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एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन जिला अध्यक्ष ने उद्योग सहायक समिति की बैठक में सीईओ के सामने रखी समस्याएं

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नोएडा, 19 अगस्त।

नोएडा के उद्योगों की समस्याओं के निस्तारण के लिए इंदिरा गांधी कला केन्द्र,सेक्टर 6 में फेज 1 औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगों की समस्याओं के निस्तारण को शनिवार को विशेष उद्योग सहायक समिति की बैठक बुलाई गई।
इस बैठक में फेज 1 नोएडा,सेक्टर 1 से 11 और सेक्टर 16 एवम् 16ए के औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं के निस्तारण के लिए एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेन्द्र नाहटा ने विभिन्न मुद्दों को लेकर अपनी बात रखी। इनमे कुछ मुद्दे निम्न हैं।

1- नोएडा फेज 1 के सेक्टर 10 के ए, बी और सी ब्लॉक से अमूमन सीवर लाइन के जाम की शिकायत आती रहती है। पिछले लगभग 1 महीने से सी-301, सेक्टर-10 की फैक्ट्री के सामने सीवर लाइन जाम की शिकायत की जा रही है परन्तु ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ए-61, सेक्टर-8, की सीवर लाईन प्रायः ब्लाॅक रहती है, कई बार शिकायत की गई लेकिन ठीक नही हो पाई। इसे ठीक कराया जाए।

सुरेन्द्र नाहटा ने बताया कि ए-44, सेक्टर-16 फैक्ट्री के सामने नाला हर समय जाम रहता है, नाला सफाई करने वाले भी कचरा बाहर निकाल कर डाल देते है फिर भी नाले में पानी आगे नही जा रहा हैं इसे ठीक करवाया जाये। अगर कर्मचारी काम नहीं करते हैं तो ऐसे कर्मचारियों और उनके अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।

2-  झुंडपुरा पुलिस चौकी सेक्टर 8 के पास से होते हुए सेक्टर 10, 21, 25 को पार करते हुए एक गन्दे पानी का नाला निकलता है जिसकी चौड़ाई लगभग 8 से 10 फीट है। सेक्टर 21 के पास तो इस नाले को पाटा जा रहा है परन्तु सेक्टर 10 शिवानी फर्नीचर की फैक्ट्री के पास अभी तक खुला हुआ है। शिवानी फैक्ट्री के पास नाले में अक्सर गाय आदि पशु गिर जाते हैं और कभी कभी इन्सान भी गिर जाते हैं जिनको बहुत मुश्किल से बाहर निकाल कर बचाया जाता है। अभी हाल ही में गत रविवार दिनांक 30 जुलाई 2023 को भी एक ओर गाय इस खुले नाले में गिर गई थी परन्तु क्रेन को बुलवाकर उस गाय को भी बचा लिया गया। लेकिन अगर कभी मौके पर बचाने का इंतजाम ना हो पाया तो पशु मर ही जायेंगे। प्राधिकरण इस नाले को भी जल्दी से जल्दी पाटने का कार्य करवाने की कृपा करे।

3- वर्ष 1976 में औद्योगिक शहर विकसित करने के मकसद से नोएडा की स्थापना की गई थी, लेकिन नोएडा प्राधिकरण के अफसरों की मनमानी, घोटालों और गलत नीतियों ने इस शहर की छवि को भारी नुकसान पहुंचाने का काम किया है। बिल्डर और भू-माफिया से सांठगांठ कर औद्योगिक विकास प्राधिकरण को बिल्डर विकास प्राधिकरण में बदलकर रख दिया है। बंद कमरों में नीतियां निर्धारित की जाती है। शहर के उद्यमी अपने आप को ठगा महसूस करते रहे। बड़े-बड़े फैसले बिना जनता की राय जाने ले लिए जाते हैं।

