चौधरी बिहारी सिंह की राजनीतिक यात्रा, जब मायावती-कांशीराम रूपवास गांव में उनके घर आए
1 min readचौधरी बिहारी सिंह की जीवन संघर्ष यात्रा (जैसा उनके पुत्र ने लिखा)
पिताजी और मायावती
सन 1995 में मायावती जी की एक सभा उनके पैतृक गांव बादलपुर में होनी निश्चित हुई जिसकी तैयारी के लिए गाँववालो ने एक पंचायत का आयोजन बादलपुर में किया जिसमें पिताजी को भी आमंत्रित किया गया, पंचायत की अध्यक्षता कर रहे सज्जन ने पिताजी को बताया कि मायावती को गाँववाले 1 लाख रुपिया भेंट करना चाहते लेकिन अभी तक 51 हजार रुपिया ही इकट्ठा कर पाए है, पिताजी ने अपने मिलनेवाले लोगो से 40 हजार रुपिया और 11 हजार रुपिया अपनी तरफ से गाँव वालों को दिया इस तरह 1 लाख रुपये की व्यवस्था हुई, जब ये रुपिया मायावती को सभा मे भेंट करने की बात आई तो गाँव वालों ने पिताजी का नाम पुकारा तो पिताजी ने मंच पर जाने से मना कर दिया।
उसके बाद मायावती के पिताजी श्री प्रभु सिंह ने मायावती से पिताजी की भेंट करवाई मायावती पिताजी से मिलकर बहुत खुश हुई और बोली मैं तो आपका नाम बचपन से सुनती आ रही हूँ जब मै अपने पिताजी के साथ रेल में गाँव आती थी तो दूधवाले अक्सर आपका जिक्र किया करते थे मायावती ने पिताजी की भेंट मान्यवर काशीराम से करवाई तो उन्होंने पिताजी से अपनी पार्टी में शामिल होने का प्रस्ताव दिया , पिताजी उसके लिए तैयार भी हो गए पिता जी ने कहा ठीक है दादरी में एक जनसभा करके शामिल होंगे, 17 मार्च 1996 का समय सभा के लिए निश्चित हुआ दादरी के डिग्री कॉलेज में सभा का स्थान रखा गया बसपा के पुराने कार्यकर्ताओं को शक था की डिग्री कॉलेज के ग्राउंड को कैसे भरा जाएगा लेकिन पिताजी ने कहा की आप लोग उसकी चिंता छोड़ दीजिए मैं अपने आप कर लूंगा ।
दादरी रेलवे रोड पर स्थित हमारे किसान फ्लोर मिल में कैंप कार्यालय बनाया गया जहां पर धर्मवीर अशोक जैसे और कई कार्यकर्ता अपने साथ सिलाई मशीन लेकर पहुंचे मैंने उन्हें दादरी से नीले रंग के कपड़े के थान उपलब्ध कराएं जिससे उन्होंने बसपा के झंडे सिले। यह पिताजी का सौभाग्य था यह दुर्भाग्य था कि जब भी वह किसी दल को ज्वाइन करते थे वह दल अपने शुरुआती दौर में होता था और उसके झंडे बाजार में उपलब्ध नहीं होते थे हमें उन पार्टियों के झंडे हमेशा अपने हाथों से सिलवाने पड़ते थे चाहे 1991 में समाजवादी जनता पार्टी हो या 1996 में बसपा या 1997 में चौधरी अजीत सिंह की भारतीय किसान कामगार पार्टी रही हो इन सब के झंडे मैंने अपने हाथों से सिलवाए हैं खैर छोड़िए ।
17 मार्च की सभा की तैयारी पिताजी के द्वारा जोर शोर से शुरू हो गई मायावती भी इस सभा को लेकर खासी उत्साहित थी उन्होंने पिताजी को अपनी एक रंगीन फोटो जिसमें मायावती साड़ी पहने हुए हैं वह पोस्टर के लिए दी आमतौर पर मायावती साड़ी नहीं पहना करती थी वह अक्सर सूट में ही दिखाई देती थी लेकिन पिताजी ने जब उन्हें बताया की सभा के लिए मैं रंगीन पोस्टर छपवा रहा हूं तो उन्होंने अपनी साड़ी वाली फोटो पिताजी को दी बसपा के कुछ पुराने नेता जिन्होंने बाद में मायावती जी को धोखा भी दिया वह लोग पिताजी के मायावती के साथ बढ़ती नजदीकियों को देखकर खासे परेशान होने लगे थे इन्ही लोगो ने रैली के लिए पोस्टर और बैनरो को गंगा नहर में फेंक दिया जिससे सहारनपुर और मेरठ के लोग रैली में शामिल नही हो पाए क्योंकि यह लोग वही लोग थे जो मायावती के नाम पर चंदा उगाते थे और फिर उसे मिल बांट कर खाते थे पिताजी ने उन लोगों के नाम मायावती जी को बताया तो मायावती जी ने कहा कि