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राजनीतिक गलियारा -क्या छोटे दलों के जरिये यूपी में सत्ता तक पहुंच पाएंगे अखिलेश यादव ?

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-छोटे दलों से क्या बढेगा समाजवादी पार्टी का ग्राफ

-2012 से अब तक बदल गया है सपा का आंतरिक संगठन, कुछ सामने खड़े होकर करेंगे मुकाबला

नई दिल्ली, 14 अगस्त।
यूपी में 2022 के चुनाव की तैयारियों में सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी रणनीति के हिसाब से जुट गए हैं। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने चुनौती है कि क्या वे 2012 जैसा करिश्मा कर पाएंगे। इसके लिए उनकी साइकल यूपी की सड़कों पर नजर आने लगी है। वे अभी पूर्वी यूपी के कुछ जिलों में साइकल यात्रा करने निकले। लोगों की भीड़ देखकर राजनीतिक पंडित इस बात की चर्चा करने लगे कि बीजेपी के सामने शक्तिशाली चुनौती सपा ही दे सकती है। सपा ने वर्ष 2012 में न केवल 224 विधानसभा सीट जीती थी बल्कि तब सपा को सबसे ज्यादा 29.15 प्रतिशत वोट मिले थे। एक दौर ऐसा भी था जब वर्ष 2004 में सपा के 36 लोकसभा सांसद चुनकर संसद में पहुंचे थे। पिछले दस सालों में यूपी की राजनीति और समाजवादी पार्टी की आंतरिक राजनीति में काफी बदलाव आ चुके हैं। अब योगी सरकार वर्ष 2022 में विकास और आध्यात्म के जरिए जनता को अपनी और खींचने की कोशिश में लगी है।
अक्टूबर 2022 में होंगे सपा को तीस साल
समाजवादी पार्टी का गठन 4 अक्टूबर 1992 में तब हुआ था जब दिसंबर में अयोध्या में विवादित ढांचा ध्वस्त हुआ था। तब से लेकर अब तक सपा ने कई बार यूपी में शासन किया। जब अगले साल समाजवादी पार्टी अपनी स्थापना के तीस साल मना रही होगी तब क्या वह यूपी में सत्ता तक पहुंचेगी। यह अभी दूर की बात है।मुलायम सिंह ने कभी बसपा के साथ मिलकर तो कभी अकेले प्रदेश में शासन किया। तब मुलायम सिंह यादव की रणनीति थी कि वे अपने साथ विपक्ष को जोड़ने में माहिर थे तभी तो मायावती के साथ मिलकर सरकार बनाई। सपा ने 1993 में 256 सीटों पर विधानसभा का चुनाव लडा और 109 विधायक जीते तब सपा को 17.94 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद 1996 में 110, 2002 में 143, 2007 में 97 विधायक जीते। 2012 में सपा ने 401 सीटों पर चुनाव लडा था और 224 सीट जीती। इससे साफ है कि जब सपा सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ती है तो उसकी ताकत बढ़ती है। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लडा। सपा को सिर्फ 47 सीट जीतने में ही कामयाबी मिल पाई और सपा का वोट प्रतिशत भी 1993 में हुए विधानसभा चुनाव में मिले वोट से थोड़ा ज्यादा यानि 21.82 प्रतिशत ही मिल पाया।
बदल गया है अब राजनीतिक परिदृश्य
2012 में जब समाजवादी पार्टी ने चुनाव लड़ा था तब भले ही पार्टी की कमान अखिलेश यादव को मिल गई थी मगर तब मुलायम सिंह यादव फील्ड में जनता के साथ कनेक्ट रहते थे। इसके साथ ही परिवार में मेल मिलाप की स्थिति थी। अब शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। मुलायम सिंह यादव सिर्फ मंच पर बैठे दिख जाते हैं उनकी मौजूदगी से भी वैसे पार्टी के कार्यकर्ताओं व समर्थकों पर असर पडता है। अखिलेश यादव ने जो रणनीति बनाई है उसके अनुसार पश्चिमी यूपी में उन्हें राष्ट्रीय लोकदल का साथ मिला है। इसके साथ ही आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद भी अपनी पार्टी को सपा के साथ गठबंधन की तरफ ले जा रहे हैं। इससे पश्चिमी यूपी में दलित, जाट व पिछड़ों के गठबंधन को एकजुट करने में सपा को मदद मिल सकती है। वही पूर्वी यूपी में यदि कुछ पिछडे दलों का साथ अखिलेश यादव को मिल जाता है तो यह भी तस्वीर बदलने वाली स्थिति हो सकती है।
2017 और 2019 के गठबंधनों का भी रहेगा असर
सपा ने वर्ष 2017 में कांग्रेस से गठबंधन किया। तब सपा को 47 सीट मिली। सपा को 21.82 प्रतिशत वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा को पांच सीट पर जीत मिली थी जबकि तब बसपा के साथ गठबंधन हुआ और बसपा ने दस सीट जीती थी। चुनाव के बाद ही बसपा से भी सपा का गठबंधन टूट गया। 2022 का चुनाव इस लिए महत्वपूर्ण है कि बसपा, कांग्रेस , बीजेपी और सपा अलग-अलग चुनाव लड रहे हैं। छोटे दल अभी परख रहे हैं कि किसके साथ रहने में फायदा है। कई दल वापस बीजेपी की तरफ जा रहे हैं। यह आने वाला समय बताएगा कि किस पार्टी को छोटे दलों का साथ मिलेगा। यदि अखिलेश यादव अपने बूते कुछ प्रभावी छोटे दलों को अपने साथ ले जाने में सफल हुए तो बीजेपी से मुकाबले के लिए सपा विकल्प के रूप में सामने आ सकती है। सपा के राष्ट्रीय अध्यश्र अखिलेश यादव ने आत्मविश्वास के  साथ कहा है कि 2022 में उनकी पार्टी तीन सौ से ज्यादा सीट जीतकर सत्ता में आएगी।
संगठन को उतनी मजबूती नहीं है अभी
सपा चुनाव लडने की तैयारी कर रही है। पार्टी संगठन को उतनी मजबूती नहीं मिली है जितनी 2012 के चुनाव में थी। कई जिलों में जिलाध्यक्ष हटा दिए गए नए जिलाध्यक्ष अभी तक नहीं बनाए हैं। संगठन पुराने जिलाध्यक्षों के जरिए ही काम चला रहा है। उधर पार्टी में कई गुट बने हुए हैं इनमें  कुछ सिर्फ मुलायम सिंह यादव के करीबी हैं। कई प्रोफेसर रामगोपाल यादव के करीबी हैं। अखिलेश यादव के करीबी लोगों की संख्या काफी कम है। कई नेताओं नेे हाल ही में सपा छोडी अब वे ही सपा के सामने दम भरते नजर आएंगे।
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(नोएडा खबर डॉट काम के लिए विनोद शर्मा की रिपोर्ट)

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