नोएडा को यूपी की शो विंडो बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले स्थानीय उद्यमियों को नजरअंदाज किया जा रहा है। उद्यमी लगातार प्राधिकरण बोर्ड में जनभागीदारी सुनिश्चित करने की मांग उठा रहे हैं। आखिर ऐसी कौन सी वजह है जो इस मांग पर अमल नहीं किया जाता। उद्योगों से जुड़ी योजनाएं बनाते समय उद्यमी संगठनों से कोई सुझाव नहीं लिए जाते। इसका नतीजा यह होता है कि गलत फैसले प्राधिकरण की किरकिरी करा देते हैं। नोएडा प्राधिकरण के बोर्ड में एमएसएमई इंडस्ट्रियल एसोसिएशन नोएडा के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए।

4- शहर में विकास परियोजनाओं के नाम पर धन की बर्बादी हो रही है। शहर में 1074 करोड़ रुपये की लागत से बनाई गईं मल्टीलेवल व भूमिगत पार्किंग के दुरुपयोग की शिकायत आपके समक्ष पहले भी की जा चुकी है। औद्योगिक सेक्टर-1, 3 व 5 की भूमिगत पार्किंग के निर्माण के बाद भी लोग सडकों पर गाडियां खड़ी करते हैं। लगभग 115 करोड़ रुपया खर्च कर इनका निर्माण किया गया है। औद्योगिक सेक्टरों की सडक अब भी जाम से बेहाल हैं। संस्था का सुझाव है कि इन पार्किंगों का प्रयोग श्रमिकों के हित में किया जाए। पार्किंग के ऊपर श्रमिकों के लिए सस्ते खाने की कैंटीन आदि की सुविधा उपलब्ध कराई जाए।

एक जनपद-एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना के तहत रेडिमेड गारमेंट और मैन्युफेक्चरिंग का हब होने के बावजूद नोएडा के हजारों उद्योगों के उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए डिस्प्ले सेंटर आज तक नहीं बनाया जा सका है। टेस्टिंग लैब न होने के कारण नोएडा के उद्यमियों को अपने उत्पादों की जांच के लिए बैंगलूरू, भोपाल जाना पड़ता है। मशीनरी बाजार न होने के कारण छोटे-छोटे टूल्स, मशीनरी यहां तक की एक पेंच खरीदने के लिए दिल्ली की दौड़ लगानी पड़ती है। ऐसे में 550 करोड़ रुपये से बनी बॉटेनिकल गार्डन मल्टीलेवल पाकिँग और 243 करोड़ से बनी सेक्टर-18 मल्टीलेवल पार्किंग के एक हिस्से में औद्योगिक उत्पादों की प्रदर्शनी के लिए डिस्प्ले सेंटर बनाकर औद्योगिक नगरी को नई पहचान दिलाई जाए।

5- खेद का विषय है कि प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में लघु सूक्ष्म एवम् मध्यम वर्ग के अहित में फैसले लिए जाते हैं। हजारों उद्यमियों पर वे वजह का आर्थिक बोझ डाला जाता हैं। वर्षों से संस्था मांग उठाते आ रही है कि पानी के बकाया बिलों पर चक्रवर्ती ब्याज और अर्थ दण्ड ना लगाया जाए परन्तु कोई सुनवाई नहीं। वर्षों से कूड़ा उठाने के लिए लिऐ जा रहे ज्यादा चार्जेज को कम किया जाए पर कोई सुनवाई नहीं, वर्षो से मांग की जा रही है कि लीज रेंट एक प्रतिशत ही रखा जाए और आजीवन चार्जेज 11 वर्षों का लिया जाए, परन्तु इस और भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। ऐसे ऐसे और भी चार्जेज हैं जो कि लघु सूक्ष्म एवम् मध्यम वर्ग के उद्यमियों पर नहीं लगाए जाने चाहिए। आपसे निवेदन है कि इन सब आर्थिक बोझों से उद्यमियों को राहत दी जाए।

6- नोएडा के एलिवेटेड रोड और मेट्रो लाइन के प्रोजेक्ट पूर्ण ना होने के कारण फेज 1 नोएडा के उद्यमियों को फेज 2, ग्रेटर नोएडा और एनसीआर के निकटवर्ती क्षेत्रों में जाने आने में बहुत समस्या आ रही है। प्रोजेक्ट जल्दी पूरे किए जाए।

