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विनोद शर्मा

गौतमबुद्धनगर, 27 अप्रैल।

देश में लोकसभा के चुनाव के दूसरे चरण 26 अप्रैल को संपन्न हो गए अब तीसरे चरण की तैयारी शुरू हो गई है।26 अप्रैल के चुनाव में बड़ी बारीकी से जो मैंने पाया वह अनुभव आप सबके साथ शेयर कर रहा हूं कि क्यों चुनाव में मतदान कम हो रहा है। इस बार गौतमबुद्धनगर लोकसभा में 2019 से भी कम लगभग 53 प्रतिशत मतदान हुआ है।

मैं सुबह सात बजे जैसे ही नोएडा के सेक्टर 22 स्थित गांधी स्मारक इंटर कॉलेज मतदान केंद्र पर पहुंचा, तभी मुख्य द्वार पर खड़े पुलिस कर्मियों ने मेरा रास्ता रोका और पूछा क्या आपके पास मोबाइल है मैंने कहा, हां तब वह बोले आप मोबाइल के साथ मतदान केंद्र में नहीं जा सकते। उसी समय लगभग 5 से 7 वोटर जो मोबाइल लेकर जा रहे थे सकपकाए और उन्होंने कहा कि हमारे आईडी प्रूफ भी इसी मोबाइल के अंदर हैं। फिजिकल हम लेकर चल नहीं रहे हैं। बूथ के अंदर अगर डॉक्यूमेंट मांगेंगे तो कैसे दिखाएंगे। केंद्र सरकार ने भी कहा है कि आप अपने मोबाइल में अपने डॉक्यूमेंट को सेव कर सकते हैं। यह कहकर कई युवा वोटर वापस चले गए। उनमें से कितने वोटर वोट देने वापस मतदान करने पहुंचे होंगे यह आप सब भी समझ रहे होंगे।

जो आईडी प्रूफ तो लेकर आए थे मगर अकेले आए उन्होंने सवाल किया कि हम मोबाइल कहां रखें ? इसका जवाब पुलिस कर्मियों के पास नहीं था उन्होंने कहा कि आप कहीं भी रखिए लेकिन मतदान केंद्र की चार दिवारी के अंदर नहीं ले जा सकते तब एक वोटर ने कहा कि अपने मतदान केंद्र के अंदर सेल्फी प्वाइंट क्यों बना रखा है यह बात सुनते ही पुलिस कर्मियों ने अंदर रखी सेल्फी प्वाइंट को मतदान केंद्र के चार दिवारी के बाहर रख दिया और बोले यहां ले लेना जो सेल्फी लेनी है। तब एक वोटर ने कहा कि आप एक ऐसा कोई पॉइंट बना दीजिए जहां पर हम अपना मोबाइल रख सकते हैं तो पुलिस कर्मी ने कहा कि नहीं हमारे पास चुनाव आयोग से ऐसा कोई निर्देश नहीं है।

यह बात मैं कर ही रहा था तभी सेक्टर मजिस्ट्रेट की गाड़ी मतदान केंद्र के अंदर से बाहर आई मैंने रास्ता रोककर उनसे पूछा कि व्यवहारिक रूप से क्या आज के डिजिटल इंडिया में बिना मोबाइल के कोई रह सकता है और अब से पहले जितने चुनाव हुए उनमें बूथ के अंदर मोबाइल ले जाने पर रोक थी। आप कम से कम मतदान केंद्र के अंदर तो ले जाने दे सकते हैं। सेक्टर मजिस्ट्रेट को शायद मेरी यह बात व्यावहारिक रूप से सही लगी और उन्होंने पुलिस करने से कहा कि मोबाइल ले जाने वालों को स्विच ऑफ करके ले जाने की इजाजत दे दी जाए इस पर कुछ पुलिसकर्मियों ने सेक्टर मजिस्टर के साथ भी टोका टाकी की और उच्च अधिकारियों से सलाह लेने की बात कही संबंधित प्रभारी जो तहसीलदार थे उनसे जानकारी मांगी तब तहसीलदार ने किसी भी तरह से मोबाइल को मतदान केंद्र के अंदर ले जाने से इनकार कर दिया इसके बाद कुछ राजनीतिक दल के लोगों ने भी मोबाइल ले जाने की जिद की मगर प्रशासन ने की उनकी एक नहीं सुनी। जो बात मैंने लिखी है संभावित है वह हर मतदान केंद्र पर सैकड़ो वोटरों के साथ व्यावहारिक रूप से हुई है और मैं दावे के साथ तो नहीं लेकिन यह जरूर कह सकता हूं कि अकेले गौतम बुध नगर लोकसभा क्षेत्र में लगभग एक से डेढ़ लाख वोटर इसीलिए वोट डालने नहीं आए।

