नोएडा : 10 साल बाद का चमत्कार, मिल गया गेझा गांव का खोया हुआ बेटा, रुक नही रहे खुशी के आंसू

विनोद शर्मा
नोएडा, 10 जून।
नोएडा के गेझा गांव की तंग गलियों में, जहां बच्चे धूल भरी सड़कों पर खेला करते थे, एक सर्द नवंबर की शाम ने एक परिवार की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी। 6 नवंबर 2015 को, सात साल का मासूम, जिसके चेहरे पर अबोध मुस्कान और आंखों में सपने थे, अपने घर के पास मंदिर के आसपास खेलते-खेलते अचानक गायब हो गया। उसका नाम था—कहानी का यह नन्हा नायक, जिसकी पहचान अभी छिपी थी।
परिजनों ने उसे हर जगह ढूंढा, मंदिर के चबूतरे से लेकर गांव की हर गली तक। मगर वह कहीं नहीं मिला। दो दिन बाद, 8 नवंबर को, हताश माता-पिता ने थाना फेस-2 में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने तुरंत मुकदमा (FIR नंबर 723/2015, धारा 363 भादवि) दर्ज किया और तलाश शुरू की। दिन, महीने, फिर साल बीत गए। पुलिस ने हर संभव कोशिश की,गलियों में पूछताछ, संदिग्धों से बात, हर सुराग को खंगाला गया। मगर बच्चा जैसे हवा में गायब हो गया था। सात साल बाद, 20 दिसंबर 2022 को, जब कोई सुराग न मिला, पुलिस को मजबूरन अंतिम रिपोर्ट दाखिल करनी पड़ी। परिवार का दिल टूट चुका था, और उम्मीदें धुंधली पड़ गई थीं।
लेकिन कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं। नियति को कुछ और ही मंजूर था।
हरियाणा में एक नया सुराग
मई 2025, फरीदाबाद का सूरजकुंड थाना। एक नए अपहरण के मामले ने पुलिस को चौंका दिया। 28 मई को दर्ज हुई FIR में एक अभियुक्त, मंगल कुमार, की गिरफ्तारी हुई। 2 जून को सूरजकुंड पुलिस ने उसके कब्जे से एक बच्चे को सकुशल बरामद किया। पूछताछ में मंगल ने एक ऐसा राज खोला, जिसने सबको हैरान कर दिया। उसने बताया कि उसके पास एक और बच्चा है, जिसे वह कई साल पहले नोएडा से लाया था। बच्चे का नाम बदल चुका था, और उसकी असल पहचान एक रहस्य थी।
सूरजकुंड पुलिस ने तुरंत नोएडा के थाना फेस-2 पुलिस से संपर्क किया। लेकिन बदले हुए नाम के कारण बच्चे का कोई पुराना रिकॉर्ड मिलान नहीं कर रहा था। यह एक ऐसी पहेली थी, जिसे सुलझाने के लिए फेस-2 पुलिस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी।
सच की तलाश में छह घंटे की जंग
थाना फेस-2 की टीम ने हार नहीं मानी। उन्होंने बच्चे को थाने बुलाया और धैर्य के साथ उससे बात की। बच्चे की नन्ही आवाज और डरी हुई आंखों में कुछ जवाब छिपे थे। पुलिस ने दस साल पुराने अभिलेखों को खंगालना शुरू किया—अपराध रजिस्टर, गुमशुदा रजिस्टर, याददाश्त रजिस्टर। छह घंटे की अथक मेहनत, कागजों के ढेर, और पुरानी फाइलों की धूल में आखिरकार वह सुनहरा सुराग मिला। यह वही बच्चा था, जिसकी गुमशुदगी 2015 में दर्ज हुई थी—मु0अ0सं0 723/2015।
बच्चे को अपने माता-पिता का नाम तो याद था, लेकिन पता नहीं। उसकी स्मृति में सिर्फ धुंधले चेहरे और पुरानी यादें थीं। पुलिस ने FIR में दर्ज एक मोबाइल नंबर का पीछा किया, जो बच्चे के पिता के दोस्त का था। वह दोस्त अब नोएडा छोड़ आगरा में रहता था। उससे संपर्क कर पुलिस ने माता-पिता का मूल निवास पता किया, जो अब मैनपुरी में रह रहे थे।
वो भावुक मुलाकात
जब माता-पिता को सूचना मिली कि उनका खोया हुआ बेटा मिल गया है, उन्हें यकीन नहीं हुआ। दस साल का लंबा इंतजार, टूटी उम्मीदें, और अनगिनत आंसुओं के बाद यह खबर किसी चमत्कार से कम नहीं थी। उन्होंने बच्चे की शारीरिक पहचान पूछी—“हमारे बेटे की दाहिनी उंगली कटी हुई है, और बाईं आंख के नीचे चोट का निशान है।” पुलिस ने पुष्टि की—हां, निशान वही थे।
परिजनों ने तुरंत बच्चे के बड़े भाई, चाची, और जीजा को थाना फेस-2 भेजा। जैसे ही वे थाने पहुंचे और बच्चे को देखा, समय जैसे थम सा गया। आंसुओं और मुस्कान के बीच परिजनों ने उसे गले से लगा लिया। बच्चे ने भी अपने बड़े भाई को तुरंत पहचान लिया, जैसे दस साल का फासला कभी था ही नहीं।
कानूनी कदम और एक नया सवेरा
पुलिस ने बच्चे को बाल कल्याण समिति (CWC) के समक्ष पेश करने की तैयारी की। उसका बयान BNSS की धारा 183 के तहत दर्ज किया जाएगा। डीएनए टेस्ट के जरिए उसकी पहचान की अंतिम पुष्टि होगी। माता-पिता को मैनपुरी से नोएडा बुलाया गया, जहां वे जल्द ही अपने बेटे से मिलेंगे।
सतर्कता का इनाम
थाना फेस-2 पुलिस की इस अथक मेहनत और मानवीय दृष्टिकोण ने न केवल एक परिवार को उनका खोया बेटा लौटाया, बल्कि पूरे समुदाय का दिल जीत लिया। डीसीपी सेंट्रल नोएडा शक्तिमोहन अवस्थी ने इस सराहनीय कार्य के लिए पुलिस टीम को 25,000 रुपये के इनाम से सम्मानित किया।
यह कहानी सिर्फ एक बच्चे की बरामदगी की नहीं, बल्कि उम्मीद, हौसले, और पुलिस की लगन की है। दस साल बाद, गेझा के उस मंदिर के पास की गलियां फिर से गूंज उठी। इस बार खुशी के आंसुओं और पुनर्मिलन की गर्माहट के साथ।

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