7- नोएडा प्राधिकरण में क्लस्टर पार्किंग के नाम पर अनियमितताएं और धांधली बरती जा रही है। प्राधिकरण की तरफ से नए सिरे से पार्किंग के ठेके आवंटित करने की तैयारी की जा रही है। औद्योगिक सेक्टरों में पार्किंग शुल्क व्यवस्था का हम कड़ा विरोध करते हैं। पार्किंग शुल्क के नाम पर उद्यमियों और लाखों श्रमिकों की जेब पर बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। उद्यमियों को जब भूखंड आवंटित किए गए तब सडक की चैड़ाई, फेसिंग और कॉर्नर प्लॉट के हिसाब से अलग-अलग लोकेशन शुल्क वसूला गया था। उद्यमी प्राधिकरण को लीज रेंट भी देते हैं। ऐसे में इकाई के आगे वाहन पार्किंग शुल्क वसूलने का अधिकार किसी को कैसे दिया जा सकता है। औद्योगिक सेक्टरों में भूखंड आवंटित करते समय लोकेशन चार्ज वसूलकर जो संपत्ति उद्यमियों के हवाले की गई उसे दोबारा से पार्किंग ठेकेदारों को बेचने का कोई औचित्य नहीं है।

8- बड़े अफसोस की बात है कि औद्योगिक सेक्टरों में जल-सीवर की उचित व्यवस्था न होते हुए भी लाखों रुपये के बिल जारी किए जा रहे हैं। इस मामले की शिकायत लगातार उच्चाधिकारियों से की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं की जा रही है। कोरोना संकट के बाद बुरे दौर से गुजर रहे उद्योगों पर नोएडा प्राधिकरण की दोहरी मार पड़ रही है। नोएडा प्राधिकरण के जल विभाग को हर माह जल-सीवर के बिल औद्योगिक इकाइयों में भेजने चाहिए, लेकिन विभाग के अध्ािकारी-कर्मचारी लापरवाही बरतते हैं। दस-दस साल बाद एक साथ बिल भेजकर उद्यमियों की परेशानी को बढ़ाया जा रहा है। बिल भेजने में देरी प्राधिकरण करता है और जुर्माना उद्यमियों पर लगाया जाता है। बिल लेने के लिए उद्यमी प्राधिकरण दफ्तर के धक्के खाते हैं लेकिन बिल मुहैया नहीं कराए जाते। सेक्टर-6 जी ब्लॉक स्थित रेकब्रो रबर नाम से 372 वर्ग मीटर की यूनिट को नोएडा प्राधिकरण के जल खंड-1 की तरफ से 7 फरवरी 2023 को 10.47 लाख रुपये से अधिक राशि का बिल भेजा गया है। ब्याज पर ब्याज की रकम को जोड़ते हुए प्राधिकरण बिल में बढ़ोतरी कर रही है। हाल ही में जारी किए गए 15 लाख रुपये से ज्यादा राशि का बिल भेजकर संबंधित उद्यमी को प्रताड़ित किया गया है। ऐसे कई मामले संस्था के संज्ञान में आए हैं। कृपया इस समस्या के समाधान के लिए त्वरित कार्रवाई की जाए।

