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स्पेशल स्टोरी-यूपी में चाचा और भतीजे के बीच बढा राजनीतिक दुलार, 22 नवम्बर को बदलेगा नजारा, गठबंधन या विलय

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-शिवपाल यादव क्या 22 नवंबर को सपा में विलय करेंगे या गठबंधन

(नोएडा खबर डॉट कॉम न्यूज ब्यूरो)
लखनऊ, 13 नवंबर।
छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे हम फिर से नई कहानी, जी हां फिल्मी गीत के ये बोल 22 नवम्बर को फिर से सार्थक होने जा रहे हैं जब मुलायम सिंह यादव के जन्म दिन पर चाचा शिवपाल और भतीजा अखिलेश एक सुर से यूपी की राजनीति को साधने निकलने वाले हैं। अभी शिवपाल यादव सामाजिक रथ यात्रा के जरिये अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाने निकले हुए है  वहीं अखिलेश यादव भी उसी पैटर्न पर अब गोरखपुर पहुंच चुके हैं।
इससे अंदाजा लग सकता है कि यूपी की राजनीति में वर्ष 2022 के चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक उलटफेर होने वाला है। सबसे पहले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जिस तरह से छोटे दलों से गठबंधन करना शुरू किया है उसका असर दिखने लगा है। पूर्वी यूपी में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी  से गठबंधन हो चुका है  और पश्चिमी यूपी में राष्ट्रीय लोकदल के साथ उनका गठबंधन 21 नवंबर को होने जा रहा है। 22 नवंबर को सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर शिवपाल यादव को लेकर बड़ी घोषणा होनी है। वह सपा में अपनी पार्टी का विलय करेंगे या अखिलेश यादव उनकी पार्टी के लिए प्रदेश में कुछ सीटें खोलेंगे। इस बीच रालोद को लेकर चर्चा कांग्रेस के साथ हो रही थी मगर उसे रालोद ने खारिज कर दिया है। 22 नवंबर को मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन के बहाने किस पार्टी का कौन सा नेता सपा के साथ जुड़ेगा यह भी पता चलेगा।
दरअसल सपा में मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल यादव जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ जुडने वाले एकमात्र नेता रहे हैं। उनके चचेरे भाई प्रोफेसर रामगोपाल यादव को लेकर उनका अलगाव हुआ और अब यूपी विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव और शिवपाल यादव ने कुछ नरम तेवर दिखाए हैं। दोनों के बयान में भी बदलाव आया है। पहले अखिलेश यादव ने कहा था कि वे चाचा के लिए जसवंतनगर विधानसभा सीट छोडेंगे। इसके बाद शिवपाल यादव ने इस पर कहा था कि वे अलग चुनाव लडेंगे। अब शिवपाल सपा के साथ मिलने को लगभग तैयार हैं। बताया जा रहा है कि दोनों को मिलाने में मुलायम सिंह यादव की बड़ी अहम भूमिका है। अब सवाल यह उठता है कि शिवपाल यादव की पार्टी का क्या होगा। उन्होंने दो दिन पहले बहराइच में यह संकेत भी दिया है कि मेरी कुछ शर्ते हैं जैसेे उनके करीबी लोगों को भी टिकट में प्राथमिकता दी जाए। 2017 के चुनाव के दौरान अखिलेश और शिवपाल यादव के अलग-अलग होने से दोनों के ही राजनीतिक प्रभाव पर असर पड़ा। 2012 में सत्ता में आई सपा को 2017 में 50 से भी कम विधानसभा सीट मिल पाई औऱ शिवपाल अकेले कुछ ऐसा नहीं कर पाए। शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से जुड़े पदाधिकारियों की मानें तो दोनों के बीच समझौता लगभग तय हो चुका है उसकी औपचारिक घोषणा होनी है। यह क्या है इस बारे में वे अभी पत्ते खोलने को तैयार नहीं है। बहरहाल शिवपाल यादव आने वाले दिनों मेें सपा में फिर से अहम भूमिका में होंगे यह भी लगभग तय हो चुका है। इससे समाजवादी पार्टी के वे नेता जो अखिलेश और शिवपाल के बीच दूरी होने की वजह से उनसे छिप-छिप कर मिल रहे थे उनकी बांछे खिली हुई हैं। इस दौरान पिछले पांच सालों में अखिलेश यादव भले ही जमीन पर इतने नजर नहीं आए मगर शिवपाल पूरे प्रदेश में दौरा करते रहे।
नोएडा खबर डॉट कॉम के लिए वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा की विशेष रिपोर्ट)

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