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आज़ादी के मतवाले -क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा के बलिदान दिवस पर उनके जीवन की अनसुनी कहानी

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-75 आज़ादी का अमृत महोत्सव-

बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, समाज-सेवा, लोगों के आर्थिक स्वावलंबन, गुमनाम क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों पर शोध एवं उनके सम्मान के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था, आज देश के ज्ञात एवं अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण तथा बलिदान दिवस पर, उनके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए अद्भूत एवं अविस्मरणीय योगदान के सम्मान में नतमस्तक है

भगवती चरण वोहरा जी
जन्म : 15.11.1903 बलिदान : 28.05.1930

विचारक, प्रचारक, संगठनकर्ता, वक्ता एवं भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर बलिदानी क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा जी का जन्म 15.11.1903 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनके पिता ‘राय बहादुर’ शिव चरण वोहरा रेलवे के एक उच्च अधिकारी थे। बाद में वे सपरिवार आगरा से लाहौर चले आए। भगवती चरण वोहरा जी की शिक्षा-दीक्षा लाहौर में हुई। उनका विवाह कम उम्र में ही, कलेक्ट्रेट प्रयागराज के नाजिर रहे पं. बाँके बिहारी की पुत्री दुर्गा देवी से हो गया था, जो बाद में,उनके क्रांतिकारी कार्यो की सक्रिय सहयोगिनी बनी और क्रान्तिकारियों द्वारा दिए संबोधन दुर्गा भाभी से विख्यात हुईं। लाहौर नेशनल कॉलेज में, शिक्षा के दौरान भगवती चरण वोहरा जी ने छात्रों की एक अध्ययन मण्डली का गठन किया था। राष्ट्र की परतंत्रता और उससे मुक्ति के प्रश्न पर केन्द्रित इस अध्ययन मण्डली में नियमित रूप से शामिल होने वालों में भगत सिंह, सुखदेव आदि प्रमुख थे। बाद में चलकर इन्ही लोगों ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की।

भगवती चरण वोहरा जी ने सन् 1921 में गाँधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए कॉलेज छोड़ दिया और आंदोलन बंद होने के बाद नेशनल कॉलेज में पढाई पूरी करी तथा बीए की डिग्री प्राप्त की। साथ ही नौजवान भारत सभा के गठन और कार्य को आगे बढाया। इस सभा के महासचिव भगत सिंह और प्रचार-सचिव भगवती चरण वोहरा जी थे। सन् 1924 में सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी शचीन्द्र नाथ सान्याल जी द्वारा हिन्दुस्तान- प्रजातांत्रिक संघ के घोषणा पत्र – दि रिवोल्यूशनरी को 01.01.1925 को व्यापक से वितरित करने की प्रमुख जिम्मेदारी भगवती चरण वोहरा जी पर ही थी, जिसे उन्होंने बखूबी पूरा किया तथा क्रांतिकारी कार्यो को आगे बढाने में लगे रहे। उनका कहना था कि जो उचित है उसे करते जाना उनका काम है। सफाई देना और नाम कमाना उनका काम नही है। 06.04.1928 में नौजवान भारत सभा का घोषणा पत्र प्रकाशित हुआ। भगत सिंह व अन्य साथियो से सलाह मशविरे से मसविदे को तैयार करने का काम भगवती चरण वोहरा जी का था। नौजवान भारत सभा के उत्कर्ष में भगवती चरण और भगत सिंह का ही प्रमुख हाथ था। भगत सिंह के अलावा वे ही संगठन के प्रमुख सिद्धांतकार थे। क्रांतिकारी विचारक, संगठनकर्ता, वक्ता, प्रचारकर्ता, आदर्श के प्रति निष्ठा व प्रतिबद्धता तथा उसके लिए अपराजेय हिम्मत – हौसला आदि सारे गुण भगवती चरण वोहरा जी में विद्यमान थे। किसी काम को पूरे मनोयोग के साथ पूरा करने में भगवती चरण वोहरा जी बेजोड़़ थे।

