निठारी कांड: सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की CBI, यूपी सरकार और पीड़ित परिवारों की अपील, कोली और पंढेर की बरी बरकरार

नई दिल्ली। (नोएडा खबर डॉट कॉम)
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने नोएडा के बहुचर्चित निठारी हत्याकांड मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI), उत्तर प्रदेश सरकार और पीड़ित परिवारों की अपीलों को खारिज कर दिया। ये अपीलें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 अक्टूबर 2023 के उस फैसले के खिलाफ दायर की गई थीं, जिसमें मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने पीड़ित परिवारों की 18 साल की लंबी कानूनी लड़ाई को गहरा झटका दिया है, जो अपने प्रियजनों के लिए इंसाफ की उम्मीद में थे।
निठारी कांड की पृष्ठभूमि
निठारी कांड 2005-2006 में नोएडा के सेक्टर 31 में मोनिंदर सिंह पंढेर के बंगले (डी-5) के पास नाले में कई बच्चों और युवतियों के कंकाल और शरीर के अंग मिलने से सामने आया था। यह स्थान निठारी गांव में तो नही था मगर घटनाटस्थल निठारी गांव से सटे डी ब्लॉक में प्लाट नम्बर 5 पर बनी कोठी थी। इस मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, क्योंकि इसमें हत्या, बलात्कार, अपहरण और कथित नरभक्षण जैसे जघन्य अपराधों के आरोप लगे थे। स्थानीय पुलिस की प्रारंभिक जांच के बाद मामला CBI को सौंपा गया, जिसने 19 मामले दर्ज किए। इनमें से 16 में सुरेंद्र कोली, जो पंढेर का घरेलू सहायक था, और 6 में मोनिंदर सिंह पंढेर पर आरोप लगाए गए। कोली पर हत्या, बलात्कार, अपहरण और सबूत नष्ट करने के आरोप थे, जबकि पंढेर पर अनैतिक तस्करी और सहयोग के आरोप थे।गाजियाबाद की CBI विशेष अदालत ने कोली को 14 मामलों में और पंढेर को 3 मामलों में मौत की सजा सुनाई थी। हालांकि, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2023 में सबूतों की कमी और जांच में खामियों का हवाला देते हुए कोली को 12 मामलों में और पंढेर को 2 मामलों में बरी कर दिया था। हाई कोर्ट ने CBI की जांच को “अधूरी और दोषपूर्ण” करार दिया था, जिसके बाद दोनों आरोपी 17 साल जेल में बिताने के बाद रिहा हो गए।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई और फैसला
30 जुलाई 2025 को जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने CBI, यूपी सरकार और पीड़ित परिवारों की अपीलों पर अंतिम सुनवाई की। इन अपीलों में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि हाई कोर्ट ने कोली के कबूलनामे और मेडिकल साक्ष्यों को गलत तरीके से खारिज किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोली को “सीरियल किलर” बताते हुए तर्क दिया कि हाई कोर्ट का फैसला तथ्यों के खिलाफ है।सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में इस मामले की कई सुनवाइयां की थीं। मई 2024 में, कोर्ट ने पीड़ित पप्पू लाल की याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी। जुलाई 2024 में, कोली को नोटिस जारी किया गया था। 25 मार्च 2025 को, कोर्ट ने अंतिम सुनवाई की तारीख तय की और ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड मंगवाए। 30 जुलाई 2025 के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अपराध को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। कोली के वकील ने दलील दी कि कबूलनामा पुलिस हिरासत में यातना के बाद लिया गया था। बरामद शारीरिक अवशेषों को सर्जिकल सटीकता के साथ काटा गया था, जो अंग व्यापार की संभावना की ओर इशारा करता था, न कि नरभक्षण की।
पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पीड़ित परिवारों में गहरा आक्रोश और निराशा है। कई परिवारों ने 18 साल तक चली इस कानूनी लड़ाई में अपनी जमा-पूंजी खर्च कर दी। पीड़ित पप्पू लाल, जिनकी बेटी पायल इस कांड की शिकार थी, ने कहा, “हमने इंसाफ के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन सिस्टम ने हमें छोड़ दिया।” अन्य पीड़ितों ने CBI की जांच पर सवाल उठाए, उनका कहना था कि लापरवाही के कारण अपराधी सजा से बच गए।आरोपियों की स्थितिसुरेंद्र कोली को एक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले सुनाई गई मौत की सजा अभी बरकरार है, लेकिन बाकी 12 मामलों में उनकी बरी को कोर्ट ने सही ठहराया। मोनिंदर सिंह पंढेर को सभी मामलों में बरी कर दिया गया, और वह 20 अक्टूबर 2023 को जेल से रिहा हो चुके हैं।
विवाद और जांच पर सवाल
निठारी कांड ने भारतीय जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। हाई कोर्ट ने CBI की जांच को “बुरी तरह से गड़बड़” बताया था, और सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इसकी पुष्टि की। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला अंग व्यापार से जुड़ा हो सकता था, लेकिन CBI ने इसे यौन उत्पीड़न और नरभक्षण का मामला बना दिया। बरामद अवशेषों की सर्जिकल सटीकता और अपर्याप्त फॉरेंसिक विश्लेषण ने इन सवालों को और गहरा किया है।
क्या सच्चाई सामने आएगी ?
निठारी कांड भारतीय इतिहास के सबसे भयावह अपराधों में से एक है, जिसने समाज को झकझोर दिया था। 30 जुलाई 2025 को जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के फैसले ने पीड़ित परिवारों की उम्मीदों को तोड़ दिया है। यह मामला न केवल न्याय प्रणाली की सीमाओं को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या इस जघन्य अपराध की सच्चाई कभी सामने आएगी।

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