स्पेशल रिपोर्ट: नोएडा प्राधिकरण में स्वच्छता और विकास पर भारी है अधिकारियों और कर्मचारियों की कमी, समूह क, ख, ग व घ श्रेणी के 75 प्रतिशत पद खाली

– उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ही नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष, फिर भी संकट
– शासन स्तर पर जाकर अटक गई हैं नोएडा प्राधिकरण और एनईए के पत्रों की फ़ाइल

– 4 साल पहले तत्कालीन सीईओ ऋतु माहेश्वरी ने औद्योगिक विकास मंत्री नन्द गोपाल गुप्ता नन्दी के सामने उठाई थी आवाज
– जेई, एई, हेल्थ इंस्पेक्टर, हॉर्टिकल्चर इंस्पेक्टर ज्यादातर हुए रिटायर नए आए नही
– विधायक पंकज सिंह की तरफ से लागू कराई गई ट्रांसफर पॉलिसी कारगर नही

विनोद शर्मा
नोएडा। (नोएडा खबर डॉट कॉम)

नोएडा, उत्तर प्रदेश का वह शहर जो स्वच्छता सुपर लीग में देश में पहले स्थान पर है और ‘गोल्डन सिटी’ का अवार्ड हासिल कर चुका है, उद्योग के क्षेत्र में प्रदेश का सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला शहर भी है। लेकिन इस चमचमाते शहर को संचालित करने वाला नोएडा प्राधिकरण आज कर्मचारियों और अधिकारियों की भारी कमी से जूझ रहा है। हाल ही में नोएडा खबर डॉट कॉम द्वारा तैयार एक विशेष रिपोर्ट ने इस गंभीर समस्या को उजागर किया है, जिसके अनुसार नोएडा प्राधिकरण में अधिकारी व कर्मचारियों के स्वीकृत 2200 पदों में से 75% पद खाली हैं। यानी, केवल 25% कर्मचारी व अधिकारी ही वर्तमान में कार्यरत हैं। इस कमी का असर शहर की स्वच्छता, हरियाली और विकास कार्यों पर साफ दिखाई दे रहा है। कई जगह सड़कों की मरम्मत, नाली व सीवर की समस्या है। आइए, इस संकट की गहराई को आंकड़ों और तथ्यों के साथ समझते हैं।
स्वास्थ्य विभाग:
स्वच्छता पर सवाल:
नोएडा, जो स्वच्छता में अपनी पहचान बना चुका है, वहां स्वास्थ्य विभाग में कर्मचारियों की कमी चिंताजनक है। पूरे शहर की सफाई व्यवस्था की निगरानी के लिए स्वास्थ्य निरीक्षक के 10 स्वीकृत पद हैं, लेकिन वर्तमान में केवल एक निरीक्षक कार्यरत है। बाकी 9 पद खाली पड़े हैं। स्थिति इतनी गंभीर है कि सफाई कर्मचारियों को सुपरवाइजर बनाकर उन्हें निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है, जिन्हें सुपरवाइजर का वेतन नहीं, बल्कि सफाई कर्मचारी का वेतन मिलता है। सवाल उठता है कि जब स्वच्छता को लेकर इतनी गंभीरता दिखाई जा रही है, तो इन खाली पदों को भरने में देरी क्यों हो रही है?

उद्यान विभाग: हरियाली की देखभाल में लापरवाही
नोएडा की हरियाली को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग में 32 उद्यान निरीक्षक के पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से 31 खाली हैं। केवल एक निरीक्षक पूरे शहर की हरियाली की निगरानी का जिम्मा संभाल रहा है। एक निरीक्षक कई डिप्टी डायरेक्टर व असिस्टेंट डायरेक्टर के अंडर में कार्य करता है। यह कल्पना करना भी मुश्किल है कि एक अकेला निरीक्षक इतने बड़े शहर के पार्कों, ग्रीन बेल्ट्स और हरित क्षेत्रों की देखभाल कैसे कर सकता है।
सिविल और इंजीनियरिंग विभाग: विकास कार्यों पर संकट

नोएडा में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स, जैसे एलिवेटेड रोड, सेक्टर और गांवों का विकास, और प्राधिकरण के कार्यालयों की निगरानी का जिम्मा सिविल और ए एंड एम (एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट) विभाग के पास है। लेकिन यहां भी स्थिति चिंताजनक है। असिस्टेंट मैनेजर के 108 स्वीकृत पदों में से 97 खाली हैं। पानी और सीवर की सफाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य भी इन्हीं के जिम्मे हैं, लेकिन सीमित स्टाफ के साथ यह काम प्रभावी ढंग से हो पाना असंभव है।
आंकड़ों में खाली पदों का हाल

मार्च 2025 तक के आंकड़े इस संकट की गंभीरता को और स्पष्ट करते हैं:
समूह क (Group A): 65 स्वीकृत पदों में से 40 खाली।
समूह ख (Group B): 116 स्वीकृत पदों में से 63 खाली।
समूह ग (Group C): 795 स्वीकृत पदों में से 589 खाली।
समूह घ (Group D): 1200 स्वीकृत पदों में से 800 खाली।