वोट डालने के लिए जैसे ही मैं बूथ नंबर 68 पर पहुंचा तो वहां लंबी लाइन लगी थी लगभग 15-20 मिनट इंतजार करने के बाद जब लंबी लाइन कम नहीं हो रही थी तब उत्सुकतावश यह जानने की कोशिश की कि आखिर अंदर इतनी धीमी रफ्तार क्यों है इसके बाद पीठासीन अधिकारी अंदर से बाहर आए और उन्होंने बताया कि एक वोट 1 मिनट के अंदर ही डाला जा सकता है उससे पहले नहीं, फिर मैंने कहा कि यहां कितने वोट हैं तब उन्होंने बताया कि यहां एक मशीन है और लगभग 1300 के करीब वोट हैं मैंने हिसाब लगाया कि 11 घंटे में 660 मिनट होते हैं अगर 1 मिनट में एक वोट पड़ेगी तो 11 घंटे में सिर्फ 660 वोट ही पढ़ पाएंगे तब कैसे 1300 वोटर वोट डाल सकते हैं तब तो एक मशीन पर सिर्फ 600 वोटरों को वोट देने की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि कोई मताधिकार से वंचित न रहे अगर एक वोटर 20-25 मिनट खड़े होकर फिर वह डालने जाएगा तो उनमें कई ऐसे युवा भी हैं जो इंतजार करने की बजाय वोट ना देना पसंद करते हैं और वह बीच लाइन से ही निकलकर वापस अपने घर चले गए। मतदान के समय एक अन्य वोटर वेदप्रकाश जी (मेरे चाचा) आए, वे पिछले 5 वर्ष से बिस्तर पर हैं उन्हें गाड़ी में बिठाकर मतदान केंद्र पर लाया गया। वहां व्हील चेयर की जरूरत महसूस हुई। पुलिस-प्रशासन ने असमर्थता व्यक्त की। उन्हें गोदी में उठाकर बूथ के अंदर ले जाया गया तब उन्होंने मतदान किया। जब पुलिस के आला अफसरों की जानकारी में यह तथ्य लाया गया तब व्हील चेयर मंगाई गई। तब तक एक वोटर बेबसी में वोट देकर जा चुके थे।

मेरे परिचित हैं जिनका बेटा गुड़गांव में जॉब करता है मतदान के दिन क्योंकि उनको गुड़गांव जाना था गुड़गांव में चुनाव नहीं था कंपनी ने बुलाया था तो निर्वाचन आयोग के नियम के मुताबिक वोट देने के लिए एक घंटे की छुट्टी दी जा सकती है लेकिन जब जाना गुड़गांव हो तो लंबे समय की छुट्टी नहीं दी जा सकती लिहाजा वह युवा बिना वोट डाले ही अपने ऑफिस चला गया ऐसे हजारों लोग हैं जो नोएडा से दिल्ली गुड़गांव और फरीदाबाद जॉब करने जाते हैं। मतदान के दिन उनको अवकाश नहीं मिला इसलिए उन्होंने वोट नहीं डाला मुझे एक ऐसे सज्जन भी मिले जिनके पास अपना वोटर आई कार्ड था वह हर बार वोटर आई कार्ड में सुधार करने के लिए अपनी एंट्री करते रहे लेकिन जब मतदान का दिन आता है तो पता चला कि बूथ के अंदर जो वोटर लिस्ट है उसमें किसी और की तस्वीर लगी है। यह देखकर उनको वोट डालने से वंचित कर दिया गया और जिनकी तस्वीर लगी है वह वोट डालने नहीं आए।

इन सारी व्यवस्थाओं को देखकर मेरे मन में आया कि कुछ बातें ऐसी लिखूं जो व्यावहारिक रूप से सही हो जैसे जिस दिन चुनाव है अगर वह एनसीआर में है तो पूरे एनसीआर में एक ही दिन चुनाव होना चाहिए पर जैसे दिवाली और होली के पर्व पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया जाता हैऐसे ही लोकतंत्र के महापर्व पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा क्यों नहीं होती। यही नहीं हर बूथ पर मोबाइल स्टैंड ठीक उसी तरह बनाए जाने चाहिए जैसे किसी भी धार्मिक स्थल पर कथा के समय जूते के स्टैंड बनाए जाते हैं इसे चुनाव आयोग अपनी आवश्यक सूची में शामिल करें। आपको भी मेरी तरह का अनुभव जरूर हुआ होगा। पश्चिमी यूपी में अधिकतर लोकसभा क्षेत्र में कम मतदान होने के पीछे यही मुख्य कारण हैं।

(नोएडा खबर डॉट कॉम के लिए खास)

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