नई दिल्ली/मुम्बई(नोएडा खबर डॉट कॉम)
गुलशन कुमार, जिन्हें ‘कैसेट किंग’ के नाम से जाना जाता है, भारतीय संगीत उद्योग में एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने अपनी मेहनत, लगन और भक्ति संगीत के प्रति जुनून से एक साधारण शुरुआत को विशाल साम्राज्य में बदल दिया। उनकी जिंदगी की कहानी किसी प्रेरक फिल्म से कम नहीं है, जिसमें संघर्ष, सफलता और दुखद अंत सब शामिल हैं। आज, 12 अगस्त 2025, उनकी पुण्यतिथि पर, आइए उनके नोएडा से मुंबई तक के सफर को याद करें।
प्रारंभिक जीवन: दिल्ली की गलियों से शुरुआत
गुलशन कुमार दुआ का जन्म 5 मई 1956 को दिल्ली के दरियागंज में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता चन्द्रभान सड़क किनारे जूस की दुकान चलाते थे, और गुलशन ने कम उम्र में ही अपने पिता के साथ काम शुरू कर दिया। परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य थी, लेकिन गुलशन के मन में कुछ बड़ा करने की चाह थी। संगीत के प्रति उनका रुझान बचपन से ही था, और यही जुनून उन्हें एक अलग राह पर ले गया।
कैसेट किंग की शुरुआत: रिकॉर्ड शॉप से टी-सीरीज तक
गुलशन को जल्द ही एहसास हुआ कि ऑडियो कैसेट का कारोबार मुनाफे का सौदा हो सकता है। उन्होंने अपने परिवार की मदद से दिल्ली में एक रिकॉर्ड शॉप खरीदी, जहां से सस्ते दामों पर कैसेट बेचना शुरू किया। उस समय म्यूजिक कैसेट केवल पॉश इलाकों की दुकानों में उपलब्ध होते थे, जिसके कारण आम लोग इन्हें महंगे दामों पर खरीदते थे। गुलशन ने इस कमी को पहचाना और भक्ति संगीत को हर घर तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। 1983 में, गुलशन ने नोएडा में सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड, जिसे टी-सीरीज के नाम से जाना जाता है, की नींव रखी। उन्होंने भक्ति गीतों और भजनों पर फोकस किया, क्योंकि उनका मानना था कि भारत में भक्ति संगीत का बाजार बहुत बड़ा और अछूता है। अनुराधा पौडवाल, अलका याग्निक, कुमार सानू जैसे गायकों के साथ मिलकर उन्होंने भक्ति गीतों को सस्ते दामों पर कैसेट के जरिए जन-जन तक पहुंचाया। उनके इस आइडिया ने टी-सीरीज को संगीत उद्योग में एक क्रांति ला दी।
नोएडा से मुंबई:
बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्रीटी-सीरीज की सफलता के बाद गुलशन कुमार ने अपने कारोबार को विस्तार देने का फैसला किया और मुंबई की ओर रुख किया, जो भारतीय फिल्म और संगीत उद्योग का गढ़ था। 1988 में टी-सीरीज ने आमिर खान की पहली फिल्म कयामत से कयामत तक का साउंडट्रैक रिलीज किया, जो रातोंरात हिट हो गया। इसके बाद आशिकी, दिल है कि मानता नहीं, और दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे जैसी फिल्मों के साउंडट्रैक ने टी-सीरीज को बॉलीवुड में स्थापित कर दिया। गुलशन की रणनीति थी कि म्यूजिक को सस्ते दामों पर गली-मोहल्ले की दुकानों तक पहुंचाया जाए, जिससे हर वर्ग का व्यक्ति इसे खरीद सके। 1997 तक टी-सीरीज 500 करोड़ रुपये की कंपनी बन चुकी थी।
गुलशन न केवल संगीत निर्माता थे, बल्कि एक फिल्म निर्माता भी थे। उन्होंने भक्ति और सामाजिक विषयों पर आधारित फिल्में बनाईं और वैष्णो देवी और भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था को अपने काम में उतारा। वैष्णो देवी में उनके द्वारा शुरू किया गया भंडारा आज भी चलता है, जो उनकी भक्ति की गहराई को दर्शाता है।
अंडरवर्ल्ड की साये में दुखद अंत
गुलशन कुमार की बढ़ती सफलता और पैसा उन्हें अंडरवर्ल्ड की नजर में ले आया। 1997 में अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम ने उनसे 5 लाख रुपये की फिरौती मांगी, जिसे गुलशन ने ठुकरा दिया। उन्होंने कहा, “मैं ये पैसा मंदिर में दान करूंगा, लेकिन तुम लोगों को नहीं दूंगा।” यह इनकार उनकी मौत की वजह बन गया। 12 अगस्त 1997 को मुंबई के जीतेश्वर महादेव मंदिर से दर्शन कर लौटते समय उन पर हमलावरों ने 16 गोलियां दागीं, और उनकी जान चली गई। इस हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया। मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर राकेश मारिया ने अपनी किताब लेट मी से इट नाउ में खुलासा किया कि उन्हें इस हत्या की साजिश की जानकारी पहले से थी, लेकिन इसे रोक पाने में वे असफल रहे।