

लखनऊ, 12 जून।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने पावर कॉरपोरेशन द्वारा पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के लिए तैयार किए गए आरएफपी (Request for Proposal) दस्तावेज पर विद्युत नियामक आयोग से मंजूरी लेने की प्रक्रिया का कड़ा विरोध किया है।
समिति ने कहा कि नियामक आयोग के वर्तमान अध्यक्ष अरविंद कुमार को इस मामले में कोई अभिमत देने का नैतिक और कानूनी अधिकार नहीं है, क्योंकि उन्होंने 6 अक्टूबर 2020 को पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष के रूप में एक लिखित समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें निजीकरण के प्रस्ताव को वापस लेने और कर्मचारियों को विश्वास में लिए बिना निजीकरण न करने की बात कही गई थी।
संघर्ष समिति ने आरोप लगाया कि पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष गोयल और ट्रांजैक्शन कंसलटेंट ग्रांट थॉर्नटन, जिसे अवैध रूप से नियुक्त किया गया है, द्वारा तैयार आरएफपी दस्तावेज पर नियामक आयोग से संस्तुति लेने की कोशिश की जा रही है। समिति ने इसे नियमों के खिलाफ बताया और कहा कि नियामक आयोग को इस पर कोई चर्चा नहीं करनी चाहिए।
समिति ने यह भी बताया कि आयोग के सदस्य संजय सिंह भी पूर्व में पावर कॉरपोरेशन के कर्मचारी रह चुके हैं, इसलिए वे भी इस मामले में अभिमत नहीं दे सकते। साथ ही, आयोग में वर्तमान में कोई लॉ मेंबर नहीं है, जिसके कारण तकनीकी रूप से कोरम पूरा नहीं होता।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों, जिनमें संजय सिंह चौहान, जितेंद्र सिंह गुर्जर, गिरीश पांडेय, महेंद्र राय, सुहैल आबिद, चंद्र भूषण उपाध्याय, विवेक सिंह, शैलेंद्र दुबे आदि शामिल हैं, ने कहा कि पावर कॉरपोरेशन झूठे आंकड़ों और कर्मचारियों को गुमराह करके निजीकरण की जिद पर अड़ा है। इससे भीषण गर्मी में औद्योगिक अशांति का माहौल बन रहा है, जो उपभोक्ताओं के लिए बिजली आपूर्ति को प्रभावित कर सकता है। समिति ने मांग की कि पावर कॉरपोरेशन निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रोक दे, ताकि कर्मचारी पूर्ण मनोयोग से उपभोक्ताओं को निर्बाध बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सकें।
विरोध के तहत समिति के आह्वान पर आज लगातार 197वें दिन प्रदेश भर में प्रदर्शन किए गए। वाराणसी, आगरा, मेरठ, कानपुर, गोरखपुर, मिर्जापुर, आजमगढ़, बस्ती, अलीगढ़, मथुरा, झांसी, बरेली, अयोध्या, सहारनपुर, नोएडा, गाजियाबाद, मुरादाबाद, हरदुआगंज, ओबरा, पिपरी और अनपरा सहित कई शहरों में विरोध सभाएं आयोजित हुईं।