दौड़ते सपनों की कहानी: नोएडा प्राधिकरण के सीईओ डॉ. लोकेश एम की दिल्ली मैराथन यात्रा का फिनिशिंग पॉइंट

नई दिल्ली/नोएडा, (नोएडा खबर डॉट कॉम)
सुबह के धुंधले आसमान में, दिल्ली की सड़कें जाग रही थीं। 12 अक्टूबर 2025 का वह दिन, जब हवा में ठंडक और उत्साह का मिश्रण था। हजारों धावक लाइन में खड़े थे – युवा, बूढ़े, सपने देखने वाले। लेकिन भीड़ में एक चेहरा ऐसा था, जो सिर्फ भाग नहीं रहा था, बल्कि प्रेरणा बनकर दौड़ रहा था। वह थे नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ), सीनियर आईएएस अधिकारी डॉ. लोकेश एम।
2005 बैच के इस तेज-तर्रार अफसर ने, जो कर्नाटक से उठकर उत्तर प्रदेश की नब्ज पकड़ चुके हैं, दिल्ली मैराथन की पूरी दौड़ तय की और फिनिशिंग पॉइंट पर पहुंचे। यह सिर्फ 21 किलोमीटर की दौड़ नहीं थी; यह थी जिंदगी की लंबी रेस का एक अध्याय।शुरुआत: एक गांव से सिविल सर्विसेज तकडॉ. लोकेश एम का सफर साधारण था, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से भरा। कर्नाटक के एक छोटे से गांव में जन्मे लोकेश ने बचपन से ही किताबों और खेलों के बीच गुजारा किया। मेडिकल की डिग्री हासिल करने के बाद, उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा क्रैक की और 2005 में आईएएस बने। कौशांबी से शुरू होकर अमरोहा, गाजीपुर, कुशीनगर, मैनपुरी जैसे जिलों के जिलाधिकारी रह चुके लोकेश ने हमेशा चुनौतियों को दौड़कर पार किया। कानपुर के मंडलायुक्त से नोएडा प्राधिकरण के सीईओ तक का सफर – यह कोई आसान रेस नहीं थी। नोएडा जैसे तेजी से बढ़ते शहर को संवारना, उद्योगों को बढ़ावा देना, जलभराव जैसी समस्याओं का समाधान – हर कदम पर उन्होंने दौड़ लगाई। लेकिन मैराथन? यह उनकी नई चुनौती थी।“जीवन एक मैराथन है,” कहते हैं डॉ. लोकेश। “शुरुआत में स्पीड नहीं, धैर्य और लगन चाहिए।”
2023 में नोएडा सीईओ बनने के बाद, उन्होंने फिटनेस को अपनी रूटीन में शामिल किया। व्यस्त मीटिंग्स, फाइलों का पहाड़, और शहर की जिम्मेदारियों के बीच, सुबह 5 बजे उठकर दौड़ना शुरू किया। पहले 5 किलोमीटर, फिर 10, और धीरे-धीरे पूरी मैराथन। यह सिर्फ शारीरिक फिटनेस नहीं थी; यह मानसिक ताकत का इम्तिहान था। “जब मैं दौड़ता हूं, तो दिमाग साफ होता है। समस्याओं के समाधान खुद-ब-खुद आ जाते हैं,” वे अक्सर कहते हैं।मैराथन का दिन: संघर्ष और विजयदिल्ली मैराथन का स्टार्टिंग पॉइंट – इंडिया गेट के पास। घड़ी में सुबह 6 बजे। डॉ. लोकेश नीले जर्सी में खड़े थे, उनके चेहरे पर मुस्कान लेकिन आंखों में दृढ़ता। साथ में थे सहयोगी और परिवार, जो चीयर कर रहे थे। दौड़ शुरू हुई। पहले किलोमीटर आसान लगे – हवा सहारा दे रही थी। लेकिन जैसे-जैसे दूरी बढ़ी, पैर भारी होने लगे।
10वें किलोमीटर पर पहाड़ी रास्ता आया, सांसें फूलने लगीं। मन में सवाल उठे: “क्या रुक जाऊं? घर लौटकर फाइलें देख लूं?” लेकिन तभी याद आई नोएडा की उन सड़कों की, जहां बाढ़ में लोग परेशान थे। याद आए वे उद्यमी, जिनकी समस्याओं को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से सुना। “नहीं, रुकना नहीं है,” उन्होंने खुद से कहा।15वें किलोमीटर पर थकान बढ़ी, लेकिन इरादे और मजबूत हुए। हर कदम पर लग रहा था जैसे वे नोएडा के विकास की दौड़ चला रहे हों – बाधाओं को पार करते हुए। दर्शक सड़क किनारे चिल्ला रहे थे: “लोकेश सर, जय हो!” युवा धावक उन्हें देखकर प्रेरित हो रहे थे। एक लड़का, जो कॉलेज स्टूडेंट था, ने बाद में कहा, “सर को देखकर लगा, अगर आईएएस अफसर इतनी मेहनत कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?”
अंतिम 2 किलोमीटर – फिनिशिंग लाइन नजर आ रही थी। पैरों में दर्द, लेकिन दिल में जीत का जज्बा। घड़ी में 2 घंटे 45 मिनट। और फिर… वह पल! फिनिशिंग पॉइंट पर पहुंचते ही तालियां गूंजीं। डॉ. लोकेश ने मेडल थामा, पसीने से तरबतर लेकिन चेहरे पर विजय की चमक। वहां खड़े युवाओं ने घेर लिया – सलाम ठोकते हुए। “सर, आप हमारी प्रेरणा हो!”
प्रेरणा का संदेश: दौड़ना कभी मत छोड़ो
यह मैराथन सिर्फ डॉ. लोकेश की जीत नहीं थी; यह हर उस युवा की कहानी थी जो सपनों की दौड़ में थक जाता है। सीनियर आईएएस होने के बावजूद, वे मैदान में उतर आए – यह साबित करने के लिए कि ऊंचे पद पर पहुंचकर भी इंसान को अपनी जड़ों से जुड़ा रहना चाहिए। नोएडा को आईटी हब बनाने का उनका विजन, उद्यमियों की समस्याओं का त्वरित समाधान – सब कुछ इसी दौड़ की तरह है। “युवाओं से कहना चाहूंगा,” उन्होंने फिनिश के बाद कहा, “जीवन में बाधाएं आएंगी, लेकिन दौड़ते रहो। हर फिनिश लाइन के बाद नई शुरुआत है।”डॉ. लोकेश एम की यह मोटिवेशनल स्टोरी बताती है – सफलता कोई रेस नहीं, मैराथन है। जहां स्पीड से ज्यादा जरूरी है स्टेमिना, और हार मानने की बजाय हौसला। अगर एक सीनियर अफसर दौड़ सकता है, तो आप क्यों नहीं? आज ही जूते बांधो, और अपनी रेस शुरू करो। क्योंकि, जैसा डॉ. लोकेश कहते हैं, “फिनिश लाइन हमेशा इंतजार कर रही होती है – बस पहुंचने का हौसला चाहिए।”

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