9- संस्था आपका ध्यान उत्तर प्रदेश की ऑनलाइन शिकायत निवारण प्रणाली (आईजीआरएस) के प्रति नोएडा प्राधिकरण के गैर-जिम्मेदाराना रवैये की ओर आकर्षित कराना चाहती है। आईजीआरएस पर भेजी जा रही शिकायतों का समाधान किए बगैर और शिकायतकर्ता की संतुष्टि के बिना ही शिकायतों को निस्तारित करार देकर नोएडा प्राधिकरण गलत सूचनाएं मुख्यमंत्री कार्यालय को प्रेषित कर रहा है। इससे न केवल उत्तर प्रदेश सरकार की छवि को खराब किया जा रहा है बल्कि आम जन की भावनाओं के साथ भी खिलवाड़ किया जा रहा है।
10- 18 जून से जनपद के 33 मार्गों पर भारीध्मध्यम मालवाहक वाहनों की नो एंट्री का नया नियम लागू किया गया है। संस्था इस नए नियम से उद्योगों को होने वाली परेशानी से अवगत कराना चाहती है। मार्च 2021 में जनपद के 25 मार्गों पर भारी वाहनों की नो एंट्री का नियम लागू किया गया था। अब प्रतिबंधित मार्गों की संख्या बढ़ाकर 33 कर दी गई है। पुराने नियम के तहत नो एंट्री का समय सुबह 7 से 10 बजे निर्धारित था, जिसे बढ़ाकर सुबह 11 बजे तक कर दिया गया है। यह फैसला उद्योगों की परेशानी बढ़ाने वाला है। नए नियमों के अंतर्गत शहर के उन आंतरिक मार्गों को भी शामिल कर लिया गया है जो औद्योगिक सेक्टरों के बीच से होकर गुजरते हैं। इनमें प्रमुख रूप से सेक्टर-14ए फ्लाईओवर से झुंडपुरा तिराहे को जोड़ने वाला उद्योग मार्ग, सेक्टर-दो व तीन तिराहे से हरौला बांस बल्ली मार्केट होकर शिवानी फर्नीचर चैराहा, जलवायु विहार चौराहे से शिवानी फर्नीचर होकर झुंडपुरा तिराहा, एमपी-01 मार्ग डीएनडी चैक से सेक्टर-12-22-56 तिराहा सहित ग्रेटर नोएडा के औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े अन्य मार्ग शामिल हैं। उक्त औद्योगिक सेक्टरों के आंतरिक मार्गों पर नो एंट्री लागू होने से औद्योगिक गतिविधियों पर विपरीत असर पड़ रहा है। आपसे अनुरोध है कि औद्योगिक क्षेत्र के बीच से गुजर रहे आंतरिक मार्गों को नो एंट्री के दायरे से बाहर कराया जाए।

11- पुरानी गलतियों से प्राधिकरण ने कोई सबक नहीं लिया। कोरोना काल में श्रमिकों के आवास की योजना तो बनी, लेकिन संक्रमण का संकट टलते ही उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कोरोना काल में श्रमिकों की कमी ने 25 हजार उद्योगों की कमर तोडकर रख दी थी। सालभर तक जनपद में औद्योगिक इकाइयों का उत्पादन प्रभावित रहा था। प्राधिकरण ने सेक्टर-122 में श्रमिकों के आवास की योजना भी बनाई थी, लेकिन इस योजना पर काम नहीं किया। प्राधिकरण सेक्टर-151ए में 113 एकड़ जमीन पर 100 करोड़ रुपये खर्च करके गोल्फ कोर्स बनाने की तैयारी कर रहा है। गोल्फ कोर्स की जगह औद्योगिक शहर में श्रमिकों के लिए आवास बनाए जाने की जरूरत है। सेक्टर-38 में पहले से ही एक गोल्फ क्लब चल रहा है। ऐसी स्थिति में सेक्टर-151ए में नया गोल्फ कोर्स बनाने से ज्यादा औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने की ओर कदम उठाया जाना चाहिए। श्रमिकों को आवास उपलब्ध ना होने से सबसे ज्यादा परेशानी नोएडा फेज 1 के उद्योगों, उद्यमियों को झेलनी पड़ रही है।

