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सेहत की बात- प्रकृति परीक्षण क्यों है जरूरी, नोएडा में प्रकृति परीक्षण क्लीनिक को एक साल पूरा, कराए 515 परीक्षण

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नोएडा, 28 अक्टूबर।

नोएडा के सेक्टर 34 में प्रकृति परीक्षण के क्लिनिक में सेहत की जन्म कुंडली तैयार हो रही है। एक साल में इस केंद्र ने 250 कार्यदिवसों में 515 मरीजो की कुंडली तैयार की है। ऐसे ही लोगों ने अपना अनुभव शेयर किया। इस अनुभव के आधार पर जानिए क्या है प्रकृति परीक्षण और क्यों है जरूरी ?

बुलंदशहर से अनुज कुमार की आपबीती

Immunity Clinic में प्रकृति परीक्षण के उपरान्त सर्वप्रथम तो मुझे पता चला कि मेरी प्रकृति वातपित्तज है। फिर मुझे मेरी प्रकृति के स्वाभाविक लक्षणों से अवगत कराया गया कि वातपित्तज के व्यक्ति वात प्रधानता के कारण जहां एक ओर शीघ्रता करने वाले, अस्थिर चित्त वाले किन्तु रचनात्मक एवं सतत विचारशील या कोई न कोई नया Idea देने वाले होते हैं और वहीं पित्त की प्रभावी उपस्थिति मुझे भावुकता तथा अन्य मानसिक उद्वेगों पर संयम रखने वाला बनाती है। यही वह बात थी जिसके विषय में आज से पूर्व किसी ने नहीं बताया था।

किंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण पक्ष जिसे जानना नितान्त आवश्यक है वह यह, कि आज हर व्यक्ति स्वस्थ रहने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयोग अपने आहार विहार में करता ही है। परन्तु अपनी प्रकृति से अनभिज्ञ होने के कारण यह सुनिश्चित करना कि जो वह कर रहा है वह उसके लिए हितकारी है भी अथवा नहीं, कठिन है।

मैं यहाँ इसके दो उदाहरण रख़ना चाहूँगा पहला — मैंने पढ़ रखा था कि अखरोट ओमेगा -3 और Biotin का अच्छा स्रोत है, साथ ही काजू Zinc का, सोयाबीन Protein का एक अच्छा शाकाहारी स्रोत है और ये सारे Micro Nutrients Hair fall को control कर Hair Regrowth को promote करते हैं। तथ्यात्मक रूप से जानकारी सही है किन्तु वैद्य जी ने बताया चूंकि मेरी प्रकृति में पित्त प्रधानता है तो इनका नियमित सेवन मेरे लिए मेरी समस्याओं को घटाने के स्थान पर बढ़ाने का काम करेगा और मुझे सप्ताह में एक दो बार ही सेवन की सलाह दी वह भी 6-8 घण्टे भिगोकर रखने के बाद। दूसरा –एक और जानकारी मेरे संज्ञान में थी कि एक बार भोजन (mostly Lunch) के बाद दूसरी बार के भोजन के बीच (say Dinner) कम से कम 6 से 8 घण्टे का अन्तराल भोजन के समग्र पाचन के लिए श्रेष्ठ है। तथ्यात्मकता की दृष्टि से बात सही है किन्तु पुनः वैद्य जी बताती हैं कि इतना अन्तराल आपके प्रकृति के अनुकूल नहीं है एसा करना आपके पित्त को कुपित करेगा अत: 4-5 घण्टे के अन्तराल पर भोजन करना और तीन या तीन से अधिक बार भोजन करना मेरे लिए श्रेष्ठ है तथा साथ ही अपच और अजीर्ण ना होने पाए इसके लिए यदि मैं एक बार में लिए जाने वाले भोजन की मात्रा मे कमी कर दूँ तो यह मेरे लिए उत्तम है।

इसी प्रकार अभी तक मैं नाभिपूरण के लिए एरण्ड तैल का उपयोग कर रहा था वह भी मेरी प्रकृति के लिए प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला है उसके स्थान पर बादाम तेल का उपयोग मेरे लिए हितकर है।

इसी क्रम में आगे वैद्य जी ने मेरे वर्तमान आहार – विहार और दिनचर्या जिसका पालन मैं अभी तक कर रहा था उसके कई बिन्दुओं पर मेरा अनुमोदन किया — यथा प्रात: काल अणु तैल का नस्य लेना, नारियल तैल से कवल / गण्डूष करना, चन्दन-बला-लाक्षादि तैल से व्यायाम के पूर्व अभ्यङ्ग करना, सोने से पूर्व पैर के तलवों और सिर का क्षीरबला तैल से शिरोभ्यङ्ग व पादाभ्यङ्ग करना, रात्रि के भोजन के बाद 30-40 मिनट के लिए टहलने जाना आदि।

 

 

प्रकृति परीक्षण के लिये आज दो युवा, बुलंदशहर, उ. प्र. से अनुज कुमार और जामनगर, गुजरात निवासी श्री सूरज राठौर का आगमन हुआ।

जामनगर के विषय में एक विशेष बात यह है कि अब तक का देश का सर्वाधिक प्रतिष्ठित आयुर्वैदिक संस्थान “गुजरात आयुर्वैदिक विश्वविद्यालय” यहीं पर स्थित है।

श्री अनुज कुमार केन्द्र के fb page “Immunity Clinic” के माध्यम से हमारे संपर्क में आये

आप दोनों से अन्य अनेक विषयों के साथ साथ आयुर्वेद व अपनी प्रकृति क्यों अवश्य जान लेनी चाहिये इस विषय पर विस्तार से चर्चा हुई

बता दें कि कल 25 अक्तूबर को प्रकृति परीक्षण एवं परामर्श केन्द्र को आरंभ हुए एक वर्ष पूर्ण हो गया है विगत 250 कार्यदिवसों में हमने लगभग 515 परीक्षण किए हैं। इसे देश के किसी एक केन्द्र पर हुये सर्वाधिक परीक्षणों का कीर्तिमान भी माना जा सकता है

हम मानते हैं कि स्वस्थ जीवन के लिये दिनचर्या में आयुर्वेद सम्मत ऋतुचर्या, प्रकृतिचर्या और रोगचर्या का समावेश होना चाहिये। किंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि सामान्यजन की तो छोड़िये विशिष्ट जनों को भी अपनी प्रकृति का ज्ञान नहीं है। इसीलिये, हमारे केन्द्र का भी यही प्रयास है कि इस स्थिति में परिवर्तन हो और प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रकृति अवश्य जाने

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