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बीजेपी ने मोदी सरकार में 8 साल के दौरान बदल दिए राजनीति के मायने, नए प्रयोग से पलटी परिवारवाद की सत्ता

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-मोदी सरकार में बीजेपी के आठ साल, नए प्रयोग से बढ़ता राजनीतिक दबदबा
-यूपी के चुनावी प्रयोग से टूट गया सपा और बसपा का किला
– बड़े दल होने के बाद भी बिहार और महाराष्ट्र में छोटे दल को सौंपी सत्ता
-चुनावी वादे पूरे कर जीत रही जनता का विश्वास
विनोद शर्मा
नई दिल्ली, 5 जुलाई।
आपको याद होगा कि बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी काल में एक नारा होता था चाल चरित्र चेहरा व चिंतन के जरिए बीजेपी की पहचान होती थी। जब अटल जी लोकसभा में अपना बहुमत सिद्ध करना चाहते थे तब उन्हें सिर्फ एक वोट की कमी थी और उन्होंने समझौता करने की बजाय त्यागपत्र दे दिया। आज यह चर्चा इस लिए जरूरी है कि महाराष्ट्र  की राजनीति में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ ही कांग्रेस के महाअघाड़ी गठबंधन सरकार की बजाय वहां शिदे गुट के साथ मिलकर बीजेपी ने महाराष्ट्र में नई सरकार बना ली। इसमें भी चौंकाने वाली बात यह रही कि विधानसभा में बीजेपी के 106 सदस्य होने के बावजूद न केवल शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया बल्कि बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को उप मुख्यमंत्री पद लेने का निर्देश बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने दिया। यह ऐसा प्रयोग है जिस पर हर राजनीतिक पंडित हैरान है।
बीजेपी के राजनीतिक प्रयोग चौंकाते हैंं
बीजेपी ने देश में विस्तार के लिए ऐसे ऐसे फार्मूले अपनाए हैं जिन्हें सोचकर राजनीति के धुरंधर हैरान हैं। बिहार का सत्ता का फार्मूला भी महाराष्ट्र जैसा ही है। नीतीश कुमार के नेतृत्व में जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लडा। बीजेपी ने बिहार में चुनाव से पहले ही जनता के सामने यह वादा किया था कि उनका यह चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लडेगा और चुनाव घोषणापत्र भी मिलकर तय किया। जब चुनाव में परिणाम सामने आया तो बीजेपी नंबर गेम में नीतीश कुमार की पार्टी से ज्यादा थी। इसके बावजूद बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाकर ऐसा प्रयोग किया कि अब नीतीश कुमार जैसे नेता को आगे की रणनीति बनाने में दिक्कत हो रही है। नीतीश कुमार जैसा धुरंधर कभी वर्ष 2014 के चुनाव में पीएम के पद का प्रत्याशी था। इसके बाद बीजेपी की रणनीति से नीतीश कुमार की बीजेपी से नजदीकी बढ़ी और वे बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए। इस समय भी उन्होंने जातिगत जनगणना के मुद्दे पर अपना मुखर रूख बीजेपी की नीतियों के खिलाफ जाकर तैयार किया है। इस पर भी बीजेपी ने उनका समर्थन किया है। यह भी एक प्रयोग है कि नीतीश कुमार बिहार में जातिगत जनगणना कैसे कराते हैं। इससे विपक्ष को घेरने का मौका भी मिल रहा है। नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष आरसीपी सिंह को ना तो राज्यसभा का टिकट दिया है और ना ही उन्हें कोई तवज्जो दी है। इस पर बीजेेपी अभी मौन है। ठीक उसी तरह जैसे रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे के चुनाव में तेवर देखकर बीजेपी ने उनके भाई रामचंद्र पासवान को ज्यादा तवज्जो दी। हो सकता है बिहार में भी बीजेपी इस बात का इंतजार कर रही हो जैसे महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के ताश हुआ है। उनके कितने विधायक नीतीश कुमार के साथ जुडे हैं।
जम्मू कश्मीर में किया प्रयोग
