राजनीतिक बहस : मोदी की तर्ज पर बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति की तरफ बढ़ते योगी आदित्यनाथ, संघ से मिला संकेत
1 min readविनोद शर्मा
नई दिल्ली, 25 नवम्बर।
महाराष्ट्र में बीजेपी को अविश्वसनीय जीत मिलने के बाद बीजेपी महाराष्ट्र के अध्यक्ष के बयान ने यूपी के।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक कद को और ऊंचा कर दिया है। उनका यह कहना कि महाराष्ट्र के कई विधानसभा क्षेत्रों में योगी की डिमांड थी मगर उनके झारखंड में व्यस्तता के कारण वे कई क्षेत्रों में नही जा सके वरना बीजेपी के विधायकों की संख्या और भी ज्यादा होती। इसी तरह आरएसएस ने भी योगी आदित्यनाथ के बटेंगे तो कटेंगे के बयान का समर्थन कर अप्रत्यक्ष रूप से यह संकेत दे दिया कि उनके साथ संघ खड़ा है।
देश मे राजनीतिक घटनाक्रम में यह याद रखना जरूरी है वर्ष 2002 में जब नरेंद्र मोदी को अटल जी ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने भेजा था तब वहां साबरमती एक्सप्रेस में हुई घटना के बाद दंगों से गुजरात की राजनीतिक प्रयोगशाला में नया प्रयोग किया। आज 22 वर्ष बाद भी गुजरात की राजनीति में विपक्ष कभी उभर नही पाया। इस दौरान नरेंद्र मोदी दिल्ली में बैठी कांग्रेस सरकार या कांग्रेस समर्थित सरकार के निशाने पर हमेशा रहे। नरेंद्र मोदी ने ऐसी परिस्थिति में बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी जगह वनाने के लिए गुजरात मॉडल की देश की राजनीति के साथ ही दुनिया के कई देशों में चर्चा के जरिये जगह बनाई। तब उनके सामने बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति के कई दिग्गज नेता 2012 से ही आगे बढ़ने लगे थे। इन सभी चुनौती के बावजूद मोदी आगे बढ़ते रहे और पीएम की कुर्सी तक पहुंच गए। वे आरएसएस के पहले संघ के स्वयंसेवक हैं जो पीएम की कुर्सी पर पहुंचे।
अब चर्चा यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की करते हैं। वे राजनीति में अपने बलबूते पर हैं। वे बीजेपी की कैडर से जुड़े नही बल्कि गोरखपुर क्षेत्र में अपने राजनीतिक दबदबे के साथ ही कट्टर हिन्दू नेता के जरिये ही अपनी छवि को मुखर करते रहे। वर्ष 2017 में बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री कैसे बनाया यह बताने की जरूरत नही है। तब मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाने की तैयारी थी। यह कार्य बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व को करना था। तब योगी आदित्यनाथ ने पार्टी हाई कमान के फैसले को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री का पद हासिल किया। उनके नेतृत्व कौशल में दो दो उपमुख्यमंत्री को उनके कार्य पर निगरानी के लिए भी बनाया गया। पहले मंत्रिमंडल में 11 नेता ऐसे थे जिन्हें दूसरे राजनीतिक दलों से बीजेपी में लाया गया था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिंदुत्व नेता की तरह ना केवल यूपी बल्कि देश के विभिन्न राज्यों के चुनाव प्रचार में स्टार प्रचारक के रूप में अपने बयानों के साथ ही गुंडा तत्वों से निपटने में सख्ती की कार्यशैली अलग ही छाप छोड़ गई। योगी आदित्यनाथ का यूपी में कोरोना काल मे जिस तरह से 9 अफसरों की टीम बनाकर जैसे काम किया वह भी अलग तरीका था। योगी आदित्यनाथ सरकार के दौरान ही बीजेपी और संघ को अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनाने का सपना पूरा करने का अवसर मिला। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में कई आपराधिक तत्वों के दबदबे को भी खत्म करने में योगी के कड़े फैसलों की कई राज्यों में चर्चा हुई।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने काशी के मुद्दे पर बेबाकी से बयान दिए। उन्होंने मथुरा में श्रीकृष्ण जन्म भूमि के मुद्दे को भी बार उठाकर हिंदुत्व की धार को तेज किया है। उन्होंने अयोध्या में दीपावली और मथुरा में होली के पर्व को अंतराष्ट्रीय उत्सव के रूप में स्थापित करने की पूरी कोशिश की है। उनके ही कार्यकाल में काशी के विश्वनाथ मंदिर को गौरवशाली संस्कृति के रूप में निखारने में मदद मिली है। आने वाले समय मे वे प्रयागराज में कुंभ के मेले को भारतीय संस्कृति के अद्भुत पर्व के रूप में स्थापित कर दुनिया में उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने और वन ट्रिलियन के योगदान के लक्ष्य की प्राप्ति में जुटे हैं।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर उत्तर प्रदेश में निवेश की संभावनाएं काफी बढ़ गई हैं। उत्तर प्रदेश में हर वर्ष इंटरनेशनल ट्रेड एक्सपो शुरू किया है। उन्होंने वर्ष 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बनकर यूपी के मुख्यमंत्रियों के बीच नया रिकॉर्ड बनाया । वह यूपी के पहले मुख्यमंत्री हैं को लगातार दूसरी बार सीएम बने हैं।
इन दिनों उन्होंने डीजीपी की नियुक्ति को लेकर एक ऐसा कानून बनाकर नई बहस छेड़ी जिसमे उन्होंने कहा कि अब यूपी में डीजीपी प्रदेश सरकार ही नियुक्त करेगी। काफी लंबे समय से राजनीतिक व प्रशासनिक गलियारों में इस बात की चर्चा रही थी कि डीजीपी व मुख्य सचिव की नियुक्ति के मुद्दे पर उनका गृह मंत्री अमित शाह से सीधा टकराव है। ऐसी परिस्थिति में योगी ने अलग राह तय की। वे ऐसी परिस्थिति में प्रदेश में सरकार चला रहे हैं जिसमे 22 मंत्री ऐसे हैं जो दूसरे राजनीतिक दलों से आएं है।इससे उनके नेतृत्व व कार्यशैली की झलक मिलती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम के बाद भी जब विपक्ष 43 सीट जीत गया तब भी पार्टी हाई कमान के कुछ नेताओं का बखूबी जवसब दिया । अब उन्होंने 9 उपचुनाव सीट में से 7 जीतकर अपने राजनीतिक कुशल शैली का परिचय दे दिया। वे यूपी से सीधे दिल्ली की राजनीति में कब छलांग लगाएंगे यह तो समय बताएगा मगर उनकी राजनीतिक यात्रा नरेंद्र मोदी की तर्ज पर धीरे धीरे आगे बढ़ रही है।
(खास खबर नोएडा खबर डॉट कॉम के लिए)
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