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नई दिल्ली/लखनऊ, 17 जनवरी।आपने गांव के एरिया में रामलीला के मंचन के दौरान राधेश्याम रामायण का नाम जरुर सुना होगा। राधेश्याम रामायण में संवादों के जरिए ही रामलीला मंचन करते हुए कलाकार लोगों को आकर्षित करते थे बीच-बीच में व्यास पीठ पर मौजूद संचालक रामचरितमानस की चौपाइयों का पाठ करते थ। आज जब अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण पूरा हो रहा है और श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूरे देश में आयोजन किया जा रहे हैं ऐसे समय में हम भगवान राम की लीला को जन-जन तक अपनी राधेश्याम रामायण के जरिये पहुंचाने वाले बरेली निवासी पंडित राधेश्याम को जरूर याद करेंगे जो राधेश्याम रामायण के रचयिता थे। यह जानना जरूरी है कि राधेश्याम कथावाचक कौन थे यह इतिहास हम आपको बताना चाहते हैंबरेली के बिहारीपुर में पैदा हुए थे राधेश्याम जी

राधेश्याम कथावाचक का जन्म 25 नवम्बर 1890 को बरेली के निकट बिहारीपुर मोहल्ले में पण्डित बांकेलाल के यहाँ हुआ था। केवल 17-18 की आयु में ही उन्होंने राधेश्याम रामायण की रचना की थी। यह रामायण अपनी मधुर गायन शैली के कारण शहर कस्बे से लेकर गाँव तक आम जनता में इतनी अधिक लोकप्रिय हुई कि उनके जीवनकाल में ही उसकी हिन्दी-उर्दू में पौने दो करोड़ से ज्यादा प्रतियाँ छपकर बिक चुकी थीं।

मोतीलाल नेहरू ने 40 दिन तक सुनी थी कथा

रामकथा वाचन की शैली से प्रभावित होकर मोतीलाल नेहरू ने राधेश्याम जी को इलाहाबाद स्थित आनन्द भवन अपने निवास पर बुला कर चालीस दिनों तक कथा सुनी थी। 1922 में लाहौर के विश्व धर्म सम्मेलन का शुभारम्भ राधेश्याम जी के लिखे व गाये मंगलाचरण से हुआ था।

दो फिल्मों के गीत भी लिखे थे

राधेश्याम कथावाचक ने महारानी लक्ष्मीबाई  और कृष्ण-सुदामा फिल्मों के लिये गीत भी लिखे। महामना मदन मोहन मालवीय उनके गुरु थे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने भी उन्हें नई दिल्ली  में आमन्त्रित कर उनसे पंद्रह दिनों तक रामकथा का आनन्द लिया था। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु धन जुटाने महामना जब बरेली पधारे तो राधेश्याम कथावाचक ने उनको अपनी साल भर की कमाई उन्हें दान दे दी थी। 26 अगस्त 1963 को अपनी मृत्यु से पूर्व वे अपनी आत्मकथा भी मेरा नाटक काल नाम से लिख गये थे।

धार्मिक और ऐतिहासिक व पौरोणिक नाटक लिखे थे

राधेश्याम कथावाचक जी ने इन कंपनियों के लिए लगभग एक दर्जन नाटक लिखे जिनमें श्रीकृष्णावतार रुक्मणि मंगल ईश्वरभक्ति , द्रोपदी स्वयम्बर परिवर्तन आदि नाटकों को रंगमंचीय दृष्टि से विशेष सफलता मिली।

73 वर्ष की उम्र में निधन

इन नाटकों में जनता के नैतिक स्तर को उठाने तथा रुचि का परिष्कार करने का प्रयास तो था परन्तु अन्य सब बातों में पारसी रंगमंचीय परम्पराओं का ही पालन किया गया था, जैसे घटना वैचित्र्ययुक्त रोमांचकारी दृश्यों का विधानन, पद्यप्रधान संवाद, लययुक्त गद्य तथा अतिनाटकीय प्रसंगों की योजना आदि प्रायः ज्यों की त्यों इनमें भी विद्यमान थी। 26 अगस्त 1963 को 73 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।

सवा करोड़ भारतीयों तक थी पहुंच

राधेश्याम कथावाचक ने अपने जीवनकाल में विपुल लेखन किया था। लगभग स्वयं की लिखी 57 पुस्तकें तथा 175 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन एवं प्रकाशन करके राधेश्याम पुस्तकालय (प्रेस) को ऊंचाइयों तक पहुँचाया। अपने जीवन के लगभग 45 वर्षों तक कथावाचन एवं नाट्यलेखन-मंचन में भारत के सिरमौर बने रहे। आपने कथावाचन की जो शैली विकसित की उसे राधेश्याम छन्द (तजऱ् राधेश्याम) के रूप में प्रसिद्धि मिली। खड़ी बोली में लिखी रामायण का प्रयोग सफल रहा। राधेश्याम रामायण उनके जीवनकाल में ही लगभग सवा करोड़ परिवारों में पहुंच चुकी थी।

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