12- कचरा उठाने के शुल्क के नाम पर आर्थिक बोझ डाला जा रहा है। कचरा शुल्क के नाम पर उद्यमियों से भारी-भरकम शुल्क वसूला जा रहा है। कचरा निस्तारण के लिए प्राधिकरण की पहल अच्छी है, लेकिन कूड़ा उठान के नाम पर बेहिसाब शुल्क वसूली उचित नहीं है। 55,114,171,250वर्ग मीटर तक के भूखंड से 500 रुपये प्रतिमाह, जबकि आवासीय क्षेत्रों में 200 वर्ग मीटर तक मात्र 50 रुपये प्रति माह लिए जाते है। औद्योगिक क्षेत्रों में 500 वर्ग मीटर से ऊपर के सभी भूखंडों से 1500 रुपये प्रति माह वसूला जा रहा है। उद्यमियों से जब प्राधिकरण मेंटिनेंस के रूप में लीज रेंट वसूल रहा है तो फिर अतिरिक्त शुल्क वसूली क्यों हो रही है, इसका जवाब प्राधिकरण के अधिकारी नहीं देते। एसोसिएशन ने मांग उठाई कि इकाइयों से एक रुपया प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से ही शुल्क लिया जाना चाहिए।

13- प्राधिकरण की ओर से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के शेयर होल्डर बदलने पर शुल्क लिया जा रहा है। इसके साथ ही उद्यमियों को रजिस्ट्रार विभाग भी शुल्क ले रहा है। भारत सरकार के कंपनी निगमित मामलों के नियमों के अनुसार भी यदि शेयर होल्डर या निदेशक बदलते हैं तब भी उस कंपनी की संरचना पर कोई असर नहीं पड़ता। कंपनी एक ही बार बनाई जाती है जिसमें आवश्यकतानुसार शेयर होल्डर बदलते रहते हैं।

14- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने डीजी सेट पर रोक लगाई हुई है। नोएडा फेज 1 के कई औद्योगिक क्षेत्रों में पाइपलान नहीं डाली गई है। आईजीएल की तरफ से बार-बार कहा जाता है कि नई लाइन डालने के लिए प्राधिकरण की औपचारिकताओं को पूरा करने में काफी समय लगता है। कृपया तालमेल बैठाकर इस काम को जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए।
15- नोएडा के उद्यमियों को विगत पांच से पन्द्रह साल के पानी के बिल एक साथ चक्रवद्धि ब्याज और अर्थदंड लगाकर भेजे गए। प्रश्न ये है कि जब प्राधिकरण ने नियमता उस समय प्रतिमाह या त्रिमासिक बिल क्यों नहीं भेजे। दूसरा पानी की गुणवत्ता की रिपोर्ट तक साझा नहीं की जाती है और वर्तमान में जब ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने सरचार्ज पर 40 प्रतिशत की छूट दी हुई है तो नोएडा प्राधिकरण क्यो उद्यमियों को छूट नहीं दे रहा। निवेदन है कि बकाया भुगतान पर सरल ब्याज दरों से मात्र ब्याज जोड़ कर बिल भेजे जाए। अर्थदंड ना लगाया जाए।
16- नोएडा में पार्को का भी व्यवसायिकरण किया जा रहा है। फेज-1 में यानी सेक्टर-1 से 11 तक के पार्को में दुकाने और क्योस्क बना दिए गए है। इसके अलावा नए विकसित पार्को में भी दुकाने और शौचालय बना दिए गए है। इससे सिर्फ सीधे तौर पर एनजीटी के नियमों का वायलेशन है। इस पर सख्त एक्शन लिया जाए। सी-91, सेक्टर-10, नोएडा की फैक्ट्री जोकि कोने की है इसमें कोर्नर के चार्ज प्राधिकरण को दिये गये थे लेकिन वहां सामने ही किसी होटल को भूखण्ड आवंटित कर दिया गया जिसने पूरी गली अतिक्रमण कर उक्त उद्यमी को कोने से वंचित कर दिया गया। इसी तरह से नोएडा में और भी कही जगह अतिक्रमण कर उद्यमियों को परेषान किया जा रहा है।
17- नोएडा, ग्रेटर नोएडा, दादरी, छापरोला, जेवर आदि जिला गौतमबुद्धनगर में लगभग 25 हजार मैन्यूफेक्चरिंग यूनिट है। लेकिन कच्चे मॉल के लिए हमे अब भी दिल्ली, लुधियाना, कोलकाता और सुदूर राज्यों के शहरों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसे में कच्चे मॉल खरीद के एवज में जो राजस्व प्रदेश सरकार को जाना चाहिए वह नहीं मिलता। उद्यमियों को भी परेशानी होती है। कच्चे मॉल के बाजार की डिमांड 1984 से लगातार विभिन्न संगठनों की ओर से की जाती रही है। संस्था की ओर से विगत लगभग सात सालों से प्राधिकरण, शासन और प्रशासन के यहां कच्चे मॉल के बाजार की डिमांड होती रही है। आपसे आग्रह कि यहां कच्चे मॉल का बाजार बनाया जाए। यह समस्या फेज 1 नोएडा के उद्योगों को भी झेलनी पड़ रही है।

