नोएडा(नोएडा खबर डॉट कॉम)
सुप्रीम कोर्ट ने सेक्टर 18 में जमीन से जुड़े विवाद में अपना पूर्व का फैसला रदद् करते हुए उसे वापस ले लिया। इसके बाद नोएडा के सेक्टर-18 में स्थित डीएलएफ मॉल से जुड़े एक लंबे समय से चले आ रहे भूमि विवाद फिर से सुर्खियों में है।
यह है पृष्ठभूमि
यह विवाद छलेरा बांगर गांव की जमीन से संबंधित है, जिसे 1997 में रेड्डी वीराना, विष्णु वर्धन, और टी सुधाकर ने संयुक्त रूप से खरीदा था। 2005 में नोएडा प्राधिकरण ने इस जमीन का अधिग्रहण किया और इसे व्यावसायिक उपयोग के लिए डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड को 173 करोड़ रुपये में बेच दिया। इस जमीन पर मुआवजे को लेकर कई कानूनी लड़ाइयां लड़ी गई हैं। 2021 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुआवजे की दर 55,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर तय की, जिसे 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाकर 1,10,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर कर दिया, जिससे मुआवजा ब्याज सहित 350 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। हालांकि, प्राधिकरण ने 295 करोड़ रुपये पर सहमति जताई और भुगतान किया।
23 जुलाई 2025 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश
23 जुलाई 2025 को, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें अपने 2022 के आदेश को रद्द कर दिया गया। यह फैसला विष्णु वर्धन की याचिका पर आधारित था, जिन्होंने दावा किया कि रेड्डी वीराना ने धोखाधड़ी से जमीन का अकेला मालिक होने का दावा किया और मुआवजा हासिल कर लिया, जबकि वर्धन और सुधाकर को बाहर कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि धोखाधड़ी से प्राप्त कोई भी आदेश शून्य है और इसे चुनौती दी जा सकती है, भले ही यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश हो। जस्टिस सूर्य कान्त, दीपांकर दत्ता, और उज्जल भुयान की बेंच ने यह स्पष्ट किया कि “न्याय और धोखाधड़ी साथ-साथ नहीं रह सकते।” कोर्ट ने 2022 के आदेश को “निरस्त” करार दिया और मामले को दोबारा विचार के लिए भेज दिया, जिसमें विष्णु वर्धन और सुधाकर को अतिरिक्त प्रतिवादी बनाया गया।
विष्णु वर्धन का दावा और मुआवजे की मांग
विष्णु वर्धन का कहना है कि दादरी तहसील के नायब तहसीलदार की लापरवाही के कारण उनका नाम खतौनी में दर्ज नहीं हुआ, जिससे वे मुआवजे से वंचित रह गए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और 100 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है। उनका दावा है कि जमीन का हिस्सा उनके पास भी था, और उन्हें उचित मुआवजा मिलना चाहिए।
नोएडा प्राधिकरण और डीएलएफ का रुख
नोएडा प्राधिकरण का कहना है कि सभी वैध दावों का निपटारा कर दिया गया है और विष्णु वर्धन का दावा अदालत में विचाराधीन है। दूसरी ओर, डीएलएफ ने पहले 235 करोड़ रुपये की मुआवजे की मांग के नोटिस को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जो अभी विचाराधीन है। प्राधिकरण और डीएलएफ दोनों ने अदालत में अपना पक्ष रखा है, लेकिन कोर्ट ने सभी पक्षों से जवाब मांगा है।
ऐतिहासिक संदर्भ और पूर्ववर्ती मामले
यह विवाद नया नहीं है। इससे पहले भी इसी जमीन को लेकर 295 करोड़ रुपये के मुआवजे का मामला अदालत तक पहुंचा था। 2021 में हाई कोर्ट ने मुआवजे की दर तय की थी, और 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे बढ़ाया था। हालांकि, विष्णु वर्धन का दावा कि उनका नाम रिकॉर्ड में नहीं था, ने मामले को और जटिल बना दिया है।
कानूनी सिद्धांत और कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने “धोखाधड़ी सब कुछ उलट देती है” के सिद्धांत को लागू किया, जो कहता है कि यदि कोई आदेश धोखाधड़ी से प्राप्त हुआ है, तो वह शून्य है और इसे चुनौती दी जा सकती है, भले ही वह सुप्रीम कोर्ट का आदेश हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि हाई कोर्ट का निर्णय, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दी, धोखाधड़ी से प्राप्त हुआ है, तो प्रभावित पक्ष हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील कर सकता है, न कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा।
संभावित प्रभाव और भविष्य की राह
यदि विष्णु वर्धन का दावा सही पाया जाता है, तो नोएडा प्राधिकरण और डीएलएफ को भारी मुआवजा देना पड़ सकता है, जो डीएलएफ मॉल की प्रतिष्ठा और वित्तीय स्थिति पर असर डाल सकता है। यह मामला नोएडा में भूमि अधिग्रहण और मुआवजे की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की मांग को उजागर करता है। इसके अलावा, यह प्रशासनिक लापरवाही, जैसे तहसील के रिकॉर्ड में नाम दर्ज न करना, जैसे मुद्दों को भी सामने लाता है। तुलनात्मक विश्लेषण:
मुख्य तथ्य और आंकड़ेनिम्न तालिका में मामले के मुख्य पहलुओं का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है।
पहलू
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विवरण
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जमीन का अधिग्रहण
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2005 में नोएडा प्राधिकरण द्वारा, 54,320 वर्ग मीटर क्षेत्र।
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मूल मालिक
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रेड्डी वीराना, विष्णु वर्धन, और टी सुधाकर (1997 में खरीदी गई)।
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मुआवजे की दर (2021, हाई कोर्ट)
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55,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर।
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मुआवजे की दर (2022, सुप्रीम कोर्ट)
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1,10,000 रुपये प्रति वर्ग मीटर, ब्याज सहित 350 करोड़ रुपये तक।
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वर्तमान मुआवजे की मांग
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विष्णु वर्धन द्वारा 100 करोड़ रुपये।
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सुप्रीम कोर्ट का हाल का आदेश
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23 जुलाई 2025 को 2022 का आदेश रद्द, धोखाधड़ी का हवाला।
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निष्कर्ष और सिफारिशें
यह मामला न केवल एक कानूनी लड़ाई है, बल्कि यह प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सुधार की जरूरत को भी उजागर करता है। तहसील के रिकॉर्ड में नाम दर्ज न होने जैसे मुद्दों को हल करने के लिए सख्त दिशा निर्देश लागू करने की आवश्यकता है। इसके अलावा, नोएडा प्राधिकरण को भूमि अधिग्रहण और मुआवजे की प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए। सभी की निगाहें अब सुप्रीम कोर्ट के अगले कदम पर टिकी हैं, जो इस मामले में अंतिम फैसला देगा। यह निर्णय न केवल विष्णु वर्धन और अन्य प्रभावित पक्षों के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि नोएडा में भविष्य के भूमि विवादों के लिए भी एक मिसाल कायम करेगा।