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यूपी में चुनावी हवा की लहर बदल पाएगी मुजफ्फरनगर की किसान महापंचायत, नेताओं की टिकी नज़रें

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क्या मुजफ्फर नगर की किसान महापंचायत तय करेगी पश्चिमी यूपी की हवा

विनोद शर्मा
नई दिल्ली, 4 सितम्बर।
यूपी में विधानसभा चुनाव को अब छह महीने का समय बचा है। ऐसे समय में सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से जमीन को मजबूत करने में लगे हुए हैं। बीजेपी के सामने चुनौती है कि वह अपनी चार साल से चली आ रही राजनीतिक सत्ता को बरकरार रखे और सपा व बसपा चाहेगी कि उनके हाथ यूपी की सत्ता लग जाए। ऐसे समय में पश्चिमी यूपी की राजनीति पर मुजफ्फर नगर में  पांच सितंबर को होने जा रही किसान महापंचायत अपना असर छोडेगी इस पर राजनीतिक पंंडितों की नजर है।
वर्ष 2022 का चुनाव पश्चिमी यूपी में उन राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है जो अभी अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाने की जुगत लगा रहे हैं। राष्ट्रीय लोकदल कभी पश्चिमी यूपी की सबसे बड़ी ताकत हुआ करता था। धीरे- धीरे वह ताकत कम होती चली गई। इसी तरह से भारतीय किसान यूनियन की ताकत दक्षिण भारत तक पहुंच गई थी। वह कई राज्यों में अपनी मीटिंग कर रहे थे। समाजवादी पार्टी भी इस समय 2017 का बदला बीजेपी से लेने को तत्पर दिखाई दे रही है। इस बात में कोई शक नहीं है कि भारतीय किसान यूनियन ने पिछले नौ महीने में किसान आंदोलन के चलते अपनी ताकत में इजाफा किया है। राकेश टिकैत अब उत्तर भारत के सबसे प्रभावी  किसान नेता के रूप में उभरे हैं। उनके बड़े भाई नरेश टिकैत ने मुजफ्फर नगर व पश्चिमी यूपी के कई जिलों में भाकियू के जरिए आंदोलन की कमान संभाल रखी है। नौ महीने पहले शुरू हुए किसान आंदोलन अभी तक लक्ष्य हासिल करने तक नहीं पहुंचा है। केंद्र सरकार भी इस आंदोलन के जरिए इसका नेतृत्व करने वालों पर नजर रखे हुए है।
गन्ने का भाव और तीनों काले कानून होगा बड़ा मुद्दा
किसान महापंचायत में देश भर के 15 लाख किसानों के आने के दावे भाकियू के पदाधिकारी व आयोजन समिति के सदस्य कर रहे हैं। इसमें यूपी का सबसे बड़ा मुद्दा गन्ने के दामों में तीन साल से कोई बढ़ोत्तरी ना करने की बात और तीनों किसान कानून को वापस लेने की मांग ही होगी। किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि पेट्रोल, डीजल  व बिजली के रेट कई बार बढ़ा दिए गए। इसका असर भी किसान की फसल लागत पर पड़ता है। इनका असर जनता पर सीधे पड रहा है। गन्ने की कीमत तीन साल पहले दस रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाई थी। इसके बाद नहीं बढ़ी, क्या इस दौरान गन्ने की लागत में बढ़ोत्तरी नहीं हुई। जिस तरह से महंगाई बढ़ी है उसके हिसाब से 450 रुपये प्रति क्विंटल के दाम गन्ने के होने चाहिए थे। यह मुद्दा महापंचायत में जोर शोर से उठेगा। तीनों किसानों के कानून को वापस लेने की बजाय सरकार ने वार्ता के दरवाजे भी बंद कर रखे हैं। इसके बावजूद किसानों की महापंचायत पर विपक्ष के मन में लड्डू फूट रहे हैं। उनका मानना है कि इससे पश्चिमी यूपी में बीजेपी के विरोध में लहर बनने की शुरुआत होगी। वहीं बीजेपी का मानना है कि किसान को गन्ने की रकम चीनी मिलों से निरंतर मिलती रही है। अब चीनी मिलों पर इतना बकाया नहीं है जितना सपा व बसपा के कार्यकाल में था। बहरहाल पांच सितंबर की किसान महापंचायत वोटरों के रुख में बदलाव कर पाई तो इससे न केवल विपक्ष को कुछ हासिल हो सकता है साथ ही केंद्र सरकार को किसानों की कुछ मांगों को मानने पर भी विवश होना पड़ सकता है। रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी रविवार को किसान महापंचायत में हेलीकाप्टर से आएंगे और उपर से ही फूलों की बारिश कर वापस दिल्ली आ जाएंगे। उनका कहना है कि उन्होंने प्रदेश व जिले के सभी आला अधिकारियों से परमीशन मांगी थी मगर नहीं मिली। उन्होंने किसान महापंचायत को अपना पूरा समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। देखना होगा कि अब यह महापंचायत कितनी भीड जुटाने में कामयाब होगी।
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(नोएडा खबर डॉट कॉम न्यूज ब्यूरो के लिए)

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