन् 1920 में अपने पति भगवती चरण वोहरा जी (17 वर्ष) के साथ देश की आज़ादी के संघर्ष में कूद पड़ीं।
19.12.1928 को जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाला लाजपत राय जी की हत्या का बदला लेने के लिए असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक (DSP) जॉन सॉंडर्स की हत्या कर दी, तब ‘दुर्गा भाभी’ ने समाज की परवाह किए बिना ,अपने 03 साल के बेटे को साथ लेकर, भगत सिंह जी को अपना पति एवं राजगुरु जी को परिवार का नौकर बनाकर, अंग्रेज़ सिपाहियों की नजरों से बचाकर उन्हें कलकत्ता पहुँचाया। भगत सिंह जी को जेल से छुड़ाने की योजना के तहत भगवती चरण वोहरा जी स्वयं बम बना रहे थे। रावी नदी के तट पर परीक्षण करते समय भगवती चरण वोहरा जी, 28.05.1930 को बलिदान हुए। पति को खोने के बावजूद ‘दुर्गा भाभी’, साथी क्रांतिकारियों के साथ और अधिक सक्रिय रहीं। उनका काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था। चंद्रशेखर आजाद जी ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी, उसे ‘दुर्गा भाभी’ ही लाई थीं। उन्होंने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण लाहौर व कानपुर में ली थी। उसी वर्ष 09.10.1930 को ‘दुर्गा भाभी’ ने दक्षिण बॉम्बे में लैमिंगटन रोड पर गवर्नर हैली पर गोली चलाई, जिसमें गवर्नर हैली तो बच गया, किंतु उसके साथ खड़ा हुआ एक ब्रिटिश सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया।
मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी ‘दुर्गा भाभी’ ने गोली मारी थी। बाद में मुंबई के एक फ्लैट से दुर्गा भाभी व क्रांतिकारी साथी यशपाल जी को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके लिए उन्हें 03 साल की जेल हुई। अपने पुत्र शचींद्र को शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करने के उद्देश्य से,वह दिल्ली पहुँची, जहाँ पर पुलिस उन्हें बराबर परेशान करती रहीं। उसके बाद, वह दिल्ली से लाहौर चली गई, जहाँ पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और नजरबंद रखा। बाद में, उन्हें लाहौर से निष्कासन से दिया गया। तब वह सन् 1935 में गाजियाबाद में प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी करने लगीं। सन् 1939 में इन्होंने मद्रास जाकर मारिया मांटेसरी से मांटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लिया तथा एक साल बाद सन् 1940 में, उन्होंने उत्तर भारत का पहला मांटेसरी स्कूल लखनऊ में कैंट रोड के (नज़रबाग स्थित) एक निजी मकान में, पिछड़े वर्ग के सिर्फ 25 छात्रों के साथ शुरू किया तथा उसे एक प्रमुख शिक्षण संस्थान के रूप में प्रतिष्ठित किया।जिसका उन्होंने लगभग 42 वर्षों तक कुशल संचालन किया। आज भी यह विद्यालय लखनऊ में लखनऊ मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से प्रसिद्ध है।1983 में, अस्वस्थता के कारण वह, इस कालेज को एक ट्रस्ट को सौंपकर, पुत्र शचीन्द्र के पास गाजियाबाद रहने लगीं। देश की आज़ादी में अतुलनीय योगदान देने वाली दुर्गा भाभी ने गाज़ियाबाद में 14.10.1999 को 92 वर्ष की अवस्था में अंतिम साॅंस ली।
जगदीश नारायण भट्ट
भतीज-पुत्र (पौत्र) दुर्गा भाभी, लखनऊ (उ.प्र.)
साभार
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