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भारत के इतिहास में खास हैं जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह, कभी अटल जी को भी लोकसभा चुनाव में हराकर सांसद बने थे

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(नोएडा खबर डॉट कॉम न्यूज़ ब्यूरो )

-यह है हाथरस की राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जीवन की रोचक दास्तान

-1915 में अफगानिस्तान के काबुल से की थी भारत की अनन्तिम सरकार की घोषणा, खुद को घोषित किया था राष्ट्रपति

-1906 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में भी हिस्सा लिया था

-1957 में मथुरा लोकसभा से अटल बिहारी वाजपेयी को हराकर बने थे सांसद

-1979 में 92 वर्ष की उम्र में हुआ निधन

अलीगढ़, 10 सितम्बर।

अलीगढ़ में जाट राजा महेंद्र प्रताप का नाम सुर्खियों में हैं। उनके नाम पर नए विश्वविद्यालय का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी 14 सितम्बर को करेंगे। राजा महेंद्र प्रताप के बारे में इतिहास खंगालने पर रोचक जानकारी मिली, आप भी पढिये यह जानकारी

 

हाथरस से है उनका नाता

जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1886 को हाथरस में हुआ।  वे राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र थे,  जब वे 3 वर्ष के थे तभी हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने उन्हें गोद ले लिया । 1902 में उनका विवाह जींद रियासत के सिद्धू जाट परिवार की बेटी बलवीर कौर से हुआ।  जब कभी महेंद्र प्रताप अपनी ससुराल जाते थे तो उन्हें 11 तोपों की सलामी दी जाती थी 1909 में उनके भक्ति नाम की पुत्री हुई और 1913 में प्रेम नाम के पुत्र का जन्म हुआ । राजा महेंद्र प्रताप सिंह 1906 में जींद के राजा की इच्छा के विपरीत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता में हुए अधिवेशन में हिस्सा लेने गए और स्वदेशी के रंग में रंग का लौटे। उन्होंने 1909 में वृंदावन में प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की यह देश का पहला ऐसा महाविद्यालय था जिसमें तकनीकी शिक्षा का विशेष ध्यान रखा गया जब इस महाविद्यालय का उद्घाटन हुआ तब पंडित  मदन मोहन मालवीय भी इसमें शामिल हुए।  उन्होंने एक ट्रस्ट बनाया,  इस ट्रस्ट को 5 गांव,  वृंदावन का राज महल और चल संपत्ति राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने दान कर दी उन्होंने 80 एकड़ का एक बाग वृंदावन में आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को दान कर दिया। उन्होंने अलीगढ में जिस कॉलेज की बीए क्लास में दाखिला लिया उसको भी जमीन दान की थी।

ऐसा रहा उनका राजनीतिक सफर

1915 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत की अनंतिम सरकार के अध्यक्ष बने थे दूसरे विश्व युद्ध में भी 1940 में उन्होंने जापान में भारतीय कार्यकारी बोर्ड का गठन किया कॉलेज के साथियों के साथ मिलकर बाल्कन युद्ध में भी हिस्सा लिया जब उन्हें अंग्रेजों ने विदेश जाने के लिए पासपोर्ट के जरिए परमिशन नहीं दी तब थॉमस कुक एंड संस के मालिक उन्हें अपनी कंपनी के p&o स्ट्रीमर के जरिए इंग्लैंड ले गए उनके साथ स्वामी श्रद्धानंद के पुत्र हरिश्चंद्र भी थे वहां जाकर उन्होंने जर्मनी के शासक केसर से मुलाकात की।  वहां से अफगानिस्तान बुडापेस्ट बलगारिया टर्की और हैरात गए। दिसंबर 19 15 में काबुल से उन्होंने भारत के लिए अस्थाई सरकार की घोषणा की जिस के राष्ट्रपति खुद और प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह खान बने । सोने की पट्टी पर लिखा हुआ एक सूचना पत्र उन्होंने रूस भेजा और इसके साथ ही अफगानिस्तान ने भी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया वे अफगानिस्तान की जनता के लिए रूस में लेनिन से मिले लेकिन लेनिन ने मदद देने से मना कर दिया । 1920 से 1946 तक विदेश में रहे विश्व मैत्री संघ की स्थापना की जब वह वापस आए तो सरदार पटेल की बेटी मनीबेन उन्हें लेने कोलकाता हवाई अड्डे पर पहुंची।

1957 में मथुरा से लोकसभा पहुंचे, अटल जी को हराया था

एक और खास बात यह है कि 1957 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मथुरा लोकसभा चुनाव लड़ा और वहां से जीतकर संसद में पहुंचे उन्होंने अटल बिहारी वाजपेई को हराया वाजपेई चुनाव में चौथे नंबर पर आए थे 29 अप्रैल 1979 को राजा महेंद्र प्रताप सिंह का निधन हो गया भारत सरकार ने उनके ऊपर एक डाक टिकट भी जारी किया था प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 सितंबर को राजा महेंद्र प्रताप सिंह के विश्वविद्यालय का शिलान्यास करेंगे ।

है ना राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जीवन की दिलचस्प दास्तान

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