भाई साहब मैं जानती हूं लेकिन आपसे इन लोगों का मुकाबला नहीं है 17 मार्च 1996 को दादरी में मायावती जी की सभा हुई जिसमें भारी भीड़ उमड़ी अखबारों ने लिखा कि इससे पहले दादरी में किसी नेता की इतनी बड़ी सभा नहीं हुई मायावती और कांशीराम दोनों हमारे घर गांव रूपवास भी आए। इसके बाद मायावती जी पिताजी का और अधिक सम्मान करने लगी काशीराम जी तो पहले से ही पिताजी को बहुत पसंद करते थे वह उनकी भाषण शैली से बहुत प्रभावित थे मायावती कई बार पिताजी को अपने साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दौरे पर साथ लेकर जाती थी उन्होंने पिताजी को वह सब जगह दिखाई जहां उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की के शुरुआती दौर में संघर्ष किया था मायावती जी ने पिताजी को कहा कि आपको पार्लियामेंट का चुनाव लड़ना है आप बागपत, मेरठ या कैराना में जहां चाहे वहां तैयारी कर लीजिए पिताजी ने मेरठ को चुना लेकिन इस सबसे जो बसपा के कुछ चालाक और चंदा इकट्ठा करने वाले नेता थे उनको परेशानी होने लगी इसी बीच मायावती जी ने पिताजी से कहा कि हमें गाजियाबाद के लिए एक मुस्लिम कैंडिडेट की जरूरत है पिताजी ने कहा मिल जाएगा कभी-कभी आपकी किस्मत आपको आपकी मंजिल की तरफ जबरदस्ती खींच कर ले जाती है ऐसा ही गाजियाबाद से सांसद रहे अनवार अहमद के साथ हुआ जो कि पिताजी के पुराने साथी थे पिताजी ने मायावती को उनका नाम गाजियाबाद से कैंडिडेट के रूप में सुझाया और बड़े भैया को अनवार अहमद जी को लेने के लिए गाजियाबाद मसूरी में उनके घर पर भेजा अनवार अहमद जी अपने घर में सो रहे थे भैया ने उसे जाकर कहा क्या अंकल आप को चुनाव लड़ना है अनवर अहमद अंकल हैरान होकर बोले कहां से और किस दल से भैया ने बताया कि आप तैयार हो जाइए पिताजी आपका इंतजार कर रहे हैं और आपको मायावती जी से मिलना है और गाजियाबाद से चुनाव लड़ना है उसके बाद पिताजी ने खुर्जा पर पूर्व सांसद वीरसेन जी का नाम मायावती जी को सुझाया और उनकी उनकी मुलाकात मायावती और कांशीराम जी से कराई अमेठी पर मोहम्मद ईशा खान और और बुलंदशहर पर राजेंद्र चौधरी का नाम की सिफारिश की, मायावती जी ने यह सभी टिकट फाइनल कर दिए और पिताजी से मेरठ से पर्चा भरने के लिए कहा लेकिन इसी दौरान एक मीटिंग लखनऊ में रखी गई जिसमें बसपा के उन लुटेरे नेता नेता ने पिताजी के मेरठ चुनाव लड़ने पर आपत्ति दर्ज की और कहा कि वैसे तो चौधरी साहब बड़ा नाम है लेकिन मेरठ में कहीं ऐसा ना हो कि बाहरी का टैग लग जाए यह उन लोगों की सोची समझी साजिश थी यह सुनकर पिताजी गुस्सा हो गए उन्हें मायावती जी ने शांत कराया और बोली भाई साहब मैं इन लोगों की हरकतें अच्छे से जानती हूं वैसे भी हम मेरठ जीत नहीं रहे आप रहने दीजिए आपने जिन लोगों की टिकट कराई है आप उन्हें चुनाव लड़वाए । हम लोग उन दिनों दिल्ली के लोधी रोड में एक सरकारी मकान में रहते थे पिताजी सुबह जब लखनऊ से लौटे तो उनका मूड खराब था हम दोनों भाइयों ने पिताजी से पूछा कि क्या हुआ पिता जी नाराज होकर बोले कुछ नहीं मायावती का सुधार नहीं हो सकता इसके आसपास हल्के फुल्के लोग हैं जो इसे आगे नहीं बढ़ने देंगे लेकिन हमने पिताजी को मना लिया और उन्हें मायावती जी के घर जो कि दिल्ली में खान मार्केट के पीछे था वहां ले गए मायावती जी ने भैया की मौजूदगी में कहां के मुन्ने भाई साहब मेरे घर के हैं भाई हैं मैं उनका बहुत आदर करती हूं मेरठ हम वैसे भी नहीं जीत रहे हैं भाई साहब को मैं अपने साथ उत्तर प्रदेश में रखूंगी और सरकार बनने पर मंत्री भी बनाऊंगी