संघर्ष और समर्पण की प्रतीक हैं हमारी नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, कैसे पहुंची खपरैल के घर से राष्ट्रपति भवन तक
1 min readनई दिल्ली, 22 जुलाई।
भारत की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उस भारतीय समाज के लिए सुखद आश्चर्य है जहां आज भी बेटियों को पराया धन मानकर चूल्हे चौके में खटने की मानसिकता से पाला जा रहा है। यह एक माँ की तितिक्षा स्त्री की जीवंतता व संघर्ष और समर्पित कार्यकर्ता की दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र के शीर्ष पर पहुंचने की शानदार कहानी है।
सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति
मुर्मू का देश का प्रथम नागरिक बनना हर भारतीय के हृदय को गर्व और आत्मविश्वास से भरने वाला है उड़ीसा की मयूरभंज के ऊपर बेेेड़ा गांव में जन्मी मुर्मू भारत के राष्ट्रपति भवन तक पहुंचने वाली सबसे कम उम्र की राष्ट्रपति है और आजादी के बाद जन्मे देश की पहली राष्ट्रपति हैं। उनका जीवन प्रेरक कथा जैसा है जब उन्होंने अपने 2 जवान बेटों और पति को खोया और उसके बाद भी संघर्षों से जूझते हुए अपनी बेटी को पाला और आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुई हैं।
संथाल जनजाति समुदाय में जन्मी
20 जून 1958 को संथाल जनजाति के कबीलाई मुखिया बिरंचि नारायण टूडू के घर जन्मी द्रौपदी मुर्मू ने ऊपरबेड़ा गांव के ही स्कूल में प्राइमरी शिक्षा हासिल की। वह स्नातक तक शिक्षा करने वाली गांव की पहली लड़की है। कॉलेज के दौरान ही अपने सहपाठी श्याम चरण मुर्मू से प्रेम करने लगी पिता को मालूम हुआ तो यह नाराज हुए मगर द्रौपदी और श्याम के धैर्य व संकल्प के आगे पिता को झुकना पड़ा और आदिवासी गांव में उनका प्रेम हुआ हुआ और वह भी धूमधाम से।
पार्षद से शुरू हुआ राजनीतिक सफर
उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा 1979 में भुवनेश्वर के रामादेवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री के रूप में हासिल की उसके बाद वह रायरंगपुर के श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में शिक्षक रही और इसके बाद सिंचाई और ऊर्जा विभाग में कनिष्ठ सहायक बनी एक दशक तक सरकारी नौकरी की और 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के चुनाव में पार्षद चुनी गई 2000 और 2009 में रायरंगपुर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक बनी 2000 से 2004 तक नवीन पटनायक के मंत्रिमंडल में स्वतंत्र प्रभार राज्यमंत्री रही उन्होंने वाणिज्य परिवहन मत्स्य पालन व पशु संसाधन जैसे मंत्रालय संभाले दो 2006 में बीजेपी ने उन्हें अनुसूचित जाति मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया।
2009 से 2014 के बीच दुःखद रहा क्षण, दो बेटे और पति को खोया
2010 से 2014 के बीच उनका जीवन दुखद रहा 2010 में उनके बड़े बेटे लक्ष्मण की रहस्यमय ढंग से घर मे ही से मौत हो गई । 2012 में एक सड़क हादसे में छोटे बेटे बिरंचि की मौत हो गई और 2014 में उनके पति श्याम चरण मुर्मू की मौत हो गई।
2015 में बनी झारखंड की राज्यपाल
उनकी राजनीति में उस समय बदलाव आया जब उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया, तब उन्होंने राजभवन जनता के लिए खोल दिया और सीधे जनता की मदद करने लगी सत्ता और विपक्ष को समभाव से देखते हुए हमेशा विवादों से दूर रही
सुबह 3.30 बजे उठ जाती हैं
द्रौपदी मुर्मू ने रायरंगपुर में ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुखिया से संपर्क किया और अवसाद से बचने के लिए ध्यान करने लगी रोज सुबह 3:30 बजे बिस्तर छोड़ देती है और योग व ध्यान जरूर करती है वह शुद्ध शाकाहारी है प्याज व लहसुन का भी इस्तेमाल नहीं करती 2009 में जब मुर्मू दूसरी बार विधायक बने बनी तब उनके पास कुल जमा पूंजी ₹900000 थी जिस पर ₹400000 की देनदारी थी उन्होंने सर्वश्रेष्ठ विधायक का नीलकंठ पुरस्कार भी जीता था उन्होंने देनदारी को खत्म करने के लिए जमीन बेच दी थी।
(Noidakhabar.com के लिए विशेष रिपोर्ट )
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