उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण का विरोध: संघर्ष समिति ने सांसदों-विधायकों से की टेकओवर की मांग

लखनऊ, (नोएडा खबर डॉट कॉम)
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने बिजली निजीकरण के खिलाफ अपनी मुहिम को तेज करते हुए प्रदेश के सभी सांसदों और विधायकों को पत्र भेजकर मांग की है कि आगरा और ग्रेटर नोएडा की बिजली वितरण व्यवस्था को पावर कॉरपोरेशन द्वारा तत्काल टेकओवर किया जाए और पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के प्रस्ताव को रद्द किया जाए। समिति ने निजीकरण को विफल प्रयोग करार देते हुए इसे जनता पर थोपने का विरोध किया है।
संघर्ष समिति के केंद्रीय पदाधिकारी शैलेंद्र दुबे ने बताया कि आगरा में टोरेंट पावर को 2010 में बिजली वितरण सौंपने से पावर कॉरपोरेशन को 14 वर्षों में 2434 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। उन्होंने दावा किया कि वास्तविक नुकसान 10,000 करोड़ रुपये के करीब है। वर्ष 2023-24 में कॉरपोरेशन ने 5.55 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदकर टोरेंट को 4.36 रुपये प्रति यूनिट पर बेची, जिससे 274 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। यदि आगरा की व्यवस्था सरकारी क्षेत्र में होती, तो 7.98 रुपये प्रति यूनिट की दर से 800 करोड़ रुपये का मुनाफा होता। इसके अतिरिक्त, 2010 में 2200 करोड़ रुपये का बकाया राजस्व टोरेंट ने आज तक कॉरपोरेशन को नहीं लौटाया।

ग्रेटर नोएडा में नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड द्वारा घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों को पर्याप्त बिजली आपूर्ति न करने की शिकायतों के चलते उत्तर प्रदेश सरकार सर्वोच्च न्यायालय में इसका लाइसेंस रद्द करने की लड़ाई लड़ रही है। समिति ने उड़ीसा का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां निजीकरण तीसरी बार विफल हुआ है, जहां टाटा पावर की खराब सेवाओं के कारण 15 अगस्त के बाद जन सुनवाई होगी। उज्जैन, ग्वालियर, रांची, औरंगाबाद जैसे शहरों में भी निजीकरण के प्रयोग विफल हो चुके हैं।

संघर्ष समिति ने सांसदों और विधायकों से अपील की कि वे ‘विकसित भारत, विकसित यूपी’ के विजन के तहत निजीकरण के फैसले को रद्द करवाएं और आगरा व ग्रेटर नोएडा की बिजली व्यवस्था को सरकारी क्षेत्र में लाने के लिए प्रभावी कदम उठाएं। निजीकरण के विरोध में समिति का आंदोलन 257वें दिन भी प्रदेश भर में जारी रहा, जिसमें बिजली कर्मचारियों ने व्यापक प्रदर्शन किए।शैलेंद्र दुबे ने कहा, “यह निजीकरण जनता और कर्मचारियों के हितों के खिलाफ है। हम सांसदों-विधायकों से जनहित में हस्तक्षेप की मांग करते हैं।”

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