शहीद की बेटी का कन्यादान: 50 जवानों ने निभाई दोस्ती की वो मिसाल, जो कभी नहीं भुलाई जा सकती

नोएडा, (नोएडा खबर डॉट कॉम)
ग्रेटर नोएडा के छोटे से गाँव डाबरा में उस मंगलवार की शाम कुछ ऐसा हुआ, जो सालों तक लोगों की आँखों में आँसू और दिल में गर्व भरता रहेगा। शहीद सूबेदार सुरेश सिंह भाटी की इकलौती बेटी की शादी थी। घर सजा था, रिश्तेदार आए थे, लेकिन एक कोने में हमेशा की तरह खालीपन था। वो खालीपन उस पिता का था, जो जुलाई 2006 में जम्मू-कश्मीर के बारामुला में देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे। बेटी मुस्कान बार-बार दरवाजे की ओर देखती, जैसे पापा किसी भी पल आकर गोद में उठा लेंगे और कहेंगे, “चल बेटी, आज तेरा कन्यादान मैं करूँगा।”पर पापा नहीं आए।
लेकिन उनकी जगह आए उनके साथी। उनके अपने। उनकी फौज।शाम के वक्त अचानक गाँव की गलियों में पंजाब से एक आर्मी बस रुकी। उसमें से उतरे करीब 50 जवान। यूनिफॉर्म में, सीना ताना, आँखें नम। सबके हाथों में फूलों के हार थे और दिल में एक वादा।जब वे शादी के पंडाल में पहुँचे, पूरा गाँव सन्न रह गया।
जवान सीधे मंडप में गए। बेटी को गले लगाया। शहीद का बेटा हर्ष भी सेना में है। साथी जवानों ने पिता के पदचिह्नों पर चलने के लिए उसे गले लगाया। फिर सबने मिलकर मुस्कान को दुल्हन की तरह सजाया। और जब कन्यादान का वक्त आया… तो सूबेदार सुरेश सिंह भाटी के सबसे करीबी साथी, उनके यूनिट के जवान आगे बढ़े।
उन्होंने बेटी का हाथ थामा। मंत्र पढ़े गए। और पिता की जगह पर उन साथियों ने कन्यादान किया। वो पल था जब रोया नहीं गया, बस आँसू खुद-ब-खुद बहने लगे।
माँ चुप थी, पर उसकी आँखों में गर्व की चमक थी।
बेटी ने जब उन जवानों के पैर छुए, तो सबने उसे उठाकर गले लगाया और कहा,
“तेरा बाप आज भी जिंदा है बेटी… हम सबमें।”ये कोई फिल्मी सीन नहीं था।
ये था फौज की उस भाईचारे की मिसाल, जो किताबों में नहीं लिखी जाती, दिल में उतरती है।
जो साथी गोली खाकर भी एक-दूसरे को छोड़कर नहीं जाते, वो मौत के बाद भी अपने भाई का फर्ज कैसे छोड़ सकते हैं?
शहीद सुरेश सिंह भाटी गए जरूर,
पर उन्होंने अपने पीछे एक पूरी फौज छोड़ दी,
जो उनकी बेटी की शादी में पिता बनकर आई।ये कहानी सिर्फ एक शादी की नहीं है।
ये कहानी है उस विश्वास की,
कि जब तक ये यूनिफॉर्म वाले हैं,
इस देश में कोई बेटी अनाथ नहीं रहेगी। शहीद सैनिक का परिवार अकेला नही रहा।

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