18- नोएडा के उद्यमियों को अपने प्रोडेक्ट की जांच के तैयार उत्पाद बैंगलूरू, भोपाल जाना पड़ता है। वहां से जांच रिपोर्ट आने में कम से कम एक महीने का समय लगता है। नोएडा एक औद्योगिक नगरी है यहां सरकार से मान्यता प्राप्त टेस्टिंग लैब की स्थापना अतिशीघ्र कराई जाए।

19- ओडीओपी में यहां गारमेन्ट को शामिल किया गया है। जबकि नोएडा मैन्यूफेक्चरिंग में सबसे ज्यादा अन्य ओर भी उत्पाद बनाता है। इनके उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए एक डिस्प्ले सेंटर बनाया जाए। इससे निवेश और रोजगार दोनों बढ़ेगा।
20- नोएडा में ट्रांसपोर्ट नगर का कामर्शिलाइजेशन न कर वहां से तैयार मॉल भेजने और कच्चा मॉल मंगवाने की सुविधा शुरू की जाए। वर्तमान में भी उद्यमियों को दिल्ली और गाजियाबाद के साहिबाबाद पर निर्भर रहना पड़ता है।

21- नोएडा प्राधिकरण शुरुआती दौर में तो सिंगल विंडो सिस्टम का सपना दिखाया था लेकिन आज तक उस सिंगल विंडो सिस्टम पर अमल नहीं हो सका यही नहीं अब ऑनलाइन के बहाने भी प्राधिकरण में दलाल सक्रिय हैं पहले तो ऑनलाइन आवेदन लिया जाता है उसके बाद भी मैनुअल दस्तावेज मंगाए जाते हैं आपसे आग्रह है या तो पूर्णता ऑनलाइन कार्य किया जाए अन्यथा इस सेवा को बंद कर दिया जाए।

22- प्राधिकरण ने वन टाइम लीज रेंट 15 साल और ढाई प्रतिशत कर रखा है। इसे पूर्व की भांति 11 महीने और एक प्रतिशत किया जाए। ताकि उद्यमियों पर पड़ने वाला अतिरिक्त भार कम हो सके।

23- नोएडा प्राधिकरण ने उद्योगों के आवंटित भूखंडों को सिर्फ राजस्व के लिए उनका एफएआर तो बढ़ा दिया लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर वहीं पुराना है। इससे फेज-1 यानी सेक्टर-1 से 11 तक औद्योगिक सेक्टरों में मूलभूत सुविधा तक नहीं है। जलभराव से लेकर बिजली, नाली साफ न होना और अतिक्रमण यहां बड़ी वजह है जबकि प्राधिकरण वेडिंग जोन बनाने में करोड़ों रुपए खर्च कर रही है।

24- सेक्टर-4, 5, 8,9 व 10 में हजारों की संख्या में स्लम बसा हुआ है। ये सब औद्योगिक भूखंडों के पास में है। प्राधिकरण ने स्लम को हटाने के लिए झुग्गी-झोपड़ी पुर्नवास योजना बनाई जिसके तहत 1700 के आसपास झुग्गी वालों को मकान बनाकर दिए गए। जबकि संख्या लगभग 30 हजार है। ऐसे महज खानापूर्ती करने से क्या होगा। इस स्लम से उद्यमियों को बड़ा नुकसान हो रहा है। पहला निवेशक नहीं आते, दूसरा गाड़ियां नहीं आती तीसरा अतिक्रमण से परेशान और चौथा सर्वाधिक लाइन लॉस।

