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सेहत की बात : सेहत को बेहतर करने के लिए हर मां को 10 टेस्ट कराने चाहिए-डॉ मोनिका मलिक, अपोलो अस्पताल

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डॉ मोनिका मलिक, सीनियर कंसल्टेंट-

गायनेकोलॉजिस्ट और ऑब्सटेट्रिक्स, अपोलो 24/7 & अपोलो हॉस्पिटल, सेक्टर 26, नोएडा

ऐसा अक्सर होता है कि माताएं अपने बच्चों, परिवार और दोस्तों की सेवा पानी करने के लिए हमेशा आगे रहती हैं। लेकिन जब ख़ुद की देखभाल की बात आती है तो वे अपना ख़ास ध्यान नहीं देती हैं। जो महिलाएं नौकरी करती हैं, वे अपने काम और निजी जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने में इतना मशगूल हो जाती हैं कि अपनी सेहत के बारे में ध्यान ही नही दे पाती हैं। गृहिणियां सुबह-से-रात तक घर के कामों में लगी रहती हैं और अपनी सेहत को ज्यादा तवज्जों नहीं देती हैं। हालाँकि आज के समय में सबके हाथो में स्मार्टफोन है , और स्मार्टफोन की मदद से अपनी सेहत की निगरानी 24×7 करना आसान हो गया है। इस आर्टिकल में हम 10 ऐसे टेस्ट के बारे में बात करने जा रहे हैं जिन्हे हर मां को कराना चाहिए ताकि किसी भी संभावित बीमारी से बचा जा सके और अगर कोई बीमारी का लक्षण पता भी चलता है तो समय पर रोकथाम करके बीमारी को खत्म किया जा सके।

1- डायबिटीज:-

भारतीय महिलाओं में डायबिटीज 7.5% महिलाओं को है। इसलिए सभी महिलाओं, खास करके माताओं को नियमित रूप से अपने ब्लड शुगर की जांच करवाना चाहिए। डायबिटीज महिलाओं के स्वास्थ्य में लॉन्ग टर्म के लिए नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, खास करके गर्भावस्था, प्रसव के बाद, स्तनपान और मेनोपॉज की अवस्था में डायबिटीज खतरनाक परिणाम पैदा कर सकता है। डायबिटीज का डायग्नोसिस करने के लिए आप ब्लड टेस्ट जैसे कि फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज (FPG) टेस्ट, ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (OGTT), और ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (HbA1c) टेस्ट करवा सकते हैं।

2- थायराइड:

थायराइड की जांच महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है, जितनी डायबिटीज की। हालांकि अक्सर महिलाएं थायराइड की जांच नही कराती हैं। इस तरह की जांच में थायरॉयड ग्रंथि के कामकाज का मूल्यांकन किया जाता हैं। कभी-कभी अचानक वजन बढ़ना या वजन कम होना थायराइड की बीमारी का संकेत होता है। महिलाएं थायराइड के लिए TSH (थायरॉइड-स्टिमुलेटिंग हार्मोन) टेस्ट या T4 (थायरोक्सिन) टेस्ट या संपूर्ण थायरॉयड प्रोफ़ाइल टेस्ट करवा सकती हैं।

3- हाइपरटेंशन:

भागदौड़ भरी जिंदगी में महिलाएं अक्सर हाइपरटेंशन की चपेट में आ जाती हैं। ऐसे में वे हाई ब्लड प्रेशर की शिकार हो जाती हैं। इसलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि 35 वर्ष से ज्यादा उम्र की महिलाओं को नियमित अंतराल पर अपने ब्लड प्रेशर विटल्स की जांच करवानी चाहिए। सामान्य ब्लड प्रेशर सीमा 120/80 माना जाता है।

4- कोलेस्ट्रॉल :

लिपिड टेस्ट अच्छे और बुरे कोलेस्ट्रॉल, कुल कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स के लेवल को मापने के लिए किया जाता है। इस तरह का टेस्ट हर एक महिला को करवाना चाहिए। कोलेस्ट्रॉल का लेवल ज्यादा होने से हृदय की बीमारियों के होने का ख़तरा ज्यादा होता है। इससे स्ट्रोक भी हो सकता है क्योंकि कोलेस्ट्रॉल रक्त वाहिकाओं में जमा हो सकता है। कोलेस्ट्रॉल के टेस्ट के लिए, व्यक्ति को 12 घंटे तक उपवास करने की आवश्यकता होती है, और 30 वर्ष की आयु के बाद महिलाओं के लिए 5 साल में एक बार कोलेस्ट्रॉल की जांच कराने की सलाह दी जाती है। हालांकि हाई कोलेस्ट्रॉल वाले व्यक्तियों या जोखिम वाली महिलाओं को हर 6 महीने में नियमित जांच करवानी चाहिए।

5- विटामिन D :

