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जीवन मे निश्चल मन है तो प्रभु प्राप्ति सम्भव – राजेंद्रा नन्द सरस्वती जी

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नोएडा, 16 अप्रैल।

सेक्टर 134 जेपी विशटाउन में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण कथा 20 अप्रैल तक चलेगी। यह श्री गौरी शंकर वैदिक धर्मार्थ ट्रस्ट के तत्वाधान में चल रही है जिनकी जानकारी ट्रस्ट के राष्ट्रीय महासचिव और प्रभारी भानू प्रताप लवानिया ने बताया कि द्वितीय दिवस की कथा में कथा मर्मज्ञ महंत श्री राजेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला।

महाराज जी ने कहा कि बिनु परतीती होई नहीं प्रीति अर्थात माहात्म्य ज्ञान के बिना प्रेम चिरंजीव नहीं होता, अस्थायी हो जाता है। धुंधकारी चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आत्मसात कर लेें तो जीवन से सारी उलझने समाप्त हो जाएगी। द्रौपदी, कुन्ती महाभागवत नारी है। कुन्ती स्तुति को विस्तारपूर्वक समझाते हुए परीक्षित जन्म एंव शुकदेव आगमन की कथा सुनाई और सुखदेव जी महाराज की झांकी निकाली गई पश्चात गौकर्ण की कथा सुनाई गई।

महाराज जी ने कहा कि भगवान की लीला अपरंपार है। वे अपनी लीलाओं के माध्यम से मनुष्य व देवताओं के धर्मानुसार आचरण करने के लिए प्रेरित करते हैं। श्रीमदभागवत कथा के महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा कि भागवत कथा में जीवन का सार तत्व मौजूद है आवश्यकता है निर्मल मन ओर स्थिर चित्त के साथ कथा श्रवण करने की। भागवत श्रवण से मनुष्य को परमानन्द की प्राप्ति होती है।

भागवत श्रवण की वजह से प्रेतयोनी से मुक्ति मिलती है। चित्त की स्थिरता के साथ ही श्रीमदभागवत कथा सुननी चाहिए। भागवत श्रवण मनुष्य केे सम्पूर्ण कलेश को दूर कर भक्ति की ओर अग्रसर करती है। उन्होंने अच्छे ओर बुरे कर्मो की परिणिति को विस्तार से समझाते हुए आत्मदेव के पुत्र धुंधकारी ओर गौमाता के पुत्र गोकरण के कर्मो के बारे में विस्तार से वृतांत समझाया ओर धुंधकारी द्वारा एकाग्रता पूर्ण भागवत कथा श्रवण से प्रेतयोनी से मुक्ति बताई तो वही धुंधकारी की माता द्वारा संत प्रसाद का अनादर कर छल.कपट से पुत्र प्राप्ती ओर उसके बुरे परिणाम को समझाया।मनुष्य जब अच्छे कर्मो के लिए आगे बढता है तो सम्पूर्ण सृष्टि की शक्ति समाहित होकर मनुष्य के पीछे लग जाती है ओर हमारे सारे कार्य सफल होते है।

महाराज ने कहा ठीक उसी तरह बुरे कर्मो की राह के दौरान सम्पूर्ण बुरी शक्तियॉ हमारे साथ हो जाती है। इस दौरान मनुष्य को निर्णय करना होता कि उसे किस राह पर चलना है। छल ओर छलावा ज्यादा दिन नहीं चलता जैसे छल रूपी खटाई से दुध हमेशा फटेगा।

छलछिद्र जब जीवन में आ जाए तो भगवान भी उसे ग्रहण नहीं करते है- निर्मल मन प्रभु स्वीकार्य है। छलछिद्र रहित ओर निर्मल मन भक्ति के लिए जरूरी है। आज प्रधान यजमान श्री संतोष और निशा जी कुशवाहा परिवार के द्वारा की गई!

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