25- नोएडा फेज 1 के सभी सेक्टरों में छोटे बच्चों के लिए क्रेश और सस्ती दरों पर कैंटीन की व्यवस्था की जाए।

26- नोएडा औद्योगिक नगरी के फेज-1 में बड़े स्तर पर कॉमर्शियल गतिविधियां की जा रही है। बड़े-बड़े शोरूम चलाए जा रहे है। औद्योगिक भूखंडों का लैंडयूज नहीं बदला जाए और जहां कामर्शियल एक्टिविटी हो रही है उनको बंद कराया जाए।

27- नोएडा के औद्योगिक सेक्टरों में एक भी कांफ्रेंस हॉल नहीं है और न ही एक भी सामुदायिक केंद्र है। ऐसे में उद्यमियों के लिए कोई भी कार्यक्रम का आयोजन के लिए हमे रिहाएशी सेक्टरों के सामुदायिक सेंटरों पर निर्भर रहना पड़ता है जिसमे बुकिंग मिल जाए वहीं बहुत है। ऐसे में फेज 1 के करीब 4 सेक्टरों में सामुदायिक केंद्र बनाए जाए।

28- मानसून में औद्योगिक सेक्टरों में जलभराव की समस्या होती है। इसके लिए यहा समुचित व्यवस्था तत्तकाल कराई जाए। औद्योगिक सेक्टरों को भी प्राथमिकता दी जाए क्योंकि फेज-1 नोएडा का सबसे पुराना औद्योगिक क्षेत्र है। इसके अलावा ग्रेटर नोएडा में भी जल भराव की समस्या चरम पर है।
29- उद्योगों के विकास के लिए बुनायादी ढाचा महत्वपूर्ण है। इसके लिए औद्योगिक सेक्टरों से अतिक्रमण को हटाया जाए। वेडिंग जोन होने के बाद यहा बड़े स्तर पर अतिक्रमण है। सड़को के लेफ्ट टर्न पर होटल और ढकेल खुली है। इन लेफ्ट टर्न को ट्रैफिक विभाग ने डार्क स्पाट घोशित किया गया है। ताकि यहां दुर्घटनाएं न हो। इसके अलावा सड़को पर ही कार वाशिंग, पेंट और सर्विस सेंटर तक खुले है। जिन्होंने सड़कों की चौड़ाई को निगल लिया। इस पर ध्यान दिया जाये।

30- एमएसएमई सेक्टर में महिला उद्यमियों की संख्या बहुतायत में है। संस्था आपसे आग्रह करती है महिला उद्यमियों को और ज्यादा प्रोत्साहित करने के लिए अलग से योजनाएं निकाली जाए। उनको विस्तार का मौका दिया जाए जिससे वे मैन्यूफैक्चिरंग क्षेत्र में और ज्यादा प्रगति के साथ राजस्व और रोजगार में बढ़ावा दे सके।

31- औद्योगिक सेक्टरों में बिजली के खंभे लगाने का काम प्राधिकरण का ई एंड एम (इलेक्ट्रिकल और मैनटेनेंस) करता है। यहां सेक्टरों में लगाए गए खंभे जर्जर और पुराने हो चुके है। हाल ही आई आंधी तुफान में कई खंभे टेढ़े और गिर गए थे। जिससे औद्योगिक सेक्टरों में कई घंटे सप्लाई बाधित हुई थी। इससे करोड़ों के राजस्व का नुकसान हुआ था। औद्योगिक सेक्टरों में जर्जर खंभों को ठीक किया जाए और टूट गए वहां नए खंभे लगाए जाए।

32- नोएडा के कामगारो और श्रमिकों के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए प्राधिकरण ने जिन स्कूलों को एक रुपए के हिसाब से जमीन लीज पर दी है उन सभी में 20 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए। इसी तरह यहां के निजी अस्पतालों में भी कामगार और श्रमिकों के इलाज में छूट दिलाई जाए।

