नोएडा पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि यह गिरोह आम लोगों के साथ-साथ प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) और ओवरसीज सिटिजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड धारकों को निशाना बनाता था। गिरोह के सदस्य माइक्रोसॉफ्ट टीमें पर वीडियो कॉल के जरिए खुद को क्राइम ब्रांच, सीबीआई, ईडी, और सुप्रीम कोर्ट जैसे सरकारी संगठनों का अधिकारी बताकर पीड़ितों को भरोसे में लेते थे। वे नकली दस्तावेज और लेटरहेड दिखाकर पीड़ितों को डराते थे कि उनकी भारत यात्रा या ओसीआई कार्ड पर रोक लग सकती है। गिरोह पीड़ितों को पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (पीसीसी) दिलाने का झांसा देता था और मनी लॉन्ड्रिंग के फर्जी केस में बेगुनाही साबित करने के लिए “सीबीआई सुपरविजन अकाउंट” में पैसे जमा करने को कहता था। पैसे ट्रांसफर होने पर पीड़ितों को सीबीआई और आरबीआई की जाली सील वाले फर्जी एकनॉलेजमेंट लेटर दिए जाते थे। यह गिरोह ठगी की रकम को अंतरराष्ट्रीय खातों में ट्रांसफर कर हवाला नेटवर्क के जरिए भारत वापस लाता था। गिरोह ने नेशनल ब्यूरो ऑफ सोशल इन्वेस्टिगेशन एंड सोशल जस्टिस के नाम से भी फर्जी सम्मन पत्र और आदेश जारी किए, जो वैध कानूनी दस्तावेजों जैसे प्रतीत होते थे, ताकि पीड़ितों पर दबाव बनाया जा सके।गिरफ्तार अभियुक्त:
- विभाष चंद्र अधिकारी, पुत्र प्रभाकर अधिकारी, निवासी ग्राम कृष्णा नगर, थाना नलहाटी, जिला बीरभूम, पश्चिम बंगाल।
- अराग्य अधिकारी, पुत्र विभाष चंद्र अधिकारी, निवासी ग्राम कृष्णा नगर, थाना नलहाटी, जिला बीरभूम, पश्चिम बंगाल।
- बाबूल चंद्र मंडल, पुत्र स्व. वीरेंद्र नाथ मंडल, निवासी ग्राम नार्थ केचुआ, थाना अशोक नगर, जिला 24 परगना, पश्चिम बंगाल।
बरामदगी और जांच:
पुलिस कस्टडी रिमांड के दौरान अभियुक्तों की निशानदेही पर फर्जी दस्तावेज, नकली सील, और अन्य ठगी से संबंधित सामग्री बरामद की गई। पुलिस अब गिरोह के अन्य सदस्यों और उनके अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क की जांच कर रही है ताकि इस ठगी के दायरे और पीड़ितों की संख्या का पता लगाया जा सके। यह कार्रवाई नोएडा पुलिस की सतर्कता और तकनीकी दक्षता का परिचायक है, जिसने एक संगठित अंतरराष्ट्रीय ठग गिरोह को पकड़कर लोगों को ठगी से बचाने में महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
