ऑपरेशन सिंदूर में उस शख्स की भूमिका जो आज जीवित नहीं है पर नाम अमर कर गया…
जब दुनिया के क्षितिज पर संकट के बादल मंडरा रहे थे, तब भारत को एक ऐसी ढाल की जरूरत थी जो न सिर्फ दुश्मन के हमलों को रोक सके, बल्कि आकाश में ही उनका अंत कर दे।
तभी भारतीय रक्षा मंत्रालय की कमान एक सच्चे राष्ट्रभक्त और दूरदर्शी नेता — मनोहर पर्रिकर के हाथों में थी।
2015 का वर्ष था। चीन अपनी सीमाओं पर गतिविधियाँ बढ़ा रहा था, पाकिस्तान लगातार अपनी नापाक साजिशों में जुटा था। ऐसे में पर्रिकर जी ने एक साहसी निर्णय लिया — भारत को दुनिया की सबसे घातक वायु रक्षा प्रणाली की जरूरत है।
उनकी नजर रूस के अत्याधुनिक S-400 Triumf सिस्टम पर पड़ी। यह वही प्रणाली थी, जिसे देखकर दुनिया के सबसे ताकतवर देश भी सहम जाते थे।
लेकिन राह आसान नहीं थी।भीतर से विरोध था, बाहर से दबाव। कुछ आवाजें कह रही थीं कि इतनी महंगी प्रणाली की क्या जरूरत है? कुछ कहते थे कि भारत को स्वदेशी विकल्प ढूंढ़ना चाहिए। लेकिन पर्रिकर जानते थे — युद्ध की तैयारी शांति के दिनों में ही करनी होती है। उन्होंने डटकर योजना बनाई, गहन रणनीतिक वार्ताएँ कीं, और 2016 में गोवा में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान रूस के साथ एक ऐतिहासिक समझौते पर दस्तखत कराए।
यह केवल एक सौदा नहीं था।यह भारत की आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षा का सुदृढ़ कवच था।यह सुदर्शन चक्र का आधुनिक अवतार था — जो आकाश में दुश्मन के हर खतरे का संहार कर सके।
2021 में जब पहली S-400 यूनिट भारत आई, तब यह सिर्फ एक सैन्य उपकरण नहीं था, यह उस दूरदर्शिता का प्रतीक था जिसे मनोहर पर्रिकर ने अपने सरल जीवन और गहरी सोच से आकार दिया था।
और आज…
जब पाकिस्तान के ड्रोन और मिसाइलें भारतीय सीमाओं की ओर बढ़ीं, तब S-400 ने बिजली की गति से आकाश में उन्हें धूल चटा दी।
आज जब हम “एस-400 सुदर्शन चक्र” की महिमा गाते हैं, तो कहीं न कहीं उस सुदृढ़ संकल्प, उस निर्भीक सोच, और उस राष्ट्रसेवक को भी नमन करते हैं — मनोहर पर्रिकर।
वे चले गए, लेकिन उनकी दी हुई यह ढाल भारत के आसमान को अजेय बनाकर हमेशा उनकी कहानी कहती रहेगी।
जय हिन्द।
युवा कवि विनोद पांडेय की फेसबुक वॉल से