स्वतंत्रता संग्राम के नायक धन सिंह गुर्जर की बलिदान गाथा, 4 जुलाई को हुए थे शहीद
1 min read75 आज़ादी का अमृत महोत्सव
बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कार, समाज-सेवा, लोगों के आर्थिक स्वावलंबन, गुमनाम क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों पर शोध एवं उनके सम्मान के लिए समर्पित मातृभूमि सेवा संस्था, आज देश के ज्ञात एवं अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों को उनके अवतरण, स्वर्गारोहण तथा बलिदान दिवस पर, उनके द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए अद्भूत एवं अविस्मरणीय योगदान के सम्मान में नतमस्तक है।
बलिदानी धन सिंह गुर्जर जी
(27.11.1814 – 04.07.1857)
राष्ट्रभक्त साथियों सन् 1857 की क्रांति के विषय में तो आप आवश्य जानते होंगे, क्या सन् 1857 की क्रांति के वीर बलिदानी धन सिंह गुर्जर जी के विषय में जानते हैं ? यदि नहीं तो मातृभूमि सेवा संस्था इस महान बलिदानी के जीवन परिचय पर प्रकाश डालना चाहेगी। मेरठ क्रान्ति की शुरुआत 10 मई 1857 की सांझ को ठीक 05 बजे मेरठ के घण्टाघर और कैंट के गिरजाघर का घण्टा बजते ही मेरठ सदर बाज़ार और कोतवाली में हो गई। उस दिन मेरठ में धन सिंह गुर्जर जी के नेतृत्व मे विद्रोही सैनिकों और पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। धन सिंह कोतवाल जनता के सम्पर्क में थे। उनका संदेश मिलते ही हजारों की संख्या में क्रान्तिकारी रात में मेरठ पहुँच गये। समस्त पश्चिमी उत्तर प्रदेश, देहरादून, दिल्ली, मुरादाबाद, बिजनौर, आगरा, झांसी, पंजाब, राजस्थान से लेकर महाराष्ट्र तक के गुर्जर इस स्वतन्त्रता संग्राम में कूद पड़े। विद्रोह की खबर मिलते ही आस-पास के गाँव के हजारों ग्रामीण गुर्जर मेरठ की सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए।
इसी मेरठ कोतवाली में धन सिंह गुर्जर जी पुलिस प्रमुख थे। 10 मई 1857 को धन सिंह गुर्जर जी की योजना के अनुसार बड़ी चतुराई से ब्रिटिश सरकार के वफादार पुलिसकर्मियों को कोतवाली के भीतर चले जाने और वहीं रहने का आदेश दिया और धन सिंह के नेतृत्व में देर रात 02 बजे जेल तोड़कर 836 कैदियों को छुड़ाकर जेल को आग लगा दी। छुड़ाए कैदी भी क्रान्ति में शामिल हो गए। उससे पहले भीड़ ने पूरे सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में जो कुछ भी अंग्रेजों से सम्बन्धित था सब नष्ट कर चुकी थी। रात में ही विद्रोही सैनिक दिल्ली कूच कर गए और विद्रोह मेरठ के देहात में फैल गया। इस क्रान्ति के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने धन सिंह को मुख्य रूप से दोषी ठहराया, और सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि धन सिंह क्योंकि स्वयं गुर्जर है इसलिए उसने गुर्जरो की भीड को नहीं रोका और उन्हे खुला संरक्षण दिया। इसके बाद धन सिंह गुर्जर जी को गिरफ्तार कर मेरठ के एक चौराहे पर 04 जुलाई 1857 को फाँसी पर लटका दिया गया। मेरठ की पृष्ठभूमि में अंग्रेजों के जुल्म की दास्तान छुपी हुई है।
📝 *मेरठ गजेटियर के अनुसार 04.07.1857 को प्रातः 4 बजे पांचली पर एक अंग्रेज रिसाले ने 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपों से हमला किया। पूरे ग्राम को तोप से उड़ा दिया गया। सैकड़ों गुर्जर किसान मारे गए, जो बच गए उनको कैद कर फाँसी की सजा दे दी गई। आचार्य दीपांकर द्वारा रचित पुस्तक “स्वाधीनता आन्दोलन” और मेरठ के अनुसार पांचली के 80 लोगों को फाँसी की सजा दी गई थी। ग्राम गगोल के भी 9 लोगों को दशहरे के दिन फाँसी दे दी गई और पूरे ग्राम को नष्ट कर दिया। आज भी इस ग्राम में दश्हरा नहीं मनाया जाता। मेरठ विश्वविद्यालय के एक कैम्पस का नाम महान क्रन्तिकारी कोतवाल धन सिंह गुर्जर के नाम पर रखा गया हैं। सरकारी उदासीनता के चलते कोतवाल धन सिंह को इतिहास की विस्मृत गलियों में छोड़ दिया गया है। मातृभूमि सेवा संस्था’ ऐसे परम राष्ट्रभक्त व वीरता के प्रतीक अमर बलिदानी धन सिंह गुर्जर व उनके सैकड़ों राष्ट्रभक्त साथियों के 165वें बलिदान दिवस पर संपूर्ण भारतवासी उनके आदर व सम्मान में नतमस्तक हैं।
लेख: राकेश कुमार
मातृभूमि सेवा संस्था ☎️ 9891960477
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