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उत्तर प्रदेश में विद्युत निजीकरण के खिलाफ कर्मचारी संघर्ष समिति का तीखा विरोध, सरकार से मांगा जवाब

लखनऊ,(नोएडा खबर डॉट कॉम)
विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। समिति ने सरकार से मांग की है कि वह स्पष्ट करे कि निजीकरण के बाद निजी कंपनियों को कितने वर्षों तक और कितनी आर्थिक सहायता दी जाएगी। समिति ने निजीकरण को घोटालों से भरा बताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस प्रक्रिया को रद्द करने की अपील की है।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने बताया कि भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के सितंबर 2020 के ड्राफ्ट स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्यूमेंट की धारा 2.2 (बी) के अनुसार, निजीकरण के बाद निजी कंपनियों को सब्सिडी पर बिजली आपूर्ति तब तक की जाएगी, जब तक वे लाभ में नहीं आ जातीं। समिति ने सवाल किया कि इस सब्सिडी का खर्च कितना होगा और यह कितने वर्षों तक चलेगा।समिति ने आरोप लगाया कि सरकारी वितरण निगमो के घाटे का मुख्य कारण निजी उत्पादन कंपनियों से महंगे दामों पर बिजली खरीद के समझौते हैं, जिनमें बिना बिजली खरीदे भी 6,761 करोड़ रुपये का फिक्स चार्ज देना पड़ता है। इसके बावजूद, निजीकरण के बाद सरकार निजी कंपनियों को सब्सिडी पर बिजली देगी और इसका खर्च भी वहन करेगी।
समिति ने यह भी बताया कि निजी कंपनियों को क्लीन बैलेंस शीट दी जाएगी, सारी देनदारियां सरकार उठाएगी, और 5 से 7 वर्ष या उससे अधिक समय तक वित्तीय सहायता दी जाएगी। इसके अलावा, 42 जनपदों की बेशकीमती जमीनें मात्र 1 रुपये प्रति वर्ष की लीज पर निजी कंपनियों को दी जाएंगी। समिति ने सवाल किया कि यदि यही सुविधाएं सरकारी निगमों को दी जाएं, तो निजीकरण की क्या जरूरत है?
निजीकरण के विरोध में 258 दिनों से चल रहे आंदोलन के तहत आज भी प्रदेश के सभी जनपदों और परियोजनाओं पर बिजली कर्मचारियों ने जोरदार प्रदर्शन किया। समिति ने सरकार से निजीकरण की प्रक्रिया को तत्काल रद्द करने की मांग की है।

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