पिताजी अन बने मन से तैयार हो गए और गाजियाबाद और खुर्जा पर चुनाव लडवाने लगे दोनों ही कैंडिडेट के पास धन का बहुत अभाव था पिताजी इधर उधर से चंदा करके दोनों का काम चला रहे थे एक दिन काशीराम जी ने पिताजी को बुलाया और बोले आपके दोनों कैंडिडेट की क्या स्थिति है पिताजी ने कहा कि वीरसेन चुनाव जीत सकते हैं लेकिन पैसे की भारी कमी है मैं थोड़ा बहुत चंदा करता हूं उसी से काम चल रहा है तो काशीराम पिताजी को कमरे में अंदर लेकर गए और अपनी अपनी अलमारी से ₹2 लाख निकाल कर पिताजी को दिए और बोले यह वीरसेन को दे देना मायावती की छोटी बहन मुन्नी वहां पर यह सब देख रही थी पिताजी ने मुन्नी को बुलाया और कहा कि यह पैसे एक थैले में रख कर लाओ पिताजी यह समझ नहीं पाए कि मायावती और कांशीराम में आंतरिक रुप से मतभेद शुरू हो गए थे मायावती उन लोगों से नाराज हो जाती थी जोकि काशीराम जी के नजदीक होते थे पिताजी ने पैसा ले जाकर वीरसेन जी को दे दिया और उनसे रिसीव करा कर काशीराम जी को उसकी रसीद भी दे दी इसी दौरान मायावती से कुछ चाटुकार नेता ने जोकि पिताजी के बढ़ते कद से परेशान थे उन्होंने मायावती जी का कान भरने शुरू किए कि चौधरी साहब अपने भाषणों में दलित शब्द का प्रयोग नहीं करते हैं और जब हापुड़ में सभा हुई तो मायावती पिताजी को अपने साथ गाजियाबाद ले आई और बोली कि भाई साहब कार्यकर्ताओं को खाना नहीं मिल रहा है पिताजी ने कहा खाना सभी को मिल रहा है मुर्गा और शराब नहीं मिल पा रहा है जो कि हमारे पास नहीं है और मैं कार्यकर्ताओं से कहता हूं यदि यह लोग मायावती को मुख्यमंत्री और काशीराम को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं तो थोड़ा कम खा कर भी काम चला सकते हैं उसके बाद दूसरी सभा उसी दिन गाजियाबाद में रखी गई थी उस सभा में पहुंचने से पहले भी मायावती ने दोबारा पिताजी से कहां के कार्यकर्ता शिकायत कर रहे हैं जिससे पिताजी नाराज हो गए और उन्होंने मायावती के ड्राइवर को गाड़ी रोकने के लिए कहा पिताजी ने गाजियाबाद में गाड़ी रुकवा कर गाड़ी से उतर गए और दादरी पहुंचकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बसपा छोड़ने की घोषणा कर दी ।
क्योंकि पिताजी को अपने सम्मान और स्वाभिमान से समझौता ना करने वाले नेता के तौर पर जाना जाता है इसलिए उन्होंने यहां भी सत्ता के लिए अपने सम्मान से कोई समझौता नहीं किया।
उसके कुछ दिनों बाद मायावती दोबारा से उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गई और उनकी मुलाकात पिताजी से लखनऊ विधानसभा में हुई मायावती ने पिताजी से पूछा कि आप कब लखनऊ आए और कहां रुके हैं पिताजी ने कहा कि मैं गेस्ट हाउस मे रूका हूं तो मायावती जी ने कहा कि सरकारी में नहीं रुकते हो तो पिताजी ने कहा कि मैं सरकारी आदमी नहीं हूं उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव रहे जो आज कांग्रेस पार्टी में एक बड़े नेता हैं उन्होंने पिताजी को इशारा किया और कहां चौधरी साहब आप मुझे शाम को मेरे ऑफिस में मिलो शाम को 4:00 बजे जब उनके ऑफिस में पिताजी की मुलाकात हुई उन्होंने कहा की मायावती आपको मंत्री बनाना चाहती हैं इनके पास गुर्जरों में और नोएडा में कोई नेता नहीं है तो आप उनसे मिल लीजिए पिताजी ने यह कहकर की वह जो काम नोएडा में मुझसे करवाना चाहती हैं वह मैं नहीं कर पाऊंगा और चले आए ।
यही चीज पिताजी को और नेताओं से अलग करती थी।
साभार- यतेंद्र कसाना
पुत्र चौधरी बिहारी सिंह बागी की फेसबुक वॉल से
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