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धर्म-कर्म -श्री जैन तेरापंथी धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा श्री कनक प्रभा जी

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नोएडा, 21 दिसम्बर।

नारी संसार के मानचित्र पर उभरने वाली महाश्रमण साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी तेरापंथ की गौरवशाली साध्वी प्रमुखा ओं की परंपरा में आठवीं साध्वी प्रमुखा है उनका व्यक्तित्व तेरापंथ धर्म संघ की एक अप्रतिम उपलब्धि कहा जा सकता है।
गेंहुआ वर्ण, लंबा कद, चमकीली आंखें, सुगठित शरीर, फुर्तीली चाल, सौम्य आकृति- यह बाह्य व्यक्तित्व उनका जितना आकर्षक है, उससे भी कई गुना अधिक समृद्ध एवं आकर्षक है उनका आंतरिक व्यक्तित्व।
साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा जी का जन्म विक्रम संवत 1998 सावन कृष्ण त्रयोदशी को कोलकाता महानगर में हुआ।
उनका मूल निवास स्थान लाडनूं राजस्थान की वह पुण्य भूमि रही जिस भूमि को युग प्रधान आचार्य श्री तुलसी जैसे महापुरुष को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
साध्वी प्रमुख का कनक प्रभा जी ने 19 वर्ष की अवस्था में विक्रम संवत 2017 आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के ऐतिहासिक अवसर पर केलवा में आचार्य श्री तुलसी के हाथ से दीक्षा ग्रहण की।
उनके जीवन में एकाग्रता, नियमितता, पापभीरुता, दृढ़ संकल्प, कठोर संयम, अनथक परिश्रम आदि ऐसी विरल विशेषताएं रही है जो प्रतिक्षण उनके जीवन को नया निखार देती रही हैं। तेरापंथ धर्म संघ में प्रचलित शिक्षा के पाठ्यक्रम (M A के समकक्ष) में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर उन्होंने नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस पाठ्यक्रम के माध्यम से उन्होंने न केवल हिंदी, संस्कृत, प्राकृत भाषा पर अधिकार प्राप्त किया अपितु आगम दर्शन कोश, व्याकरण एवं साहित्य आदि विविध विषयों का तल स्पर्शी अध्ययन किया।
आचार्य श्री तुलसी ने उनके 30 वर्षीय युवा कंधों पर विशाल शादी संघ का दायित्व सौंपा। तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम का साधारण साध्वी प्रमुखा है जो गत 50 वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने का अद्भुत कार्य कर रही हैं।
उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन भरे मार्गदर्शन में तेरापंथ महिला समाज ने अभूतपूर्व प्रगति की है। महिला समाज अपने संस्कारों और संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए विकास पथ पर अग्रसर हो इसके लिए वे अहर्निश प्रयासरत हैं।
पुरुषार्थ
लेखिका साध्वी प्रमुखा कनक प्रभा
इस लेख की लेखिका जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम असाधारण साध्वी प्रमुखा है जो गत 50 वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने का अद्भुत कार्य कर रही हैं। उनकी प्रेरणा और प्रोत्साहन भरे मार्गदर्शन में तेरापंथ महिला समाज ने अभूतपूर्व प्रगति की है। महिला समाज अपने संस्कारों और संस्कृति को अक्षुण्ण रखते हुए विकास पथ पर अग्रसर हो इसके लिए वे अहर्निश प्रयासरत हैं।
सफलता के अनेक सूत्र है। उनमें पुरुषार्थ का स्थान सर्वोपरि है। व्यवसाय शिक्षा अध्यात्म आदि कोई भी क्षेत्र हो, उसमें सफलता तभी मिलती है जब व्यक्ति का अपना पुरुषार्थ होता है। उस व्यक्ति का भाग्य सो जाता है, जो पुरुषार्थ को खो देता है। मंजिल उसी को मिलती है जो चलता रहता है। आत्म कर्तत्व का सिद्धांत पुरुषार्थ का मूल मंत्र है। पुरुषार्थी व्यक्ति कभी निराश नहीं होता। जीवन की हर असफलता से प्रेरणा लेकर निरंतर पुरुषार्थ करने वाला व्यक्ति असंभव को भी संभव करके दिखा सकता है।
पुरुषार्थ का आधार है -आत्मविश्वास। मैं शक्ति संपन्न हूं, मैं सब कुछ कर सकता हूं, जो मेरे लिए करणीय है। मैं सब कुछ पा सकता हूं, जो मेरे लिए प्राप्य है। मैं वहां पहुंच सकता हूं, जो मेरा गंतव्य है। इस विश्वास के बल पर शक्ति का जागरण होता है, कार्य में दक्षता बढ़ती है मन में उत्साह जाता है और गति में शीघ्रता आती है। पुरुषार्थ से सफलता मिलती है यह भी एक सापेक्ष सत्य है। सही दिशा में सही विवेक के साथ किया गया पुरुषार्थ ही निष्पत्ति लाता है। गलत दिशा में किया गया पुरुषार्थ व्यक्ति को भटका देता है। विवेक चेतना का जागरण ना हो तो पुरुषार्थ वांछित परिणाम नहीं ला सकता। इसलिए दिशा- निर्धारण एवं विवेक जागरण से समन्वित पुरुषार्थ का ही मूल्य है।

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