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आजादी के मतवाले- वीर सावरकर के जीवन की अनसुनी कहानी

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आज़ादी का अमृत महोत्सव-वीर सावरकर

बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, समाज-सेवा, लोगों के आर्थिक स्वावलंबन, गुमनाम क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों पर शोध एवं उनके सम्मान के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था, आज देश के ज्ञात एवं अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण तथा बलिदान दिवस पर, उनके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए अद्भूत एवं अविस्मरणीय योगदान के सम्मान में नतमस्तक है।

विनायक दामोदर सावरकर जी
जन्म : 28.05.1883 निधन : 26.02.1966

यह तीर्थ, महातीर्थों का है, मत कहो इसे कालापानी।
सुनो यहाँ की धरती के कण-कण से गाथा बलिदानी।।
गणेश दामोदर सावरकर जी

मेरे राष्ट्रभक्त साथियों, उपरोक्त पंक्तियाँ उस देवतुल्य, मातृभूमि के सच्चे सपूत एवं दो-दो बार आजीवान कालापानी (सेल्यूलर जेल) की सजा पाने वाले महान क्रांतिकारी वीर सावरकर जी के बड़े भाई एवं महान स्वतंत्रता सेनानी गणेश दामोदर सावरकर जी की हैं, जो ब्रिटिश सरकार द्वारा सेल्यूलर जेल में दिए गए अकल्पनीय, असहनीय अमानवीय अत्याचारों को देखने व अनुभव करने के उपरांत अमर बलिदानियों के सम्मान में व्यक्त की गई थीं। मेरे राष्ट्रभक्त साथियों, मैं चाहकर भी इस महान क्रांतिकारी, इतिहासकार, लेखक, कवि, भाषाविद, समाज सेवक, बुद्धिजीवी, दृढ़ राजनेता, युगदृष्टा एवं ओजस्वी वक्ता की संपूर्ण प्रेरणादायक जीवन-वृत्त को आपके समक्ष रख नहीं पाऊँगा, किंतु ऐसा करने का प्रयास मेरे लिए सौभाग्य की बात होगी। आज से ठीक 139 वर्ष पूर्व भगूर गाँव, नासिक, महाराष्ट्र में दामोदर सावरकर और राधाबाई सावरकर जी के घर जन्मे वीर सावरकर जी की माता ने जीवन की अंतिम साँस उस समय ली, जब वीर सावरकर जी मात्र 09 वर्ष के थे। वीर सावरकर जी ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से सन् 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। बचपन से ही कुशाग्र वीर सावरकर जी ने कुछ कविताएँ भी लिखी थीं।

वीर सावरकर जी ने अपने विद्यार्थी जीवनकाल में ही अपने भाई गणेश सावरकर जी के साथ मिलकर सन् 1899 में एक क्रांतिकारी संगठन मित्रमेला की स्थापना की, जो सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने में विश्वास रखता था। फ़र्ग्युसन कॉलेज पुणे में पढ़ने के दौरान भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। जब वे लंदन में वकालत के साथ साथ इंडिया हाउस में श्यामजी कृष्ण वर्मा, भीकाजी रुस्तम कामा, मदनलाल ढींगरा तथा अन्य क्रान्तिकारियों के साथ देश की आज़ादी की गतिविधियों से जुड़कर कार्य कर रहे थे, उसी दौरान मदनलाल ढींगरा जी द्वारा क्रूर ब्रिटिश अधिकारी विलियम हट्ट कर्ज़न वाईली की हत्या कर दी गई। लंदन में कर्ज़न वाईली एवं भारत में नासिक जिले के कलेक्टर आर्थर मेसन टिपेट्ट्स जैक्सन की हत्या केस में वीर सावरकर जी को शामिल मान 13.03.1910 को इन्हे लंदन में गिरफ्तार कर समुद्री जहाज एस.एस.मोरिया से भारत लाया जा रहा था, किंतु इन्होंने अपने मित्र के साथ मिलकर बच निकलने की एक योजना बनाई, जिसमें सफल न हो सके। फ्रांस के निकट समुद्री जहाज से समुद्र में कूद गए, किंतु इनका मित्र समय पर कार लेकर नहीं आ पाया और पकड़े गए।

सन् 1911 को वीर सावरकर जी को कालापानी की सजा के लिए सेल्यूलर जेल भेजा गया, जहाँ स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहाँ नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहाँ कोल्हू में बैल की तरह जुतकर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।। वीर सावरकर जी सन् 1911 से सन् 1921 तक पोर्ट ब्लेयर में जेल में रहे। मुक्त हो स्वदेश लौटने पर 02.05.1921 से वे महाराष्ट्र के रत्नागिरी जेल में 03 वर्ष तक नजरबंद रहें।

वीर सावरकर जी कई कारणों से प्रथम

आप भारत के पहले क्रांतिकारी थे जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी।
आप भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने, सन् 1857 की लड़ाई को भारत का ‘प्रथम स्वाधीनता संग्राम’ बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास सन् 1907 में लिखा।
आप भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक थे जिनकी किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था।
आप दुनिया के पहले क्रांतिकारी थे, जिनका मामला हेग के अंतराष्ट्रीय न्यायालय में चला था।

आप पहले भारतीय क्रांतिकारी थे, जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
आप ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में सन् 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा जी ने फहराया था।
आप पहले कवि थे, जिसने कलम-काग़ज़ के बिना जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं। कहा जाता है उन्होंने अपनी रची 10,000 से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षोंस्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुँच गई।

वीर सावरकर जी ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाकर देशवासियों को स्वदेशी उत्पाद बनाने एवं आर्थिक स्वावलंबन के लिए प्रेरित किया। अपने लंदन प्रवास के दौरान वे *श्रीराम जन्मोत्सव* को धूमधाम से मानकर अपनी गौरवमयी परंपरा का संवाहक बने। उन्होंने समाज में जाति आधारित भेदभाव को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने ‘सत्यार्थप्रकाश’ पर प्रतिबंध का विरोध किया तथा हैदराबाद सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वीर सावरकर जी ने पाकिस्तान योजना का कड़ा विरोध किया तथा देश की आज़ादी उपरांत गोवा मुक्ति के लिए अतुलनीय योगदान दिया। सन् 1955 में हिन्दू महासभा के जोधपुर अधिवेशन के कुछ ही दिनों बाद गोवा-मुक्ति आंदोलन प्रारंभ हो गया। सारे देश से सत्याग्रहियों के दल गोवा जाने लगे। हिन्दू महासभा, जनसंघ, रामराज्य परिषद् आदि इस आंदोलन में सम्मिलित हुए।

देश की आज़ादी के लिए समर्पित सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी वीर विनायक दामोदर सावरकर जी की आज 56वीं पुण्यतिथि पर मातृभूमि सेवा संस्था उन्हें कोटि कोटि नमन करती है।

✍️ राकेश कुमार

मातृभूमि सेवा संस्था 9891960477 से साभार

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