चुनावी चर्चा: उत्तराखंड की सड़कों का सफर: विकास की धमनियाँ या चुनावी हथियार ?

नोएडा/ देहरादून,(नोएडा खबर डॉट कॉम)
हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड में सड़कें न सिर्फ पहाड़ों को जोड़ती हैं, बल्कि राजनीति की धमनियाँ भी हैं। चारधाम महामार्ग से लेकर ऋषिपना-बिंदाल नदियों पर ऊंचे कॉरिडोर तक, राज्य सरकार की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ तेजी से गति पकड़ रही हैं। लेकिन 2027 के विधानसभा चुनावों के करीब आते ही ये सड़कें विकास का प्रतीक तो हैं ही, राजनीतिक दलों के लिए वोटों का बड़ा हथियार भी बन रही हैं। क्या ये परियोजनाएँ वाकई ग्रामीणों की जिंदगी बदल देंगी, या सिर्फ चुनावी वादों का हिस्सा साबित होंगी? आइए, इसकी कहानी को करीब से देखें।

पहाड़ों की पुकार: सड़कों की बुनियादी जरूरत

उत्तराखंड का भूगोल चुनौतीपूर्ण है भूस्खलन, बाढ़ और दुर्गम इलाके। राज्य में करीब 30,000 किलोमीटर सड़कें हैं, लेकिन कई इलाकों में आज भी पैदल ही जाना पड़ता है। 2025 में केंद्र और राज्य सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर जोर दिया है। सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है चारधाम महामार्ग विकास परियोजना, जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री को जोड़ने वाली 889 किलोमीटर लंबी सड़क है। अक्टूबर 2025 तक इसकी 85 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है, और 2025 में ब्रिज व टनल्स का निर्माण तेज हो गया।
इसका फायदा?

तीर्थयात्रियों की संख्या बढ़ेगी, पर्यटन को बल मिलेगा, और सीमा क्षेत्रों में सुरक्षा मजबूत होगी। लेकिन पर्यावरणविद चिंतित हैं – हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को नुकसान का डर।राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 2025 में कई प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी दी। अप्रैल में केंद्रीय सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (CRIF) के तहत 12 योजनाओं के लिए 454 करोड़ रुपये मंजूर हुए, जो राज्य भर की सड़कों को मजबूत करेंगे।

पिथौरागढ़ के धारचूला में भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी के पास एक्सेस रोड के लिए 380 लाख, चमोली में घाट-रामनी मोटर रोड के लिए 660 लाख – ये प्रोजेक्ट्स ग्रामीणों को बाजार और अस्पताल से जोड़ेंगे। जुलाई में धामी ने ऋषिपना और बिंदाल नदियों पर फोर-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर (11 और 15 किमी लंबा) का काम तेज करने के निर्देश दिए, जो देहरादून की ट्रैफिक जाम की समस्या हल करेगा।

अक्टूबर में दोनिखाल-रतिधाट मोटर रोड के लिए 9.81 करोड़ मंजूर हुए, जो पहाड़ी गांवों को मुख्य सड़क से जोड़ेगा।

ये प्रोजेक्ट्स एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों से भी फंडिंग ले रहे हैं, जो 1000 किमी सड़कों को अपग्रेड करने पर फोकस कर रहे हैं।

नतीजा?
2025 में सड़क घनत्व बढ़ा, लेकिन भूस्खलन प्रभावित इलाकों में जियोसिंथेटिक रिटेनिंग वॉल जैसी नई तकनीकें इस्तेमाल हो रही हैं।

ग्रामीणों की आवाज: उम्मीद और शिकायतें

पौड़ी गढ़वाल के एक गांव में रहने वाले किसान पृथ्वी सिंह (नाम बदला गया) बताते हैं, “पहले सड़क न होने से फसल बाजार नहीं पहुंच पाती थी। अब चारधाम प्रोजेक्ट से दूरी कम हुई, लेकिन धूल और भूस्खलन ने खेती बर्बाद कर दी।” पर्यटन से रोजगार बढ़ा है – होटल, गाइड्स का काम – लेकिन स्थानीय कहते हैं कि विकास का फायदा शहरों तक सीमित है।

चमोली की एक महिला व्यापारी ने कहा, “नंदा देवी राज जाट यात्रा के लिए घाट-रामनी रोड बेहतर हो रही है, लेकिन स्वास्थ्य केंद्र दूर हैं। सड़कें अच्छी होंगी तो डॉक्टर आएंगे।

“चुनावी पटकथा: सड़कें बनाम वादे

2027 के विधानसभा चुनाव अब सवालों के घेरे में हैं। भाजपा, जो 2022 से सत्ता में है, इन्हें अपना ट्रंप कार्ड बना रही है। सीएम धामी कहते हैं, “ये सड़कें उत्तराखंड को जोड़ेंगी, पर्यटन बढ़ाएंगी और रोजगार देंगे – यही हमारा ‘विकास मॉडल’ है।” जनवरी 2025 के निकाय चुनावों में भाजपा ने इन्हीं मुद्दों पर प्रचार किया, और कांग्रेस ने ड्रेनेज व स्मार्ट सिटी की कमी गिनाई।

सर्वे बताते हैं कि सड़कें, बिजली और पानी पर वोटर संतुष्ट हैं, लेकिन स्वास्थ्य-शिक्षा में कमी है।
कांग्रेस नेता धीरेन्द्र प्रताप कहते हैं, “भाजपा चारधाम का ढोल पीट रही है, लेकिन पर्यावरण तबाह हो रहा। हम वादा करते हैं – हर गांव को कनेक्टिविटी, लेकिन बिना हिमालय को नुकसान के।” राज्य में बेरोजगारी (7 लाख से ज्यादा) और पलायन बड़े मुद्दे हैं, जहां सड़कें रोजगार ला सकती हैं।

विशेषज्ञ मानते हैं कि इंफ्रास्ट्रक्चर राजनीतिक लाभ का बड़ा स्रोत है – सत्ताधारी विधायक इन प्रोजेक्ट्स से वोट काटते हैं।

भविष्य की राह: संतुलन की चुनौती

2027 तक अगर ये प्रोजेक्ट्स पूरा हो गए, तो उत्तराखंड की इकॉनमी चमक सकती है – पर्यटन से जीडीपी में 20% इजाफा संभव। लेकिन पर्यावरण, स्थानीय रोजगार और सतत विकास पर ध्यान न दिया तो ये चुनावी हार का सबब बन सकती हैं। धामी सरकार का दावा है कि नई तकनीक से भूस्खलन रोका जाएगा, जबकि विपक्ष पूछता है – विकास किसकी कीमत पर?उत्तराखंड की सड़कें आज सिर्फ कंक्रीट नहीं, बल्कि सपनों की सैर हैं। 2027 में वोटर तय करेंगे कि ये सड़कें पहाड़ों को जोड़ेंगी या तोड़ देंगी। क्या कहते हैं आप ?

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