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एमिटी विश्वविद्यालय में गैर तापीय प्रसंस्करण पर 5 दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ

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नोएडा, 26 दिसम्बर।

एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी द्वारा शोधार्थियों को पौधे आधारित भोज्य प्रदार्थाे के भंडार या उपयोग होने तक की अवधि को बढ़ाने के लिए आधुनिक नवाचार गैर तापीय प्रसंस्करण की जानकारी प्रदान करने के लिए 26 से 30 दिसंबर तक पांच दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशााला का शुभारंभ उत्तराखंड के गोविंद वल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर डा रीता सिह रघुवंशी, पंजाब के संत लोंगोवाल इंस्टीटयूट ऑफ इंजिनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के फूड इंजिनियरिग एंड टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डा परमजीत पानेसर और एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी के निदेशक डा वी के मोदी ने किया। इस पांच दिवसीय कार्यशाला में देश के प्रख्यात संस्थानों और विश्वविद्यालयों से 25 शोधार्थी हिस्सा ले रहे है।

इस पांच दिवसीय कार्यशाला में विशेषज्ञों और विद्वानों द्वारा नान थर्मल टेक्नीक की क्षमता, वर्तमान स्तर और भविष्य के परिपेक्ष्य, पौधे भोज्य में पोषण गुणवत्ता के विकास हेतु खाद्य प्रसंस्करण तकनीक, स्थायी इंजिनियरिंग से टिकाउ और सक्रिय खाद्य पैकेजिंग आदि की जानकारी प्रदान की जायेगी। इसमें दिल्ली के इंडियन एग्री रिसर्च इंस्टीटयूट, नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एटंरप्रिन्यौरशिप एंड मैनेजमेंट सोनीपत, नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीटयूट करनाल, विगनान फांउडेशन फॉर साइसं, टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च, आध्रं प्रदेश, यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टीकल्चरल सांइसेस, कर्नाअक आदि ने 25 शोधार्थियों ने हिस्सा लिया।

उत्तराखंड के गोविंद वल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर डा रीता सिह रघुवंशी ने संबोधित करते हुए कहा कि कुपोषण से स्थायीत्व के युग यात्रा में तकनीक का विशेष महत्व रहा है। पोषण एक 100 साल पुराना विज्ञान है जो मानव शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पहचान करने में मदद करता है। सतत पोषण अत्यंत महत्वपूर्ण है। जो पर्यावरण के अनुकूल और संतुलित होना चाहिए। खाद्य समूहों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है जिसमें न्यूनतम प्रसंस्कृत भोजन, संरक्षित भोजन और अति संसाधित भोजन है जिनमें से अति संसाधित भोजन स्वास्थय के लिए खतरनाक है। खाद्य पदार्थो का का गैर थर्मल प्रसंस्करण भोजन को गर्म करने के हानिकारक प्रभावों से बचाता है जिससे पर्यावरण की रक्षा भी होती है।

पंजाब के संत लोंगोवाल इंस्टीटयूट ऑफ इंजिनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के फूड इंजिनियरिग एंड टेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डा परमजीत पानेसर ने कहा कि वर्तमान समय में यह आवश्यक है कि खाद्य प्रदार्थाे मे पोषक तत्वों को किस प्रकार समाहित रखा जाये क्योकी भोज्य प्रदार्थो के पोषक तत्वों के प्रति ग्राहक जागरूक है। प्राचीन समय से हम किसी वस्तु को बार बार गर्म नही करते थे इससे उसके पोषक तत्व कम हो जाते थे। खाद्य, पोषकतत्व और कृषि एक दूसरे एक जुड़े हुए है और हमें इन सभी को बचाना है। आज समस्याओं के निवारण हेतु ग्रीन तकनीकी का इस्तेमाल हो रहा है जिससे पर्यावरण को नुकसान नही होता। डा पानेसर ने कहा कि एमिटी द्वारा आयोजित यह कार्यशाला शोधार्थियों के निश्चित रूप से लाभदायक होगी।

एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी के निदेशक डा वी के मोदी ने स्वागत करते हुए कहा कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों के निवारण हेतु इस विषय का चयन किया है। किसी भी तकनीकी का महत्व तभी है जब उससे खाद्य प्रदार्थ का पोषण बना रहे और भोज्य प्रदार्थाे के भंडार या उपयोग होने तक की अवधि भी बढ़े। एमिटी विश्वविद्यालय इस प्रकार की कार्यशालाओं से शोधार्थियों को नवीनतम जानकारी प्रदान करता है जिससे खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में आ रही समस्याओं का निवारण किया जा सके।

इस अवसर पर अतिथियों द्वारा कार्यशाला आधारित पुस्तक का विर्माचन भी किया गया। कार्यक्रम में एमिटी इंस्टीटयूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डा श्वेता सूरी भी मौजूद थी।

 

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