33- वह उद्यमी जो दशकों से यहा उद्योग चला रहे है और विस्तार में उनको भूखंड आवंटित होता है या हो चुका है। उन सभी उद्यमियों के लिए प्रापर्टी ट्रान्सफर (ट्रांसफर ऑफ मैमोरेंडम) चार्ज नहीं लिया जाए। यही नहीं यदि वे ब्लड रिलेशन में भी प्रापर्टी को ट्रांसफर करते है तो भी उनसे टीएम का चार्ज नहीं लिया जाए।

34- रिसर्च, सेंटर मैन्यूफेक्चरिंग यूनिट, एक्सपोर्टर, प्रोडेक्शन, होम एंप्लाइज, एलईडी लाइट मेकर, रेडिमेड गारमेंट, फूड प्रोडेक्ट, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एवम् इलेक्ट्रॉनिक्स आदि प्रोडक्ट बनाने वाली ऐसी कंपनियां जो विगत पांच से दस सालों से शहर में किराए के भूखंडों पर उद्यम चला रही है। यह उद्यमी रोजगार व सरकारी विभागों को राजस्व भी दे रहे हैं। किराए के चलते इनका आर्थिक बोझ बढ़ता जा रहा है। भूखंड मालिक भी प्रत्येक साल जबरन किराया बढ़ाता है। ऐसे उद्यमियों की बैलेंसशीट चेक कर उनको स्पेशल श्रेणी में भूखंड आवंटित किए जाए।

35- श्रमिक ईएसआईसी के तहत पंजीकृत है। इनकी चिकित्सीय सुविधा के लिए उद्यमी प्रतिमाह लाखों रुपए ईएसआई में जमा करता है। यहा बनी डिस्पेंसरी भी जर्जर हालात में है। कामगारों व श्रमिकों की स्वास्थ्य की चिंता भी प्राधिकरण को करनी होगी। प्राधिकरण ईएसआईसी के मामले में हस्ताक्षेप करे और श्रमिकों व कामगारों को उचित इलाज मुहैया कराने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार के मार्फत ईएसआईसी प्रबंधन पर दबाव बनाए।

36- नोएडा प्राधिकरण ने उद्योगों के आवंटित भूखंडों के लिए एफएआर को बढ़ाने की सुविधा प्रदान की हुई है परन्तु एफएआर बढ़ाने के चार्जेज में बहुत ज्यादा इजाफा किया गया है जो की उचित नहीं है निवेदन है कि चार्जेज पूर्व की भांति ही रखे जाएं, बढ़ाएं गए रेट वापस लिए जाएं। वहीं दशकों से यहां इंडस्ट्री चला रहे उद्यमियों को स्पेशल छूट का प्रावधान किया जाए।

37- औद्योगिक सेक्टरों में खराब होती जा रही एलईडी लाइटों को ठीक कराया जाए विशेष तौर से सेक्टर 10 में । और ठ ब्लॉक के बीच की रोड में, ये सुरक्षा कारणों से भी काफी अहम है। क्योंकि औद्योगिक इकाईयां जहां रात की शिफ्ट में काम करने वाले सड़को पर चलने में असहजध्असुरक्षित महसूस ही नहीं करते है बल्कि अंधेरे में घटना का शिकार भी हो जाते हैं।

38- नोएडा फेस-1 औद्योगिक क्षेत्र की सबसे गम्भीर समस्या यहाॅ की झुग्गी-झोपड़ियाॅ। महोदय झुग्गियों के आसपास ना तो फैक्ट्रियों सुरक्षित है ओर ना ही फैक्ट्री मालिक और कर्मचारी। रात्रि के समय झुग्गियों में रहने वाले असमाजिक तत्व बाहर निकल कर सडक पर हुढ़दंग मचाते रहते है और दिन के समय में छोटे-छोटे बच्चे तक नषे का सामान ब्रिक्री करते रहते है। ऐसे में हर समय डर का माहोल बना रहता है। कई बार पुलिस में भी शिकायत की गई लेकिन कोई कार्रवाही नही हो पाती है। एसोसिएशन ने सीईओ से कहा है कि वे इनका निस्तारण कराएं।

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