विनोद शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
(नोएडा एनसाइक्लोपीडिया)
17 अप्रैल 2025 को नोएडा शहर ने 49 वर्ष पूरे कर लिए। अब नोएडा शहर ऐतिहासिक 50 वे वर्ष में प्रवेश कर रहा है। ऐसे समय में हमें आकलन करना है कि नोएडा का सफर कितना शानदार रहा है और अभी तक के सफर में जो रुकावट रही हैं उनको कैसे हटाया जाए। इस संबंध में ही आज का यह लेख में लिख रहा हूं। स्थापना दिवस के दिन नोएडा प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉक्टर लोकेश एम ने अपने सभी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठकर प्रत्येक विभाग के कामकाज का पूरा ब्यौरा मीडिया के सामने रखा इसमें जल, सड़क, सीवर, भूजल,जन स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर भूमि प्रबंधन आदि मुख्य मुद्दे थे। नोएडा शहर की सभी योजनाएं प्राधिकरण बनाता है उन्हें क्रियान्वित करने के लिए अधिकारियों से विचार विमर्श करते हैं। तब वह कागज पर उतरती है अगर वह समय पर क्रियान्वित ना हो पाए तो उसका दोष किसे दिया जा सकता है। इनमे कुछ उदाहरण देकर कोई भी बात सही तरीके से समझी जा सकती है।
किसानों की आबादी और मुकदमे
नोएडा शहर 1976 में बसाया गया उस समय इमरजेंसी लगी हुई थी और दिल्ली में रहकर अधिकारी सर्वे के लिए नोएडा आते थे तब हर गांव का सर्वे हुआ आसपास की जमीन का भी ग्राम समाज की जमीन का भी और खेती की जमीन का अधिग्रहण किया गया । सवाल यह उठता है कि जिन गांव की जमीन आज से 40 साल या पहले अधिग्रहित की गई उन गांव में नोएडा प्राधिकरण के किसानों के साथ मुक़दमे। अब तक क्यों चल रहे हैं? क्या उनका समाधान नहीं हो पा रहा है ? क्या वे कोर्ट में तब से ही पेंडिंग है, ? क्या उनके बारे में वस्तु स्थिति के बारे में जानकारी नहीं है ? क्या प्राधिकरण उनका एक निश्चित समय सीमा में समाधान नहीं कर सकता है? अगर वह जमीन किसान की है तब वह जमीन किसान को दी जाए और अगर वह प्राधिकरण की है तो प्राधिकरण उसे अपने प्लानिंग में शामिल कर इसका आवंटन करें।
अगर वह 40 साल से ऐसे ही पड़ी है तो प्राधिकरण एक फैसला ले केवल जमीन किसान की है क्योंकि प्राधिकरण के पास कोई ऐसा आधार नहीं है कि वह प्राधिकरण की जमीन है अगर आधार है तो इसका फैसला निश्चित समय सीमा में करें। इसे कुछ अधिकारियों ने किसानों के शोषण का हथियार बना रखा है। वही इस नीति का कुव्ह भूमाफियाओं ने फायदा उठाया है जिनके खिलाफ प्राधिकरण कभी कार्रवाई नही करता। ऐसे मामले लटके होने की वजह का खामियाजा क्या है वह भी मैं आपको बताता हूं। इनमे ऐसे क्षेत्र हैं वहां पर अस्थाई रूप से न केवल निर्माण है बल्कि झुग्गी झोपड़ियां है। कबाड़ियों के कारोबार हैं, उनमें वे नशे का कारोबार करते हैं और ऐसे अराजक तत्व पनप रहे हैं जो किसी भी शहर की शांति के लिए खतरा है। क्या प्राधिकरण इस गंभीर समस्या का समाधान करेगा इसकी रिपोर्ट प्राधिकरण के अधिकारी अपनी पिछली फाइलों को देखकर तैयार कर सकते हैं।
गांवों में सुविधाएं
प्राधिकरण ने गांव में क्या सभी को सुविधा दी हैं जब नोएडा प्राधिकरण ने सबसे पहले जमीन अधिग्रहित की थी तो उसके बदले में किस को क्या दिया सिर्फ ₹4 गज जमीन लेकर बदले में नौकरी देनी थी। क्या उनके साथ किया वादा पूरा किया गया। क्या इंडस्ट्रियल कोटा में उनको प्लाट दिए गए? क्या किसान कोटे में सभी को प्लॉट मिल गए अगर 1976 -78 में किसी की जमीन गई और उसको 2000 के बाद प्लांट मिला तो क्या उसके साथ यह ज्यादती नहीं है और अगर 15 या 20 साल बाद भी उसको प्लॉट मिला तो क्या वह पर्याप्त है। 1997 के बाद नोएडा गाजियाबाद से गौतम बुद्ध नगर जिले में शामिल हो गया और उसके बाद प्राधिकरण ने किसानों को 10% प्लाट देने की योजना बनाई क्या सभी को किसानों को विकसित प्लाट मिल गए अगर वह वादा पूरा नहीं हुआ तो उसमें गलती किसान की है या प्राधिकरण के प्रबंधन की यह सोचने का विषय है।
