अयोध्या विशेष : याद आई कहानी, 33 बरस पुरानी, कार सेवक मुरारी सिंह की जुबानी
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अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर संघर्ष 500 साल पुराना है। भगवान श्रीराम मंदिर का अब निर्माण लगभग पूरा हो गया है। रामलला विराजमान होने वाले हैं। ऐसे में noidakhabar.com कार सेवक के रूप में अक्टूबर 1990 में अयोध्या पहुंचे नोएडा निवासी मुरारी सिंह जी से बात की। उन्होंने उस दौर की चर्चा करते हुए अपना अनुभव शेयर किया। पढ़िए उनकी जुबानी यह कहानी।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रेरणा से विश्व हिंदू परिषद के तत्वाधान में कार सेवा के लिए पूरे देश के हिन्दू समाज को तैयार किया जा रहा था और उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने परिंदा भी पर नही मार सकता, ये कहकर चुनौती दी थी और हिंदू समाज ने उस मुस्लिम परस्त घमंडी मुख्यमंत्री के घमड़ को चूर चूर करने की ठान ली।
मेरे पास संघ में सह नगर कार्यवाह का दायित्व था हमारे नगर कार्यवाह स्व. श्री वचन सिंह नेगी जी जिनकी आयु में मुझसे लगभग 35 वर्ष अधिक थी यानी मैं 24 वर्ष का था और वह लगभग 60 के थे पर उनका उत्साह करसेवा में जाने के लिए बहुत अधिक था उनके उत्साह को देखकर मुझे बहुत प्रेरणा मिली और मैने भी कारसेवा में जाने की ठान ली , मेरी शादी हुए कुछ ही महीने हुए थे पिताजी बहुत सख्त स्वभाव के थे और हम सब जानते थे कि वो किसी भी हालत में करसेवा में जाने की अनुमति नहीं देंगे मैने बिना घर पर जानकारी दिए ही कारसेवा में जाने का निर्णय लिया और 26 अक्टूबर 1990 को 89 कार सेवको की टोली लेकर गोमती एक्सप्रेस ट्रेन से लखनऊ के लिए निकल गए।
शशि गार्डन पटपड़ गंज के एक भवन में हमारा विदाई कार्यक्रम रखा गया था नेगी जी को वाहनी प्रमुख
और मुझे उनका सहायक का दायित्व मिला प्रमुख दायित्व वालो को एक कटर पलाश कही लोहे की कंटीले तार मिले तो काटने के लिए दिए गए तथा साथ में सबको एक एक पोस्ट कार्ड जिस पर पता लिखा था दिया गया और निर्देश दिए गए की कही कंटीले तारों की बाढ़ मिले तो काट कर आगे बढ़ना है और अगर कही पकड़े जाओ तो वही पास के पोस्ट कार्ड भेजने की कोशिश करना। अलीगढ़ आते आते हमारे 30 से 32 कारसेवक पकड़े गए एक मुस्लिम महिला जो बुर्का पहने थी वो अलीगढ़ से बच्चों के साथ चढ़ी मैंने उसे अपने पास की सीट पर जगह दे दी और उसके एक बच्चे को गोद में बैठा लिया जिससे पुलिस से मैं बचकर लखनऊ पहुंच गए वहां पहुंचकर देखा तो हमारे मात्र 13 साथी ही बचे थे।
लखनऊ में रात्रि लगभग 10 बजे हम चारबाग लखनऊ स्टेशन पर उतर गए मैं और नेगी जी अपने साथियों को प्लेटफार्म पर छोड़कर बाहर आए दो पुलिस वाले हमारे पीछे लग गए मैंने अपनी जिंदगी में पहली बार सिगरेट पी। मैं और नेगी जी दोनो बाहर एक पान की दुकान पर खड़े हो गए और वही से सिगरेट लेकर हमें सिगरेट पीता देख पुलिस वाले वहां से चले गए कुछ देर बाद एक सज्जन हमारे पास आए और धीरे से बोले कारसेवक हो तो पीछे आ जाओ हम उनके पीछे चले गए उन्होंने ने हमे बताया कि गोरखपुर जाने वाली ट्रेन पकड़नी है 2 घंटे के करीब ट्रेन चलने के बाद ट्रेन मनका पर के आसपास पहुंचेगी वहां ट्रेन काफी धीरे हो जायेगी या चैन खींचकर ट्रेन रोक लेना वहां उतरकर पैदल धीरे धीरे अयोध्या के लिए बढ़ना है , दूसरा उन्होंने बताया कि वाराणसी की ट्रेन भी पकड़ सकते है वो ट्रेन अमेठी के पास निहाल गढ़ स्टेशन पर धीरे होगी या चैन खींचकर रोक कर उतरना है ।