देश की राजधानी दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान में, कई युवा क्रांतिकारियों ने सितंबर, 1928 में मीटिंग की और चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) को हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में पुनर्गठित किया। वोहरा जी को प्रचार सचिव नियुक्त किया गया तथा HSRA घोषणा-पत्र तैयार किया, जिसे कांग्रेस के लाहौर सत्र के समय, व्यापक रूप से वितरित किया गया था। स्वतंत्रता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उन्होंने युवा भारतीयों से अपने एकमात्र मार्गदर्शक के रूप में “सेवा, पीड़ा, बलिदान” के ट्रिपल आदर्श वाक्य को अपनाने का आग्रह किया। भगवती चरण वोहरा जी लखनऊ के प्रख्यात काकोरी एक्शन प्लान, लाहौर षड्यंत्र केस और फिर लाला लाजपत राय जी को मारने वाले अंग्रेज सार्जेंट, जे पी सांडर्स की हत्या में भी आरोपित थे। भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त द्वारा सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंकने के भी वह पक्षकार थे, परंतु वे कभी पकड़े नहीं गए और क्रांतिकारी कार्यों को पूरा करने में सदैव अपना योगदान देते रहे। वोहरा जी का अनूठापन इस बात में भी है कि वो विभिन्न क्रान्तिकारी आंदोलनों के लेखक,मुख्य-विचारक, संगठक, रणनीतिकार और प्रचारक रहे।

सन् 1929 में इन क्रांतिकारियों द्वारा लाहौर के कश्मीर बिल्डिंग में एक कमरा किराए पर लिया और इसे बम फैक्ट्री के रूप में इस्तेमाल किया। वोहरा जी लखनऊ के काकोरी कांड से लेकर लाहौर षड्यंत्र केस तक कई क्रान्तिकारी कार्यवाहियों के अभियुक्त होने के बावजूद वे ना तो कभी पुलिस द्वारा पकडे जा सके और ना ही कभी किसी अदालत ने उनको कोई सजा सुनाई। इसके बावजूद उन्होंने पकड़े जाने के भय के बिना आंदोलनों में अपनी भागीदारी नहीं रोकी। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि भगवती चरण जी ने स्पेशल ट्रेन में बैठे वायसराय को चलती ट्रेन में उड़ाने का भरपूर प्रयास किया। इस काम में उनके सहयोगी यशपाल, इन्द्रपाल, भागाराम थे। महीने भर की तैयारी के बाद, उन्होंने दिल्ली-आगरा रेलवे लाइन पर, वायसराय लॉर्ड इरविन की गुजरती हुई स्पेशल ट्रेन के नीचे 23.12.1929 को बम विस्फोट की योजना बनाई गई। ये बम-बिस्फोट करने में कामयाब हुए, परन्तु वायसराय बाल-बाल बच गया। ट्रेन में खाना बनाने और खाना खाने वाला डिब्बा क्षतिग्रस्त हो गया और उसमें एक आदमी की मौत हो गई। महात्मा गाँधी जी ने अपने लेख द कल्ट ऑफ बॉम्ब के माध्यम से क्रांतिकारी कृत्य की निंदा करते हुए, वाइसराय के बचने पर भगवान को धन्यवाद दिया। गाँधीजी के लेख के जवाब में भगवती चरण वोहरा जी ने चंद्रशेखर आजाद जी के परामर्श से द फिलॉसफी ऑफ बॉम्ब शीर्षक से एक लेख लिखा। इसमें युवाओं से आगे आकर उनसे जुड़ने की अपील की गई। वे अंतिम साँस तक भारत माता की मुक्ति के लक्ष्य को समर्पित रहे।

लाहौर षड्यंत्र केस में गिरफ्तार भगत सिंह एवं अन्य क्रांतिकारी साथियों के प्रस्तावित बचाव के लिए 28.05.1930 को लाहौर में रावी नदी के तट पर एक बम का परीक्षण करने के दौरान विस्फोट हो गया और भगवती चरण वोहरा जी गंभीर रूप से घायल होने से वीरगति को प्राप्त हुए। वोहरा जी अंतिम समय में जब गंभीर रूप से घायल थे, मृत्यु उनके समक्ष साक्षात् खड़ी थी, फिर भी उनके मुख पर ये शब्द थे कि *”ये नामुराद मौत दो दिन और टल जाती तो इसका क्या बिगड़ जाता ? अच्छा हुआ कि जो कुछ हुआ, मुझे हुआ। किसी और साथी को होता तो मैं भैया (आज़ाद) को क्या जवाब देता।”* अंतिम समय के ये शब्द उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और भारत माता के प्रति उनका अगाध प्रेम दर्शाता है। मातृभूमि सेवा संस्था आज देश के इस महान क्रांतिकारी, परमवीर योद्धा भगवती चरण वोहरा जी के 92वें बलिदान दिवस पर, उन्हें कोटि कोटि नमन एवं हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है।

✍️ जगदीश नारायण भट्ट
भतीज-पुत्र (पौत्र) दुर्गा भाभी, लखनऊ (उ.प्र.)
( मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 से साभार)

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