आखिर गुजरात चुनाव में ही देश और दुनिया की दिलचस्पी क्यों?, क्या कांग्रेस की कमजोरी आप की ताकत बनेगी?
1 min readविनोद शर्मा,
नई दिल्ली, 14 सितम्बर।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के पैतृक राज्य गुजरात में नवम्बर दिसंबर में होने वाले चुनाव को लेकर देश के राजनीतिक दलों की नजर है। वैसे तो बीजेपी पिछले 27 वर्षों से गुजरात की सत्ता पर काबिज है। मोदी के 2001 से लेकर 12 वर्ष 227 दिन के मुख्यमंत्री कार्यकाल के बाद से गुजरात में बीजेपी को टक्कर देने वाली कोई पार्टी नहीं है। वर्ष 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 182 सदस्य वाली विधानसभा में 111 सीट जीती थी। तब कांग्रेस ने 63 सीट जीती थी। वर्ष 2022 का चुनाव इसी नजरिए से दिलचस्प बन रहा है। वहीं कांग्रेस की कमजोरी का फायदा आम आदमी पार्टी उठाना चाहती है। पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल के लगातार गुजरात के दौरे ने बीजेपी हाईकमान के पसीने छुड़ा दिए हैं। इसकी वजह यह है कि यह गृहमंत्री और प्रधानमंत्री का गृह राज्य है। इस प्रदेश के चुनाव परिणाम पर ही वर्ष 2024 के राजनीतिक दंगल की दिशा तय होने जा रही है।
वर्ष 2014 के बाद से लेकर अब तक नरेंद्र मोदी की छवि न केवल देश में बल्कि पूरी दुनिया में एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरी है। उन्हें सरदार पटेल, इंदिरा गांधी की तरह बोल्ड फैसले लेने के लिए भी जाना जाता है। धारा 370 का मुद्दा, अयोध्या में श्रीराम मंदिर की स्थापना, तीन तलाक. नोटबंदी, जीएसटी लागू करना, रेरा के कानून का लागू कराने जैसे अहम मुद्दे हैं। इसके बावजूद बीजेपी गुजरात को लेकर चिंतित है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का सारा फोकस गुजरात पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बीच बीच में समय निकालकर गुजरात का दौरा कर रहे हैं। उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि बीजेपी ने जहां लगभग साढ़े बारह साल तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में स्थाई सरकार दी। वहीं वर्ष 2014 में मोदी के अपने उत्तराधिकारियों के सत्ता सौंपने के बाद से पार्टी ने कई चेहरे बदल लिए हैं। 22 मई 2014 को आनंदी बेन पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। वे सिर्फ दो वर्ष 77 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाई। इसके बाद विजय रूपाणी मुख्यमंत्री बने। बीजेपी ने कार्यकाल पूरा होने से पहले ही विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर उनके स्थान पर भूपेंद्र भाई पटेल को मुख्यमंत्री बना दिया। इससे पार्टी में आंतरिक रूप से मतभेद हैं। बीजेपी की कोशिश यही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में मतभेद की दरार पाट ली जाएगी। कांग्रेस के कई नेता पार्टी छोड चुके हैं। आम आदमी पार्टी ने जैसा दिल्ली और पंजाब में भारी बहुमत हासिल किया है उससे कहीं न कहीं बीजेपी हाईकमान की चिंता बढी है। गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों में आप की सफलता से आप का नेतृत्व गदगद है। इसी वजह से पार्टी की मजबूती से एंट्री चाहते हैं। आप का लक्ष्य पार्टी को देश में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने के साथ ही देश में नंबर दो की पार्टी बनने का है। बाकी क्षेत्रीय दल के रूप में अपनी ताकत को जोड़ने में लगे हैं।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आप के चुनावी वादे कहीं बीजेपी पर भारी न पड जाएं। चुनाव से ऐन वक्त पर प्रधानमंत्री ने सब्सिडी योजना को रेवडी कहकर इसे बंद करने की बात कही है। वहीं अरविद केजरीवाल ने पूरे देश में स्वास्थ्य व शिक्षा को मुफ्त करने व बिजली, पानी जैसी मौलिक सुविधाओं में सब्सिडी देने का वादा गुजरात में भी कर दिया। जरूरी चीजों की बढती महंगाई और बेरोजगारी के कारण युवा हतोत्साहित है। किसान की हालत भी ठीक नहीं है। ऐसे समय में गुजरात के चुनाव वाकई देश की राजनीति के लिए मायने रखते हैं। सवाल यह उठता है कि कांग्रेस क्या इतनी कमजोर हो गई है जिसकी आवाज को केजरीवाल नकार रहे हैं या केजरीवाल के उभरने से कांग्रेस के आगे बढ़ने की कोशिशें कम होगी और इसका फायदा बीजेपी को वर्ष 2022 के चुनाव में मिलेगा।
(नोएडा खबर डॉट कॉम के लिए विशेष रिपोर्ट)
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