अयोध्या जाने वाली सभी ट्रेन निरस्त कर दी गई थी बसे भी बंद थी , मैने रास्ता बताने वाले कार्यकर्ता से पूछा की मैं अयोध्या की लोकल जानकारी रखता हूं मैं तीसरे रास्ते से कारसेवकों को ले जा सकता हूं उन्होंने कहा मार्ग कोई भी चुन सकते है लक्ष्य अयोध्या पहुंचना है मै अपने बचे हुए साथियों को लेकर सड़क से हटकर पैदल अयोध्या के लिए चला अभी मात्र 5 से 6 किलोमीटर ही चले थे की जानकारी मिली की एक बस अयोध्या के लिए जाने वाली है कई दिन से फंसे हुए यात्रियों को ले जाने के लिए शासन ने अनुमति दी थी हम भी उसी बस में बैठ गए रास्ते में एक दो जगह पुलिस ने चेकिंग की और हमारे वाहनी प्रमुख नेगी जी पकड़े गए इस तरह से हम मात्र 12 ही बचे रात्रि लगभग 2 बजे हम फैजाबाद बस स्टैंड पहुंच गए।
सभी यात्री बस से उतरकर अपने अपने स्थान को जाने लगे शहर मे कर्फ्यू था बाहर बहुत अधिक संख्या में पुलिस थी एक नौजवान डीएसपी खड़े थे मैं उनके पास गया और मैने कहा साहब हमारा घर शहर से बाहर 10 किलोमीटर है और शहर में कर्फ्यू है हम कैसे जाए शायद राम जी हमारी सहायता करना चाहते थे डीएसपी साहब अपने ड्राइवर से कहा की इन्हे शहर से बाहर छोड़कर आओ और नीली बत्ती लगी गाड़ी ने हमे शहर के बाहर कर्फ्यू क्षेत्र पार करा दिया अब हम पैदल मेरे गांव सिरसिंडा सरायराशी की तरफ बढ़ने लगे रात्रि लगभग 3 बजे थे किसी की आवाज आई कारसेवक हो तो यहां आ जाओ हम ठिठककर रुक गए मैंने अपने साथियों को कहा तुम यही रुको मैं पता करके आता हूं क्योंकि उस क्षेत्र में
मुस्लिम भी थे ये जानकारी मुझे पहले से थी मैं वहां गया और आश्वस्त होकर अपने साथियों को वहां ले गया हम थक भी गए थे अक्टूबर होने पर भी रात्रि में सर्दी थी वहां धान कटने के बाद जो पुवाल था वह बिछाकर बिस्तर बनाया गया था गरीब लोग थे लेकिन राम भक्त थे वहां हम सब सो गए सुबह लगभग 7 बजे उठे उन लोगो ने हमे चाय पिलाई तथा चावल की लाई खिलाई।
मैने उनसे साइकिल मांगी और एक साथी की लेकर अपने गांव गया वहां से मेरे 5 चचेरे भाई अपनी अपनी साइकिल लेकर आए और सभी को हम अपने गांव ले गए वहां हम पुलिस की वजह से घर नहीं रुके बल्कि अपने खेत में बने ट्यूबवेल पर रुके पास के सभी गांवों में अलग अलग प्रदेशों से आए कारसेवक रुके थे 29 अक्टूबर तक हम वही खेतो में छुपे रहे गांव वालों ने सब प्रकार से सहायता की और 29 की रात्रि हम अपने गांव से गन्ने के खेतो में से होते हुए सरयू नदी के किनारे किनारे अयोध्या की तरफ कूच कर गए अब धीरे धीरे अन्य गांवों में रुके हुए कारसेवक भी हमारे साथ जुड़ते गए और अब हम बहुत संख्या में थे लंबी कतार और आगे आगे एक स्थानीय बड़ी टॉर्च लेकर हमे मार्ग दिखा रहा था उसके बारे में मैंने अपने भाई से पूछा तो उसने बताया यहां का बड़ा अपराधी है बड़ा आश्चर्य लगा इतना बड़ा अपराधी हमारा मार्गदर्शन कर रहा है ध्यान आया राम कार्य में सब साथ है।
30 अक्टूबर सुबह लगभग 9 बजे हम अयोध्या पहुंच गए थे कुछ राजनीतिक लोगो ने कहा अब गिरफ्तारी दे देनी चाहिए पुलिस बहुत अधिक है पर अधिकतर लोग चाहते थे कि बाबरी ढांचे तक पहुंचना ही है तभी खबर मिली की माननीय अशोक सिंघल जी हनुमान गढ़ी के पास लाठी चार्ज में घायल हो गए है बस फिर क्या था कारसेवकों का धैर्य टूट गया और देखते देखते हजारों कारसेवकों का हुजूम हनुमान गढ़ी होते हुए बाबरी ढांचे तक पहुंच गया पुलिस ने गोली चला दी आंसू गैस के गोले और लाठी चार्ज कर दिया जैसे तैसे हम सब निकलकर छोटी छावनी तक गए हम हम सिर्फ 7 ही बचे थे बाकी साथी बिछड़ गए
मुलायम का दंभ टूट गया , 2 नवंबर को सभी दिगंबर अखाड़े के पास एकत्र हो रहे थे हम छोटी छावनी में आचार्य धर्मेन्द्र जी के ओजस्वी वाणी सुन रहे थे तभी पता चला दिगंबर अखाड़े के पास गोली चल रही है हृदय विदारक दृश्य था वहां का ऐसी कठिन और जीवन देकर आज हम अपने आराध्य भगवान श्री राम के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कर पाए है और हम सौभाग्यशाली है की हम इस अवसर के साक्षी बन रहे है।
( श्री मुरारी सिंह जी का लेख)
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