मुंबई/दिल्ली, (नोएडा खबर डॉट कॉम)
देशभर के बिजली कर्मचारी और इंजीनियर बिजली क्षेत्र के निजीकरण और केंद्र सरकार द्वारा पेश बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। मुंबई में आयोजित राष्ट्रीय समन्वय समिति ऑफ इलेक्ट्रिसिटी एम्प्लॉयीज़ एंड इंजीनियर्स (एनसीसीओईईई) की बैठक में फैसला लिया गया कि यदि केंद्र और राज्य सरकारें निजीकरण प्रक्रिया नहीं रोकतीं और विधेयक को तत्काल वापस नहीं लेतीं, तो 30 जनवरी 2026 को दिल्ली के जंतर मंतर पर लाखों बिजली कर्मचारी-इंजीनियरों की विशाल रैली आयोजित की जाएगी। यह रैली राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरुआत होगी।
बैठक में उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के चल रहे विरोध आंदोलन को पूर्ण समर्थन दिया गया। चेतावनी दी गई कि यदि यूपी सरकार निजीकरण का फैसला वापस नहीं लेती, तो देशभर के 27 लाख बिजली कर्मचारी उनके समर्थन में सड़कों पर उतरेंगे।
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के चेयरमैन और संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि मुंबई बैठक में एनसीसीओईईई के प्रमुख पदाधिकारी जैसे पी. रत्नाकर राव, मोहन शर्मा, सुदीप दत्ता, के. अशोक राव, कृष्णा भोयूर, लक्ष्मण राठौड़, संतोष खुमकर और संजय ठाकुर शामिल हुए।
किसान-उपभोक्ताओं के साथ संयुक्त मोर्चा
समिति ने किसान संगठनों और सामान्य उपभोक्ता संगठनों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। संयुक्त मोर्चे की पहली बैठक 14 दिसंबर 2025 को दिल्ली में होगी। दिसंबर में ही एनसीसीओईईई कोर कमेटी, संयुक्त किसान मोर्चा और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन्स के नेताओं की संयुक्त बैठक होगी।आंदोलन अभियान के तहत 15 नवंबर 2025 से 25 जनवरी 2026 तक सभी राज्यों में बिजली कर्मचारियों, किसानों और उपभोक्ताओं के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। नवंबर, दिसंबर और जनवरी में राज्य स्तरीय संयुक्त सम्मेलन होंगे, ताकि 30 जनवरी को “दिल्ली चलो” का आह्वान सफल हो।
विधेयक को किसान-कर्मचारी विरोधी बताया
शैलेंद्र दुबे ने कहा कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 पूरे ऊर्जा क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपने की साजिश है। निजीकरण से बिजली दरें आसमान छुएंगी, जो किसानों और आम उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो जाएंगी।
धारा 14, 42 और 43: निजी कंपनियों को सरकारी डिस्कॉम्स के नेटवर्क का इस्तेमाल कर बिजली सप्लाई का अधिकार, बदले में सिर्फ नाममात्र व्हीलिंग चार्ज।
नेटवर्क रखरखाव का बोझ: पूरी जिम्मेदारी सरकारी कंपनियों पर, वित्तीय भार भी उन्हीं पर।
चुनिंदा उपभोक्ता: निजी कंपनियां लाभकारी औद्योगिक-व्यावसायिक ग्राहकों को प्राथमिकता देंगी, किसान और गरीब घरेलू उपभोक्ता सरकारी कंपनियों पर।
नतीजा: सरकारी डिस्कॉम्स दिवालिया, कर्मचारियों को वेतन तक मुश्किल।
क्रॉस-सब्सिडी खत्म: धारा 61(जी) में संशोधन से 5 साल में सब्सिडी समाप्त। टैरिफ लागत-आधारित होगा।किसान (6.5 HP पंप, 6 घंटे/दिन): कम से कम 12,000 रुपये/माह बिल।
बीपीएल उपभोक्ता: 10-12 रुपये/यूनिट।
वर्चुअल पावर मार्केट: दीर्घकालिक समझौते अस्थिर, बिजली कीमतें अस्थिर।
संघीय ढांचे पर हमला: बिजली समवर्ती सूची में है, लेकिन विधेयक से केंद्र राज्यों के अधिकार छीनेगा, वितरण और टैरिफ में सीधा हस्तक्षेप।
दुबे ने मांग की कि केंद्र सरकार विधेयक तत्काल वापस ले, वरना 27 लाख बिजली कर्मचारी-इंजीनियर अनिश्चितकालीन आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।यह आंदोलन बिजली क्षेत्र की रक्षा, किसानों की सब्सिडी और आम जनता की सस्ती बिजली के लिए अहम साबित होगा।
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