फ़िल्म समीक्षा: राजकुमार राव और वमिका गब्बी की “भूल-चूक माफ” का सेकंड हाफ अच्छा

“भूल चूक माफ” देखने के बाद दर्शक भी यही कहेंगे—अरे भाई, भूल चूक माफ कर दो! राजकुमार राव और वमिका गब्बी के फैन उनकी एक्टिंग की तारीफों के पुल जरूर बांधेंगे, लेकिन भाईसाहब, यह फिल्म ओटीटी पर ही रिलीज होनी चाहिए थी, सिनेमाघर जाकर देखने की जरूरत नहीं थी।

मैडॉक फिल्म एवं अमेजन एमजीएम स्टूडियो के सहयोग से बनी इस फिल्म ने निर्माता दिनेश विजन हैं l निर्देशक करण शर्मा ने अपनी इस फिल्म में एक बढ़िया मैसेज देने की कोशिश की है मगर फिल्मांकन इतना ठंडा है कि कई बार लगता है जैसे कैमरा मैन को भी झपकी आ रही थी। कलाकारों से कुछ ऐसे डायलॉग बुलवाए गए हैं, जैसे किसी ने दबाव डालकर कहलवाया हो। पहला हाफ इतना सुस्त है कि झपकी आ जाए तो कोई बड़ी बात नहीं।

राजकुमार राव हमेशा की तरह अपनी बेहतरीन एक्टिंग से जान डाल देते हैं—भाई, एक्टिंग की दुकान वही चला रहे हैं! उनके पापा बने रघुवीर यादव और दोस्त बने इश्तियाक खान भी प्रभावशाली नजर आए।बाकी कलाकार बस कैमरे के सामने आ गए तो डायलॉग बोल दिए l संजय मिश्रा और विनीत कुमार जैसे सीनियर आर्टिस्ट ने ईमानदारी से काम किया, मगर कहानी का बोझ दो-तीन कलाकारों पर ही डाल दिया गया।

बनारस को दिखाने की कोशिश तो हुई, लेकिन बनारसीपन गायब रहा। बनारस सिर्फ गंगा, सीढ़ी, गोबर, राजघाट पुल और गलियों में ही नहीं सिमटा है, उसमें और भी बहुत कुछ है।
‘लौंडे-लौंडिया’ जैसे शब्दों का प्रयोग भी खटकता है—ये बनारसी शब्द नहीं हैं।इंस्पेक्टर का नाम ‘ज्ञानेश्वर पांडे’ की जगह ‘पाण्डेय’ होता तो ज्यादा उपयुक्त लगता। हामिद अंसारी को जरूरत से ज्यादा दयनीय दिखाना भी किरदार की गंभीरता को कम करता है। पढ़ा-लिखा और अच्छी शैक्षिक पृष्ठभूमि वाला पात्र कुछ ज्यादा मजबूत दिखाया जाना चाहिए था।

मनोरंजन के साथ आदर्श प्रस्तुत करना आज के समय की जरूरत है, लेकिन अगर इसे सही ढंग से पेश न किया जाए तो मनोरंजन भी बोझ बन जाता है।’अंसारी तिवारी भाई-भाई’ जैसे संवाद के बाद राजकुमार राव का ‘भूल-चूक माफ’ में दिया गया मैसेज बहुत जरूरी तो है, पर इस पटकथा में इसका विस्तार और वर्णन इतना जटिल और गूढ़ हो जाता है कि दर्शकों के लिए उसे सहजता से आत्मसात करना मुश्किल हो जाता है। शायद इसी वजह से अंत में संजय शुक्ला उर्फ भगवान दास जी को पर्दे पर आकर भाषण देना पड़ता है।

मुझे फिल्म को रेटिंग देना हो तो एवरेज ही दूंगा, कहानी के नयापन को और बढ़िया से सामने लाया जा सकता है बाकी सामाजिक सौहार्द्र का संदेश जो दिया गया है वो आदर्श भले न हो पर अच्छा है.. मनोरंजन की दृष्टि से सामान्य है पर हां फिल्म की सफलता होगी अगर भविष्य में कोई भी आदमी नौकरी लेने से पहले हामिद के पक्ष को सोचे ..

राजकुमार राव, वमिका गब्बी के फैन हैं तो जरूर देखने जाएं,आपको अच्छा लगेगा l बाकी सेकंड हॉफ सबको अच्छा लगेगा l

रेटिंग:–3

(फ़िल्म समीक्षक व कवि विनोद पांडेय)

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