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नोएडा: श्रीमद्भागवत कथा में बोले राजेंद्रानन्द सरस्वती महाराज, धर्म की स्थापना के लिए प्रभु लेते हैं अवतार

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नोएडा, 18 अप्रैल।

नोएडा सेक्टर 134 जेपी विशटाउन क्लासिक में आयोजित भागवत कथा के चौथे दिन कथा पांडाल में धूमधाम से भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया, जिसकी जानकारी श्री गौरी शंकर वैदिक धर्मार्थ ट्रस्ट के राष्ट्रीय महासचिव और प्रभारी भानू प्रताप लवानिया ने दी!

महाराज जी ने बताया जब-जब धरती पर आसुरी शक्ति हावी हुईं, परमात्मा ने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की। मथुरा में राजा कंस के अत्याचारों से व्यथित होकर धरती की करुण पुकार सुनकर नारायण ने कृष्ण रुप में देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में जन्म लिया और धर्म और प्रजा की रक्षा कर कंस का अंत किया।

यह बात नोएडा में चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत के चौथे दिन भगवान श्रीकृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाते हुए कथा वाचक श्री राजेंद्रानंद सरस्वती जी ने श्रद्धालुओं के बीच कही।

प्रभु हमें समझाना चाहते हैं कि सृष्टि का सार तत्व परमात्मा है। इसलिए असार यानी संसार के नश्वर भोग पदार्थों की प्राप्ति में अपने समय, साधन और सामर्थ को अपव्यय करने की जगह हमें अपने अंदर स्थित परमात्मा को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। इसी से जीवन का कल्याण संभव है।

भागवत के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हुए चौथे दिवस मैं महाराज जी ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा का वर्णन किया। इसके पूर्व महाराज जी ने कहा कि जीवन में भागवत कथा सुनने का सौभाग्य मिलना बड़ा दुर्लभ है। जब भी हमें यह सुअवसर मिले, इसका सदुपयोग करना चाहिए। कथा सुनते हुए उसी के अनुसार कार्य करें। कथा का सुनन तभी सार्थक होगा। जब उसके बताए हुए मार्ग पर चलकर परमार्थ का काम करें।

उन्होंने रामकथा का संक्षिप्त में वर्णन करते हुए कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने धरती को राक्षसों से मुक्त करने के लिए अवतार धारण किया। कथा में कृष्ण जन्म का वर्णन होने पर समूचा पांडाल खुशी से झूम उठा। मौजूद श्रद्धालु भगवान कृष्ण के जय जय कार के साथ झूमकर कृष्ण जन्म की खुशियां मनाई। कथा सुनने सेक्टर वासियों के साथ साथ आसपास गांव से बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।

श्रीमद्भागवत कथा का तीसरा दिन मुख्य यजमान निशा और संतोष कुशवाहा परिवार की ओर से मंगलवार को कथा व्यास महंत श्री राजेंद्रानंद सरस्वती जी महाराज ने कहा कि मनुष्यों का क्या कर्तव्य है इसका बोध भागवत सुनकर ही होता है!

विडंबना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निष्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोग अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं।

महाराज जी ने कहा कि प्रभु जब अवतार लेते हैं तो माया के साथ आते हैं। साधारण मनुष्य माया को शाश्वत मान लेता है और अपने शरीर को प्रधान मान लेता है। जबकि शरीर नश्वर है। उन्होंने कहा कि भागवत बताता है कि कर्म ऐसा करो जो निस्काम हो वहीं सच्ची भक्ति है!

कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है।

कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। अजामिल उपाख्यान के माध्यम से इस बात को विस्तार से समझाया गया साथ ही प्रह्लाद चरित्र के बारे में विस्तार से सुनाया और बताया कि भगवान नृसिंह रुप में लोहे के खंभे को फाड़कर प्रगट होना बताता है कि प्रह्लाद को विश्वास था कि मेरे भगवान इस लोहे के खंभे में भी है और उस विश्वास को पूर्ण करने के लिए भगवान उसी में से प्रकट हुए एवं हिरण्यकश्यप का वध कर प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की। कथा के दौरान भजन गायकों ने भजनों की प्रस्तुति दी।

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