लखनऊ, 8 जून।
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने आज एक ऑनलाइन प्रांतीय बैठक में 22 जून को लखनऊ में प्रस्तावित बिजली महापंचायत की तैयारियों की समीक्षा की। इस महापंचायत में किसान, उपभोक्ता और बिजली कर्मी शामिल होंगे। बैठक में निजीकरण के विरोध में पिछले छह महीनों से चल रहे आंदोलन पर चर्चा हुई और इसे तब तक जारी रखने का संकल्प लिया गया, जब तक निजीकरण का फैसला पूरी तरह वापस नहीं लिया जाता।
संघर्ष समिति
ने बताया कि उत्तर प्रदेश में बिजली निजीकरण के खिलाफ चल रहे आंदोलन को राष्ट्रीय समर्थन देने के लिए नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज एंड इंजीनियर्स (NCCOEEE) की कोर कमेटी की महत्वपूर्ण बैठक 9 जून को दिल्ली में होगी। इस बैठक में ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज (एटक), इलेक्ट्रिसिटी इंप्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीटू) सहित कई राष्ट्रीय संगठनों के पदाधिकारी हिस्सा लेंगे। बैठक का मुख्य उद्देश्य उत्तर प्रदेश के आंदोलन को राष्ट्रव्यापी स्वरूप देना और समर्थन जुटाना है।

संघर्ष समिति ने निजीकरण को लेकर पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन से पांच और सवाल पूछे। इनमें शामिल हैं:
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क्या निजीकरण से पहले 45% संविदा कर्मियों को हटाया जा रहा है, जिससे भीषण गर्मी में बिजली आपूर्ति प्रभावित हो रही है?
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क्या 51% निजी हिस्सेदारी वाली कंपनी, जैसे ग्रेटर नोएडा की नोएडा पावर कंपनी, निजी कंपनी नहीं है?
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क्या निजीकरण के बाद भी सरकार सब्सिडी देगी? यदि हां, तो सरकारी क्षेत्र में सब्सिडी देना बोझ कैसे है?
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उड़ीसा में 1999 के निजीकरण की विफलता के बाद उत्तर प्रदेश में ऐसी स्थिति न होने की क्या गारंटी है?
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जब ऊर्जा मंत्री 2017 में 41% से घटकर 2024 में 16.5% AT&C हानि की बात कर रहे हैं, तो फिर 42 जनपदों का निजीकरण क्यों?
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि अगले शनिवार और रविवार को भी प्रबंधन से पांच-पांच सवाल पूछे जाएंगे। उन्होंने निजीकरण के खिलाफ आंदोलन को और तेज करने की प्रतिबद्धता जताई।