जम्मू कश्मीर में बीजेपी ने अपना दबदबा बढाने और प्रशासनिक तंत्र में अपनी निगरानी बढ़ाने के लिए महबूबा मुफ्ती के साथ समझौता किया। जब तंत्र में भ्रष्टाचार की इंतहा हो गई और बीजेपी को जनता के साथ जुडने में कामयाबी मिली तो बीजेपी ने जम्मू कश्मीर से महबूबा मुफ्ती से नाता तोड लिया और अब वहां फिर से विधानसभा चुनाव लडने की तैयारी में है। महबूबा मुफ्ती ने अब यह घोषणा की है कि यदि धारा 370 के प्रावधान को दोबारा से लागू नहीं किया गया तो वे चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगी। इसी तरह की बात नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला कर रहे हैं। बीजेपी का यह प्रयोग जम्मू कश्मीर में परिवारवाद के तंत्र को कमजोर करने में कामयाब रहा है।
उत्तर प्रदेश में योगी का प्रयोग
यूपी में बीजेपी के पास वर्ष 2017 के चुनाव से पहले सपा-बसपा के बर्चस्व को तोडने का कोई ऐसा राजनीतिक फार्मूला नहीं था मगर 2014 के चुनावों में जैसे बीजेपी ने सुरक्षित सीटों को जीता और लोकसभा चुनावों में यूपी में 9 प्रतिशत मुस्लिम वोट हासिल किया उसी तर्ज पर बीजेपी ने 2017,2019, 2022 के चुनाव लडे और जीते। खास बात यह रही कि बीजेपी ने दूसरे राजनीतिक दलों से कई नेताओें को पहले अपनी पार्टी में ज्वाइन कराया और उनके बूते चुनाव जीतकर उन्हें पद भी दिए। वर्ष 2017 में बनी योगी सरकार में 11 मंत्री ऐसे थे जो मायावती सरकार में मंत्री थे। कई ऐसे नेता थे जो मुलायम सिंह के भी करीबी थे वे भी बीजेपी में शामिल हुए। यानी बीजेपी ने अपनी रणनीति में व्यापक फेरबदल किया। बीजेपी ने यूपी के विकास का नया मॉडल तैयार किया। पर्यटन को इस तरह विकसित किया जिससे अयोध्या,काशी, मथुरा और विंध्यावासिनी क्षेत्र में तीर्थ स्थल विकसित होने लगे। इसके साथ ही औद्योगिक कॉरिडोर बनाए। वन डिस्ट्रिक्ट वन उत्पाद के जरिए हर जिले के परंपरागत उत्पाद को आगे बढ़ाया। इससे पांच साल में यूपी का निर्यात दो गुना हो गया। अब एक ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखा है।
उत्तराखंड और गुजरात में किए नए प्रयोग
बीजेपी ने उत्तराखंड में 2017 के बाद से लेकर 2022 के बीच तीन मुख्यमंत्री बदले। फिर से सत्ता में आ गए। गुजरात में भी मुख्यमंत्री बदलने का प्रयोग किया है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को उखाडकर वहां फिर से बीजेपी की सरकार बनाने का प्रयोग किया है।
राष्ट्रीय स्तर पर कई मुद्दे हल किए
बीजेपी ने अपनी छवि बनाने के लिए कई ऐसे फैसले किए हैं जिससे जनता का भरोसा जीता जा सके। इसी लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे को दिया। जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने, तीन तलाक का बिल पास कराना, अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण, देश में एक्सप्रेस वे और हाईवे का निर्माण की रफ्तार के साथ ही नया भारत व आत्मनिर्भर भारत के साथ आगे बढ़ने की कोशिश की है।
परिवारवाद की राजनीति को मुक्त करने पर जोर
बीजेपी की नजर ऐसे राजनीतिक दलों पर है जो परिवारवाद के जरिए कई-कई वर्षों से सत्ता पर काबिज है। उन्हें सत्ता से हटाने की रणनीति के तहत वह अपना एजेडा तय कर रही है। तेलंगाना में हाल ही में हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अधिवेशन में तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर पर परिवारवाद का आरोप लगाकर वहां राजनीतिक सक्रियता बढाने में लगी है।
(लेखक विनोद शर्मा वरिष्ठ पत्रकार व नवभारत टाइम्स में विशेष राजनीतिक संवाददाता रहे हैं )

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