आज़ादी के मतवाले- सिखों के पांचवे गुरु : गुरु अर्जुन देव के बलिदान की अमर गाथा
1 min read75 आज़ादी का अमृत महोत्सव
बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, समाज-सेवा, लोगों के आर्थिक स्वावलंबन, गुमनाम क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों पर शोध एवं उनके सम्मान के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था, आज देश के ज्ञात एवं अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण तथा बलिदान दिवस पर, उनके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए अद्भूत एवं अविस्मरणीय योगदान के सम्मान में नतमस्तक
-गुरु अर्जुन देव जी
जन्म : 15.04.1563 बलिदान : 30.05.1606
धर्म हेतु बलिवेदी पर चढ़, बने प्रथम वह बलिदानी।
रावी की लहरें मचली तब, लिखने को अमर कहानी।।
-जगदीश सोनी जलजला’
📝राष्ट्रभक्त साथियों, आज हम बात करेंगे एक ऐसे सिख गुरु की, जिन्होंने मातृभूमि, धर्म व संस्कृति की रक्षा की एक बलिदानी परंपरा की नीव रखी। अंग्रेजी कैलेंडर अनुसार आज गुरु अर्जुन देव जी का बलिदान दिवस है। गुरू अर्जुन देव जी प्रथम सिख बलिदानी व सिखों के 5वें गुरु थे। गुरु अर्जुन देव जी बलिदानियों के सरताज एवं शान्तिपुंज हैं। आध्यात्मिक जगत में गुरु जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें ब्रह्मज्ञानी भी कहा जाता है। गुरुग्रंथ साहिब जी में 30 रागों में गुरुजी की वाणी संकलित है। गणना की दृष्टि से श्री गुरुग्रंथ साहिब जी में सर्वाधिक वाणी पंचम गुरुजी की ही है। श्री गुरुग्रंथ साहिब जी का संपादन गुरु अर्जुन देव जी ने भाई गुरदास जी की सहायता से वर्ष 1604 में किया। श्री गुरुग्रंथ साहिब जी की संपादन कला अद्वितीय है, जिसमें गुरुजी की विद्वत्ता झलकती है। गुरु अर्जुन देव जी गुरु रामदास जी के सुपुत्र थे।
📝गुरु अर्जुन देव जी ने अपने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू किए गए साँझे निर्माण कार्यों को प्राथमिकता दी। अमृतसर सरोवर का कार्य पूर्ण कर हरमिंदर साहिब जी का निर्माण कराया, जिसका शिलान्यास मुस्लिम फ़कीर साईं मियां मीर जी के हाथों से करवाकर धर्मनिरपेक्षता का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत किया। गुरुजी ने मानवसेवा हेतु कई परोपकारी कार्य प्रारंभ किए। गुरु अर्जुन देव जी ने सदैव धर्म, सेवा व पुण्य के ही कार्य किए किंतु जहांगीर गुरुजी की बढ़ती लोकप्रियता को पसंद नहीं करता था। इसी द्वेष में जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 30.05.1606 को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा व सियास्त’ कानून के तहत लोहे के गर्म तवे पर बैठाकर बलिदान कर दिया। `यासा व सियास्त` के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना घोर यातनाएँ देकर बलिदान किया जाता है। गुरुजी को तपते तवे पर बैठाया गया, ऊपर से गर्म-गर्म रेत डाली गई, जिसके कारण गुरु अर्जुन देव जी बलिदान हुए। अंत में उन्हें बहती रावी नदी में डाल दिया गया। महान सिख गुरुओं के साथ किया गया अत्याचार मुगलों के पतन का कारण बना।
मातृभूमि सेवा संस्था गुरु अर्जुन देव जी के 416वें बलिदान दिवस* पर उनके सम्मान में नतमस्तक है।
राकेश कुमार
(मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 से साभार)
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