सुप्रीम कोर्ट का आदेश, नोएडा में गिराई जाएंगी 40 मंजिला दो टावर
1 min read– सुपरटेक एमराल्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
– जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच का फैसला
नई दिल्ली, 31 अगस्त।
नोएडा में सेक्टर 93 में सुपरटेक की एमराल्ड कोर्ट में बने दोनो 40 मंजिला टावर गिराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जुस्टिक एम आर शाह की बेंच ने यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। ये टावर नियम कानून ताक पर रखकर बनाये गए थे। जिन्हें गिराने का आदेश वर्ष 2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दिया था। इसके खिलाफ सुपरटेक बिल्डर सुप्रीम कोर्ट में चले गए थे। वर्ष 2009 का यह मामला है। तब से यह सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था।
जस्टिस चंद्रचूड ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ये मामला नोएडा अथॉरिटी और डेवलपर के बीच मिलीभगत का एक उदाहरण है, इस मामले में सीधे-सीधे बिल्डिंग प्लान का उल्लंघन किया गया। नोएडा अथॉरिटी ने लोगों से प्लान शेयर भी नहीं किया। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट का टावरों को गिराने का फैसला बिल्कुल सही था। पर्यावरण का संरक्षण और नागरिकों की सुरक्षा जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना था कि नोएडा एक्सप्रेस वे स्थित 40 मंजिला दोनों टावरों को गिराया जाए या नहीं। इस मामले में पांच अगस्त को अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा था
दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में हाउसिंग सोसायटी में नियमों के उल्लंघन पर दोनों टावर गिराने के आदेश दिए थे। इसके साथ ही प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे। इसके बाद सुपरटेक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाई थी, साथ ही NBCC को जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था
सुनवाई के दौरान में बिल्डर का पक्ष लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को जमकर फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप बिल्डर की भाषा बोल रहे हैं, आपके अंग-अंग से भ्रष्टाचार टपकता है यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा एक्सप्रेसवे स्थित सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट केस में नोएडा प्राधिकरण द्वारा अपने अधिकारियों का बचाव करने और फ्लैट बायर्स
की कमियां बताने पर की
सुनवाई में नोएडा अथॉरिटी के अधिवक्ता रविंदर कुमार ने प्राधिकरण के साथ ही उसके अधिकारियों का बचाव किया और कहा कि सुपरटेक एमराल्ड मामले में सभी नियमों का पालन किया गया है। इसके साथ ही अधिवक्ता ने फ्लैट बायर्स की कमियां भी गिनानी शुरू कर दीं
इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि यह दुख की बात है कि आप पब्लिक अथॉरिटी होते हुए डेवलपर्स की ओर से बोल रहे हैं, आप कोई निजी अथॉरिटी नहीं हैं जबकि सुपरटेक की ओर से विकास सिंह ने पीठ से कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर टावरों को गिराने में नियमों की अनदेखी नहीं की है
सिंह ने भी फ्लैट बायर्स पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि 2009 में टावरों का निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया था। इसके बाद भी तीन साल बाद वे हाईकोर्ट क्यों गए? इस पर जस्टिस शाह बोले कि प्राधिकरण को तटस्थ की भूमिका निभानी चाहिए थी। ऐसा लगता है कि आप बिल्डर की भाषा बोल रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि अथॉरिटी फ्लैट बायर्स से लड़ाई लड़ रही है। इस पर रविंदर कुमार ने कहा कि वह तो अथॉरिटी का पक्ष रख रहे हैं।
यह जनता ने जीती जंग
नोएडा में बिल्डर से जनता ने खूब टक्कर ली। एमराल्ड कोर्ट की आर डब्ल्यू ए ने दोनों टॉवर पर आपत्ति उठाई थी। उनकी बात को तवज्जो नही दी गई। जब वे इलाहाबाद हाई कोर्ट गए तब उन्होंने वास्तविक रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखी।हाई कोर्ट ने दोनों टॉवरों को गिराने का आदेश 2014 में दिया था। तब बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। जिस पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है।