कहाँ जाएं श्रमिक वर्ग और भूमिहीन
श्रमिकों व भूमिहीनों के लिए आवास की व्यवस्था एक चुनौती
नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी यह तो जानते ही होंगे कि हर गांव में बहुत सारे ऐसे लोग थे जो भूमिहीन थे जिनके पास अपनी जमीन नहीं थी वह सिर्फ किसान की खेती पर आधारित थे उनके अपने घर भी इतने बड़े नहीं थे जिसमें वह परिवार के साथ रह सके समय के हिसाब से अब उनके परिवार भी बढ़ गए उनके रहने के लिए क्या नोएडा प्राधिकरण में कोई नीति बनाई जिसमें नोएडा के गांव की भूमिहीन लोगों के लिए कारोबार या आवास की व्यवस्था की गई हो उनके लिए वेंडर्स में रिजर्वेशन तय किया गया हो इसी तरीके से प्रत्येक उद्योग में काम करने वाले सभी कर्मी ऐसी क्षमता के नहीं होते कि वह 30 से 70 लाख तक के फ्लैट खरीद सकते हैं क्या उनके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना या मुख्यमंत्री आवास योजना लागू करने की जरूरत महसूस नहीं होती है अगर नोएडा प्राधिकरण बिल्डरों की योजना में उनके नशे में ईडब्ल्यूएस और एलआईजी कैटेगरी के फ्लैट की अनिवार्य शर्त रख देता तो इस समस्या का समाधान कर देता। नोएडा प्राधिकरण ने आखिरी बार 2012 में समाजवादी योजना लागू की थी जिसके तहत सेक्टर 122 में झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों के लिए फ्लैट बनाए गए थे। वह योजना भी कारगर नही हो पाई। अभी प्राधिकरण की सभी आवासीय योजनाओं में ऑक्शन सिस्टम लागू है तो श्रमिक, मध्यम वर्ग और भूमिहीन लोगों की आवास की व्यवस्था की नीति प्राधिकरण को बनानी ही होगी अन्यथा जो प्राधिकरण की खाली जमीन है वह कॉलोनाइजर घेरेंगे और उस पर इन लोगों को बसाएंगे तब आप इन सबको खाली भी नहीं कर पाएंगे। इससे फायदे की बजाय ज्यादा नुकसान प्राधिकरण का इसलिए हो रहा है कि वह गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए कोई योजना नहीं ला रही है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट और ट्रैफिक सिस्टम
नोएडा दिल्ली से तीन जगह से जुड़ता है कालिंदी कुंज की तरफ से दूसरा महारानी बाग से टोल ब्रिज की तरफ से और तीसरा अक्षरधाम की तरफ से सुबह और शाम तीनों ही जगह पर जाम लगता है इसकी वजह यह है कि नोएडा प्राधिकरण अपनी प्लानिंग में भविष्य को ध्यान में रखते हुए काम नहीं कर पा रहा है सोचिए 2012-13 में रजनीगंधा से सेक्टर 56 तक एक एलिवेटेड रोड का निर्माण किया जाना था इसके लिए अप्रैल 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के नाम से एक पत्थर लगाया गया और अब 10 साल बाद भी वह पत्थर ज्यों का त्यों लगा है उस पर कोई एलिवेटेड रोड नहीं बना अफसरों ने वह फाइल बंद कर दी। अब फिर से इस फ़ाइल को निकालकर बनाने की कोशिश की जा रही है। तब से लागत कितनी बढ़ जाएगी। चिल्ला रेगुलेटर से महामाया फ्लाई ओवर तक एलिवेटेड रोड अब तक बनकर चालू हो जाना था। उस पर फैसले लेने में इतना समय लगा कि अभी तीन साल और लगेंगे। जबकि अभी सहारनपुर दिल्ली एक्सप्रेसवे शुरू होने वाला है जो अक्षरधाम से शुरू होगा। वहां का ट्रैफिक आगरा जाने के लिये नोएडा से ही निकलेगा। इसी तरह अगले कुछ महीनों में एयरपोर्ट शुरू होने जा रहा है। तब डीएनडी, चिल्ला और कालिंदी कुंज से नोएडा की तरफ आना कितना मुश्किल हो जाएगा। ऐसे ही छिजारसी से नोएडा होते हुए फरीदाबाद तक एफएनजी बनाया जाना था तब यह कैसे काम करेगा। कई गम्भीर चुनौतियों से जूझना 50 वे वर्ष में जरूरी है। मेट्रो का विस्तार, नए फ्लाईओवर या अंडरपास की प्लानिंग भी गम्भीरता से करनी होगी। लैंड ऑडिट सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।
(खास खबर नोएडाखबर डॉटकॉम के लिए)