नोएडा: एक टूटे परिवार की त्रासदी, 17 साल के कृष्व ने दी जान

नोएडा,( नोएडा खबर डॉट कॉम)
 नोएडा के सेक्टर 150 में 23 अगस्त की देर रात एक दिल दहला देने वाली घटना ने सभी को झकझोर कर रख दिया। 17 साल का कृष्व खत्री, जो अजनारा डेफोडिल सोसायटी में रहता था और 12वीं कक्षा का छात्र था, ने एनपीएक्स टावर की छत से छलांग लगाकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली।
इस दुखद घटना के पीछे की वजह थी एक टूटा हुआ परिवार और उससे उपजा गहरा मानसिक अवसाद, जिसने एक होनहार किशोर को इस कदर तोड़ दिया कि उसने मौत को गले लगाना बेहतर समझा।
टूटे परिवार का दंश
कृष्व के माता-पिता का तलाक हो चुका था। तलाक के बाद उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी, जिसका असर कृष्व के कोमल मन पर गहरा पड़ा। वह अपनी मां के साथ अजनारा डेफोडिल सोसायटी में रहता था, लेकिन पिता की दूसरी शादी और परिवार के बिखरने ने उसे अंदर ही अंदर तोड़ दिया। स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने भीतर के इस दर्द से जूझ रहा था।
दोस्तों और परिजनों के बीच वह सामान्य दिखने की कोशिश करता, लेकिन अकेलेपन की साये में वह धीरे-धीरे अवसाद की गहराइयों में डूबता चला गया।उस रात का मंजर 23 अगस्त की रात, जब अधिकांश लोग अपने घरों में सो रहे थे, कृष्व ने चुपके से एनपीएक्स टावर की ओर रुख किया। बिल्डिंग के सिक्योरिटी सुपरवाइजर गौरव ने पुलिस को बताया कि देर रात उन्हें एक जोरदार आवाज सुनाई दी। जब वे मौके पर पहुंचे, तो देखा कि ग्राउंड फ्लोर पर एक लड़का खून से लथपथ पड़ा है। उसका सिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त था। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर जांच शुरू की और मृतक की पहचान कृष्व खत्री के रूप में की।
पुलिस की जांच और परिवार का दर्द थाना नालेज पार्क के प्रभारी निरीक्षक ने बताया कि प्रारंभिक जांच में सामने आया कि कृष्व ने मानसिक अवसाद के कारण यह कदम उठाया। परिवार ने पुलिस को बताया कि तलाक के बाद कृष्व अक्सर उदास रहता था। वह अपने पिता से मिलने की बात तो करता, लेकिन पिता की नई जिंदगी में उसका स्थान कम होता गया। मां ने भी उसे संभालने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन अवसाद की गहराई इतनी थी कि वह उसे बचा न सकीं।
मानवीय कोण:
एक अनसुनी पुकार कृष्व की कहानी सिर्फ एक आत्महत्या की घटना नहीं है; यह एक चेतावनी है कि टूटते परिवार और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी कितने घातक परिणाम दे सकती है। 17 साल की उम्र, जब एक किशोर को सपनों की उड़ान भरनी चाहिए, कृष्व अपने ही दर्द की कैद में जकड़ा हुआ था। शायद अगर समय रहते कोई उसकी बात सुन लेता, कोई उसका दर्द समझ लेता, तो यह कहानी कुछ और होती।क्या कहता है समाज? यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपने बच्चों की मानसिक स्थिति को समझने में नाकाम हो रहे हैं?
क्या तलाक और पारिवारिक कलह का सबसे बड़ा खामियाजा मासूम बच्चे भुगत रहे हैं?
कृष्व जैसे कई किशोर आज खामोशी में अपने दर्द को सह रहे हैं। समाज, स्कूल और परिवार को मिलकर ऐसे बच्चों के लिए एक सुरक्षित माहौल बनाना होगा, जहां वे अपने मन की बात बिना डर के कह सकें।पुलिस और प्रशासन की भूमिका पुलिस ने इस मामले में जांच पूरी कर ली है और इसे आत्महत्या करार दिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए समाज और प्रशासन कोई ठोस कदम उठा रहे हैं? मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और काउंसलिंग की सुविधाएं ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों में कितनी सुलभ हैं? यह घटना हमें इन सवालों पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर करती है।आखिरी शब्द कृष्व की कहानी खत्म हो गई, लेकिन उसका दर्द हमें यह याद दिलाता है कि हर बच्चे के मन में छिपी उदासी को समय रहते पहचानना जरूरी है। अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो अकेलेपन या अवसाद से जूझ रहा है, तो उसका हाथ थामें, उसकी बात सुनें। शायद आपकी एक छोटी-सी कोशिश किसी की जिंदगी बचा ले।

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