इन आंकड़ों से साफ है कि नोएडा प्राधिकरण कर्मचारी संकट के दौर से गुजर रहा है। इतने बड़े पैमाने पर खाली पदों के साथ शहर की मॉनिटरिंग और विकास कार्यों का प्रभावित होना स्वाभाविक है।

चार साल पहले उठी थी आवाज, लेकिन नतीजा सिफर

लगभग चार साल पहले, नोएडा शहर के स्थापना दिवस के अवसर पर सेक्टर 94 के पंचशील बालक इंटर कॉलेज में तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) रितु माहेश्वरी ने उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ के सामने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था कि कर्मचारियों की कमी के कारण नोएडा का विकास प्रभावित हो रहा है। उन्होंने त्वरित कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन चार साल बाद भी स्थिति जस की तस है। न भर्तियां हुईं, न ही अन्य प्राधिकरणों से कर्मचारियों की तैनाती की गई।
नोएडा एम्पलाइज एसोसिएशन की मांग
नोएडा एम्पलाइज एसोसिएशन के अध्यक्ष राजकुमार चौधरी ने बताया कि उन्होंने प्राधिकरण के सीईओ और प्रमुख सचिव (उद्योग) स्तर पर कई बार लिखित मांग की है कि खाली पदों को जल्द भरा जाए। यह मांग प्राधिकरण की सीईओ के माध्यम से भी शासन तक पहुंचाई गई, लेकिन शासन स्तर पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया। चौधरी का कहना है कि कर्मचारियों की कमी से विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं, और सीमित स्टाफ पर काम का बोझ बढ़ रहा है, जिससे कर्मचारी मानसिक दबाव में हैं।
अंतर-तबादला नीति लागू, फिर भी भर्ती ठप
नोएडा विधायक पंकज सिंह ने वर्ष 2017 में सभी प्राधिकरणों में अंतर-तबादला नीति लागू करवाई थी, ताकि कर्मचारियों की कमी को कुछ हद तक पूरा किया जा सके। लेकिन रिटायरमेंट और अन्य कारणों से खाली होने वाले पदों पर नई भर्तियां शुरू नहीं हो पा रही हैं। सवाल उठता है कि जब नोएडा प्राधिकरण के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह इस समस्या से वाकिफ हैं, तो भर्ती प्रक्रिया में देरी क्यों हो रही है? क्या इस नीति को पूरी तरह प्रभावी माना जा सकता है?
क्या है समाधान?
नोएडा प्राधिकरण की वर्किंग स्टाइल पर सवाल उठ रहे हैं। इतने बड़े पैमाने पर खाली पदों के साथ न तो स्वच्छता, न हरियाली, और न ही विकास कार्यों की प्रभावी मॉनिटरिंग संभव है। कर्मचारियों और अधिकारियों की कमी न केवल प्राधिकरण की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही है, बल्कि शहर की प्रगति को भी बाधित कर रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि नोएडा प्राधिकरण को तत्काल भर्ती प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। इसके लिए:तत्काल भर्ती प्रक्रिया: स्वास्थ्य, उद्यान, और सिविल विभागों में रिक्त पदों को प्राथमिकता के आधार पर भरा जाए।
अंतर-तबादला नीति का प्रभावी उपयोग: अन्य प्राधिकरणों से कर्मचारियों की तैनाती को और तेज किया जाए।
शासन स्तर पर हस्तक्षेप: मुख्य सचिव और औद्योगिक विकास मंत्रालय को इस मुद्दे पर त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।
कर्मचारी कल्याण: मौजूदा कर्मचारियों पर काम का बोझ कम करने के लिए सुपरवाइजरी भूमिकाओं में उचित वेतन और संसाधन उपलब्ध कराए जाएं।

ऐसे कैसे काम करेगा यूपी का शो विंडो
नोएडा, जो देश का गोल्डन सिटी है और उत्तर प्रदेश का आर्थिक इंजन है, वहां प्राधिकरण में कर्मचारियों और अधिकारियों की कमी एक गंभीर संकट बन चुकी है। 75% खाली पदों के साथ शहर की स्वच्छता, हरियाली और विकास कार्य प्रभावित हो रहे हैं। चार साल पहले उठाई गई मांगों के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। अब समय है कि नोएडा प्राधिकरण और शासन इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करे, ताकि नोएडा अपनी चमक और प्रगति को बरकरार रख सके। अन्यथा, सीमित स्टाफ के साथ काम का बोझ और मानसिक दबाव कर्मचारियों को तोड़ सकता है, और शहर का विकास पटरी से उतर सकता है।
सवाल यह है: नोएडा प्राधिकरण की यह लचर व्यवस्था कब तक चलेगी, और इसका जवाब कौन देगा?

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