बिल्डर को खुद तोड़ने होंगे टावर
सुप्रीम कोर्ट ने दोनों टॉवर खुद के खर्च पर तीन महीने में तोड़ने, फ्लैट्स खरीददार को 12 प्रतिशत की ब्याज दर से सभी रकम वापस करने, आरडब्ल्यू ए को 2 करोड़ रुपये देने को कहा है।
मा० उच्चतम न्यायालय द्वारा सुपरटेक इमराल्ड कोर्ट के संबंध में दिनांक 31.08.2021 को पारित आदेश के संबंध में।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नोएडा प्राधिकरण ने जारी किया सिलसिलेवार ब्यौरा, कहा दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू
उपरोक्त प्रकरण का घटनाक्रम लगभग 10 वर्ष पुराना है। मा० उच्चतम न्यायालय द्वारा दिनांक 31.08-2021 को मै० सुपरटेक द्वारा सेक्टर-93ए में भूखण्ड संख्या जीएच 04 पर निर्मित इराल्ड कोर्ट के 02 टापर्स टी-16 व टी-17 को ध्वस्त किये जाने के आदेश पारित किये गये है। आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने के उपरान्त प्राधिकरण द्वारा आदेश क्रियान्वयन पर नियमानुसार कार्यवाही की जायेगी। प्रकरण के संबंध में संक्षिप्त विवरण निम्नवत है
11 ग्रुप हाउसिंग भूखण्ड संख्या जीएच 04 सैक्टर-93ए नीएडा का आवंटन एवं मानचित्र स्वीकृति का प्रकरण वर्ष 2004 से वर्ष 2012 के मध्य का है। भूखण्ड का कुल क्षेत्रफल 54815.00 वर्ग मी0 है। इस मूखण्ड पर मानचित्र स्वीकृति समय-समय पर वर्ष 2005, 2006 2009 तथा 2012 में प्रदान की गयी है।
2. दिनांक 10.12.2012 को संदर्भित योजना की आरडब्लूए द्वारा मा० उच्च न्यायालय इलाहाबाद में रिट याचिका दायर की गयी, जिसमें उनके द्वारा मुख्य बिन्दु यह उठाया गया कि नेशनल बिल्डिंग कोड-2005 तथा नौएडा भवन विनियमावली 2010 में दिए गए प्राविधानों के विपरीत टॉवर संख्या-टी-01 तथा टी-17 के बीच न्यूनतम दूरी नहीं छोड़ी गयी है तथा वहाँ रहने वाले निवासियों से सहमति प्राप्त नहीं की गयी है।
3 दिनांक 11.04.2014 को मा० उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा टावर संख्या टी-16 व
टी-17 को ध्वस्त किये जाने के साथ-साथ बिल्डर व प्राधिकरण के तत्कालीन दोषी
व्यक्तियों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही किये जाने के आदेश पारित किये गये। 4. उपरोक्त आदेशों के विरूद्ध मा० उच्चतम न्यायालय में दायर एस. एल.पी. नं०-11959 / 2014 सुपरटेक लि० बनाम इम्राल्ड कोर्ट ऑनर रेजीडेन्ट वैलफेयर एसोसिएशन व अन्य में दिनांक 05.05.2014 को टावर संख्या टी-16 व टी-17 में यथास्थिति बनाये रखने के आदेश मा० न्यायालय द्वारा पारित किये गये।
5. मा० उच्चतम न्यायालय द्वारा उक्त एस.एल.पी. पर दिनांक 31.08.2021 को विस्तृत आदेश पारित किये गये है। इसमें मुख्यत मा० उच्च न्यायालय इलाहाबाद द्वारा पारित आदेश के क्रम में यह आदेश भी पारित किये गये कि टावर संख्या- टी-16 तथा टी-17 को आदेश पारित करने की तिथि से तीन माह के अंदर सुपरटेक लि० के व्यय पर सी. बी.आर.आई. की देखरेख में ध्वस्त कर दिया जाए एवं टावर संख्या टी-16 व टी-17 के ऐसे आवंटियों को जिनकी धनराशि पूर्व में वापिस की जा चुकी हो, को छोड़कर अन्य समस्त आवंटियों को उनके द्वारा जमा करायी गयी धनराशि की तिथि से दो माह के अंदर 12 प्रतिशत ब्याज सहित मै सुपरटेक लि० द्वारा धनराशि वापिस की जाये।
6. मा० उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित उपरोक्त आदेश का विस्तृत अध्ययन कर प्राधिकरण
द्वारा उक्त आदेश में वर्णित प्रत्येक बिन्दु का अक्षरशः पालन किया जायेगा। संख्या टी-16 एवं टी-17 को मा० उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित अवधि तीन माह में विशेषज्ञ संस्था की देख-रेख में ध्वस्त कर दिया जायेगा। 7. प्राधिकरण द्वारा बिल्डर कालीनदोषी अधिकारियों / कर्मियों के विरुद्ध नियमानुसार कठोर कार्यवाही की जायेगी। इस प्रकरण में पूर्व में सुनवाई के समय समस्त तथ्यों से
उच्चाधिकारियों को अवगत नहीं कराये जाने के कारण नियोजन विभाग के दोषी कर्मियों
के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही प्रारम्भ कर दी गयी है।
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