महिलाओं को स्वस्थ हड्डियों के विकास और एक मज़बूत इम्यून सिस्टम के साथ-साथ डायबिटीज, हृदय की बीमारी और कुछ प्रकार के कैंसर जैसी बीमारियों से सुरक्षा के लिए विटामिन D के पर्याप्त मात्रा ज़रूरी होती है। इसलिए महिलाओं के लिए अपने विटामिन D के स्तर की जाँच कराना महत्वपूर्ण है। महिलाओं की उम्र बढ़ने पर उनमें विटामिन D का उत्पादन करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे अंगों में दर्द हो सकता है, बार-बार फ्रैक्चर हो सकता है या हड्डियों का घनत्व कम हो सकता है। इसलिए टेस्ट के लिए डॉक्टर से कंसल्ट करने की सलाह दी जाती है, खासकर अगर इनमें से कोई भी लक्षण देखा जाता है तो उन्हे विटामिन D की जांच करवानी होती है।

6- पैप स्मीयर :

सर्वाइकल कैंसर का जल्दी पता लगाने के लिए 30 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं को अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ के पास नियमित रूप से फुल पेल्विक एग्जाम (पूर्ण श्रोणि परीक्षा) और पैप स्मीयर टेस्ट कराना चाहिए। भारतीय महिलाएं HPV वैक्सीन लगवा कर सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों से बच सकती हैं। यह वैक्सीन 14 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों को दो खुराक में दी जाती है। यहां तक कि अगर वैक्सीन लगाई जाती है, तो 21 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं या जो 3 साल से कम समय से यौन रूप से सक्रिय हैं, उन्हें अभी भी सलाह के अनुसार पैप स्मीयर टेस्ट करवाना चाहिए।

7- मैमोग्राम :

स्तन कैंसर भारत में कैंसर से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। अगर स्तन कैंसर की पहचान जल्दी हो जाए तो इन मौतों को रोका जा सकता है। इसके लिए हर महिला को नियमित स्क्रीनिंग कराना चाहिए। स्क्रीनिंग में 40 से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं को साल में एक बार मैमोग्राम और महीने में एक बार खुद से जांच करनी चाहिए। एक्सपर्ट जांच से गांठ, दर्द या डिस्चार्ज जैसे समस्याओं की पहचान की जा सकती हैं और संदेह होने पर डॉक्टर की मदद ली जा सकती है।

8- बोन मिनिरल डेंसिटी टेस्ट:

महिलाएं अक्सर ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित होती हैं। इससे उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन का लेवल कम होने के कारण यह स्थिति और बिगड़ जाती है। गौरतलब है कि एस्ट्रोजन हड्डियों के निर्माण और रखरखाव को प्रभावित करता है। हड्डी की मजबूती और फ्रैक्चर के खतरे की पहचान करने के लिए जिन महिलाओं को मेनोपॉज हो गया है या फ्रैक्चर हो गया है, उन्हें DEXA स्कैन नाम के बोन मिनिरल डेंसिटी टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है। कई महिलाओं मे हड्डियों की डेंसिटी कम हो जाती और इसका उन्हे पता भी नही चलता है। इसलिए विशेषज्ञों का सुझाव है कि एक महिला को 35 साल की उम्र के बाद हर 5 साल में इस टेस्ट को कराना चाहिए।

9- कंपलीट ब्लड काउंट-

महिलाओं के लिए ख़ून से संबंधित एक महत्वपूर्ण ब्लड टेस्ट है। इस टेस्ट से संक्रमण, एनीमिया और ख़ून की बीमारियों सहित विभिन्न बीमारियों की पहचान करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही प्रजनन स्वास्थ्य की निगरानी के लिए इस टेस्ट को कराना चाहिए क्योंकि इस टेस्ट से भारी मासिक धर्म रक्तस्राव और कमजोर इम्यूनिटी सिस्टम का पता लगाया जा सकता है, जिससे महिलाओं को गर्भावस्था और प्रसव के बाद संक्रमण का खतरा हो सकता है। इसलिए यह टेस्ट महिलाओं को जरूर कराना चाहिए।

10- एलर्जी –

पुरुषों और महिलाओं दोनों में एलर्जी की पहचान करने के लिए एलर्जेन-स्पेसिफिक आईजीई टेस्ट कराने चाहिए। लेकिन यह टेस्ट उन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है जो गर्भवती हैं या गर्भ धारण करने की योजना बना रही हैं। एलर्जी का मां और विकासशील भ्रूण दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, और कुछ एलर्जी दवाएं गर्भावस्था के दौरान सुरक्षित नहीं हो सकती हैं। इसके अलावा अगर कोई महिला स्तनपान करा रही है, तो उनके विशिष्ट एलर्जी को जानने से उन्हें ऐसे खाद्य पदार्थों या पदार्थों से बनी चीजों को खाने से बचने में मदद मिल सकती है। इन एलर्जी वाले खाद्य पदार्थों से उनके गर्भ मे पल रहे बच्चे में एलर्जी रिएक्शन पैदा कर सकते हैं।

निष्कर्ष

ऊपर बताए गए ये 10 टेस्ट हर मां की सेहत को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं। याद रखें रोकथाम हमेशा इलाज से बेहतर होता है। इसलिए बीमारी का जल्दी पता लगाना और आपके शरीर के अंदर क्या हो रहा है, इसके बारे में लगातार जागरूक रहना हमेशा बेहतर होता है।

(यह डॉक्टर के निजी विचार है, जनहित मे noidakhabar ने यह लेख प्रकाशित किया है)

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