मुम्बई(नोएडा खबर डॉट कॉम)
भारतीय सिनेमा ने सोमवार 24 नवम्बर 2025 को अपना एक ऐसा सितारा खो दिया, जो सिर्फ अभिनेता नहीं, बल्कि लाखों सपनों का प्रतीक था। धर्मेंद्र जी – जिन्हें दुनिया “ही-मैन” कहती थी – 89 वर्ष की आयु में मुंबई के अपने जुहू स्थित आवास पर उम्र-संबंधी बीमारियों से जूझते हुए दोपहर 1 बजे अंतिम सांस ली।
कुछ हफ्ते पहले ही ब्रीच कैंडी अस्पताल से छुट्टी मिली थी, लेकिन किस्मत ने कुछ और ही लिखा। उनका अंतिम संस्कार मुंबई के पवन हंस श्मशान घाट पर हो चुका है, जहाँ हेमा मालिनी जी, ईशा देओल, अहना देओल, सनी देओल, बॉबी देओल के साथ अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, सलमान खान, संजय दत्त, आलिया भट्ट जैसे सितारे श्रद्धांजलि देने पहुँचे।
पूरे देश में शोक की लहर है। सोशल मीडिया पर लाखों प्रशंसक उनकी यादों को ताजा कर रहे हैं – शोले के गब्बर से लेकर चुपके-चुपके की कॉमेडी तक।
लेकिन आज, जब आंसू बह रहे हैं, आइए उनकी उस प्रेरणादायक यात्रा को याद करें जो पंजाब की मिट्टी से निकलकर मुंबई के सपनों को हकीकत बना गई। यह कहानी अब और भी मोटिवेशनल लगती है – क्योंकि यह बताती है कि जीवन कितना अनमोल है, और विरासत कितनी अमर।
पंजाब की धरती से बॉलीवुड के “गरम धर्म” तक: एक संघर्ष की अमर गाथा
गाँव का लड़का, सपनों का सवार
1935 में पंजाब के लुधियाना जिले के छोटे से गाँव डंगोन में जन्मे धर्म सिंह देओल। पिता स्कूल हेडमास्टर थे, माँ लॉरेंस बीबी। घर में किताबें थीं, लेकिन लग्जरी नहीं। 10वीं के बाद मोटर मैकेनिक का कोर्स किया, सहारनपुर में नौकरी की। लेकिन दिल में फिल्मों का कीड़ा था।
गाँव के टेंट सिनेमा में दिलीप कुमार और राज कपूर को देखकर सपने बुनते। 1957 में Filmfare टैलेंट कांटेस्ट का विज्ञापन देखा। सैकड़ों में से चुने गए। इनाम? एक फिल्म कॉन्ट्रैक्ट। जेब में 120 रुपये, एक सूटकेस, और पंजाब से मुंबई का सफर। वहाँ पहुँचे तो भूखे-प्यासे, लेकिन हौसले से भरे।
संघर्ष के वे काले दिन
मुंबई में पहले साल छोटे-मोटे रोल। “धर्म” कहकर बुलाते, लेकिन चेहरा पहचाना नहीं जाता। 1960 में डेब्यू फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे फ्लॉप। सालों तक साइड रोल। लोग हँसते: “यह जाट लड़का हीरो कहाँ बनेगा?” लेकिन धर्मेंद्र ने हार न मानी। जिम में पसीना बहाया, बॉडी बनाई, आवाज़ को गहरा किया। पंजाबी जुनून को अपनी ताकत बनाया।
उड़ान का पल: ही-मैन का जन्म
1966, फूल और पत्थर। पहली बार शर्ट उतारी, एक्शन सीन किए। स्क्रीन पर आग लग गई! भारत का पहला एक्शन हीरो पैदा हो गया। उसके बाद बाढ़ आ गई: आया सावन झूम के, मेरा गाँव मेरा देश, यादों की बारात, शोले (जिसमें बसंती के बसंते को अमर कर दिया), चुपके चुपके, सत्याग्रह। 300 से ज्यादा फिल्में, रोमांस से एक्शन, कॉमेडी से ड्रामा – सबमें छा गए। पद्म भूषण (2012) मिला, लेकिन उन्होंने कभी अपनी जड़ें न भूलीं। फार्महाउस पर खेती, ट्रैक्टर चलाना, गायें पालना – गाँव की मिट्टी हमेशा साथ रही। दो शादियाँ, छह बच्चे – सनी, बॉबी, ईशा, अहना – सबको सिखाया कि मेहनत ही असली हीरो बनाती है।
अंतिम दिनों की झलक
उनका आखिरी इंस्टाग्राम पोस्ट (26 सितंबर 2025) भावुक था: जीवन की नाजुकता पर। फिर अस्पताल, रिकवरी, और अब यह विदाई। आखिरी फिल्म इक्कीस (श्रीराम राघवन निर्देशित, अगस्त्य नंदा के साथ) क्रिसमस पर रिलीज होगी – पोस्टह्यूमस।
जीवन की सीखें: धर्म पाजी से, हम सबके लिए धर्मेंद्र जी की कहानी सिर्फ फिल्मों की नहीं, बल्कि जिंदगी की है। यहाँ कुछ मोटिवेशनल पॉइंट्स,
जो आज भी प्रेरित करेंगे:
सीख
उदाहरण
मोटिवेशन
सपने देखो, लेकिन मेहनत से जोड़ो
पंजाब से मुंबई का सफर, टैलेंट कांटेस्ट जीतना
बिना मेहनत के सपना सिर्फ ख्वाब है। उन्होंने बॉडी बनाई, स्किल्स सीखी – तुम भी करो!
असफलता से डरो मत
फ्लॉप डेब्यू के बाद सालों संघर्ष
हर फेलियर एक स्टेप है। शोले ने साबित किया – धैर्य रखो, कमबैक होगा।
जड़ें मत भूलो
गाँव लौटना, खेती करना
सफलता में भी सादगी रखो। यही ताकत देती है।
उम्र सिर्फ नंबर
80+ में नई फिल्में
89 में भी काम कर रहे थे। जिंदगी जियो, रुको मत!
परिवार और फैंस ही सबकुछ
बच्चों को सपोर्ट, फैंस से प्यार
रिश्ते बनाओ, यादें छोड़ो – यही अमरता है।
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